"महिला तलाक़ के बाद मांग सकती है गुज़ारा भत्ता"- सुप्रीम कोर्ट का फैसला

तलाकशुदा महिला अपने पति से भरण-पोषण की मांग धारा 125 के तहत कर सकती है- यह कानून पत्नियों के भरण-पोषण से संबंधित है - ये कहा है सुप्रीम कोर्ट ने.

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रिसिका जोशी
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एक बहुत ही ऐतिहासिक फैसला किया है सुप्रीम कोर्ट ने, जिसे सुनकर बेहद ख़ुशी हुई है. आज तक होते ये था कि लड़की के काम को उसकी ज़िम्मेदारी समझा जाता था और जब मन भर जाए, या किसी भी और कारण से उसे छोड़ दिया जाता था. वो कैसे अपना जीवन काट रही होगी, इसके बारे में कुछ करना तो दूर, आदमी सोचते भी नहीं थे. 

बस छोड़ दिया और बात ख़त्म. लेकिन कहते है ना भले ही समय लगे लेकिन न्याय होता ज़रूर है. बस ऐसा ही कुछ फैसला आ चूका है सुप्रीम कोर्ट की तरफ से.

सुप्रीम कोर्ट का वर्डिक्ट कहा- महिलाओं को तलाक़ के बाद मेंटनेंस देना ज़रूरी, Maintenance law क्या है?

उन्होंने कहा है कि तलाकशुदा महिला अपने पति से भरण-पोषण की मांग धारा 125 के तहत कर सकती है- यह कानून पत्नियों के भरण-पोषण से संबंधित है - ये कहा है सुप्रीम कोर्ट ने. यह महत्वपूर्ण फैसला किया गया है justice बी.वी. नागरत्ना और justice ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह द्वारा जिनके सामने मुस्लिम आदमी ने तलाक़ के बाद उसकी पत्नी को भरण-पोषण देने के निर्देश को चुनौती दी गई थी और इस बेंच ने यह याचिका खारिज की.

Justice नागरत्ना ने कहा- "हम यहां पर इस आपराधिक अपील को खारिज कर रहे हैं और यह मुख्य निष्कर्ष निकाल रहे हैं कि धारा 125 सभी महिलाओं पर लागू होगी, न कि केवल विवाहित महिलाओं पर."

Justice नागरत्ना और मसीह ने अलग-अलग लेकिन एकमत फैसले दिए.

धारा 125 क्या है?

धारा 125 कहती है कि एक व्यक्ति जिसके पास पर्याप्त साधन हैं, वह अपनी पत्नी, बच्चों या माता-पिता को भरण-पोषण देने से इनकार नहीं कर सकता. साथ ही बेंच ने ये भी स्पष्ट किया कि भरण-पोषण के लिए कानून सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होता है, चाहे उनका धर्म कोई भी हो.

Bench ने ये भी सबके सामने स्पष्ट किया कि भरण-पोषण कोई दान का मामला नहीं है बल्कि विवाहित महिलाओं का मौलिक अधिकार है.

उन्होंने आगे कहा- "यह अधिकार किसी धर्म से जुड़ा हुआ नहीं है और इसीलिए सभी विवाहित महिलाओं के लिए लैंगिक समानता और वित्तीय सुरक्षा के सिद्धांत को मजबूत करता है.

उन्होंने एक गृहिणी के कामों का पुष्टिकरण करते हुए कहा- "कुछ पति इस बात से अनजान होते हैं कि पत्नी, जो एक गृहिणी है, वह भावनात्मक और अन्य तरीकों से उन पर निर्भर होती है. अब समय आ गया है कि वे परिवार के लिए गृहिणियों द्वारा किए गए अनिवार्य भूमिका और बलिदानों को पहचानें."

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत

राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने इस फैसले का स्वागत किया है.

उनके पैनल ने अपने एक्स हैंडल पर पोस्ट किया- "एनसीडब्ल्यू की अध्यक्ष, श्रीमती रेखा शर्मा, मुस्लिम महिलाओं के अधिकार को धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरण-पोषण मांगने के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का हार्दिक स्वागत करती हैं. यह निर्णय सभी महिलाओं के लिए लैंगिक समानता और न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है."

इस याचिका को ख़ारिज कर दिया फैसला

यह ऐतिहासिक निर्णय मोहम्मद अब्दुल समद की याचिका पर आया है, जिसे एक परिवार अदालत ने अपनी तलाकशुदा पत्नी को 20,000 रुपये मासिक भत्ता देने का निर्देश दिया था. इस व्यक्ति ने इस निर्देश को तेलंगाना उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी.

तेलंगाना के उच्च न्यायालय ने भरण-पोषण देने के निर्देश को बरकरार रखा, लेकिन राशि को 10,000 रुपये तक संशोधित किया. लेकिन इस व्यक्ति ने फिर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. उनके वकील ने तर्क दिया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाएं मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत सहायता प्राप्त कर सकती हैं और जोर दिया कि यह धारा 125 सीआरपीसी की तुलना में बहुत अधिक प्रदान करता है.

शाह बानो मामला क्या है?

यह  फैसला इतना ऐतिहासिक इसीलिए भी माना जा रहा है क्योंकि ये आज की लड़ाई नहीं है. इस फैसले की अहमियत 
 जानना बहुत ज़रूरी है. और वह जुडी है इतिहास से. इस निर्णय के महत्व को समझने के लिए, 1985 के शाह बानो मामले को एक बार समझते है. 

उस वक़्त सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि धारा 125 सीआरपीसी सभी पर लागू होती है, चाहे उनका धर्म कोई भी हो. हालांकि, इसे मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 द्वारा कमजोर कर दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि मुस्लिम महिला केवल इद्दत के दौरान- तलाक के 90 दिनों बाद- भरण-पोषण मांग सकती है.

2001 में, सुप्रीम कोर्ट ने 1986 के अधिनियम की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा, लेकिन फैसला दिया कि एक आदमी का अपनी तलाकशुदा पत्नी को भरण-पोषण प्रदान करने का दायित्व तब तक रहता है जब तक वह फिरसे से शादी नहीं करती या खुद कमाने योग्य नहीं हो जाती.

आज के आदेश ने सीआरपीसी के तहत भरण-पोषण की मांग करने के लिए एक तलाकशुदा महिला के आदेश को और मजबूत किया, चाहे उसका धर्म कोई भी हो. यह  फैसला हमारे देश की हर महिला को एक मजबूती प्रदान करेगा. 

आज तक महिलाएं अपने ससुराल से इसीलिए भी जाने को तैयार नहीं थी क्योंकि वे जानती थी कि शादी ख़त्म होगी तो वे बेसहारा हो जाएंगी. लेकिन इस फैसले के बाद हर महिला अपना फैसला खुद लेने में सक्षम है.

अगर वह परेशान है तो वह आसानी से इस क़ानून के तहत अपनी पति से अलग हो सकती है और जब तक खुद सक्षम नहीं हो जाती भरण पोषण के लिए पैसा मांग सकती है.

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