कौन कहता है की ईंट-कंक्रीट से जुड़े काम सिर्फ पुरुष ही कर पाते है? झारखंड की महिलाओं ने यह बात बहुत साल पहले ही गलत साबित कर दी, और साथ ही उन लोगों की सोच और मुँह पर ताला भी लगा दिया जो महिलाओं को किसी से काम समझते है. झारखण्ड में जब तक रानी मिस्त्रियों ने काम शुरू नहीं कर दिया तब तक लोग यही समझते थे कि ये सब काम तो आदमियों के है. लेकिन आज रांची कि वो रानियां जब काम करती है, तब उनके हाथों कि रफ़्तार देखकर सब दंग रह जाते है. जब तक कोई राज मिस्त्री या पुरुष मिस्त्री एक दिवार कि चिनाई करता है तक तब एक रानी मिस्त्री 2 दीवारों का काम ख़त्म कर देती है.
यह सिलसिला शुरू हुआ चार साल पहले जब उनके गांव उदयपुरा में कार्यरत स्वयं सहायता समूह को 'स्वच्छ भारत मिशन' के तहत सौ शौचालय बनाने का काम सौंपा गया. उम्मीद थी कि राज मिस्त्री मिल जाएंगे, लेकिन काम छोटा था तो कोई आदमी तैयार नहीं था. यह देखकर महिलाओं ने काम करने का बीड़ा उठा लिया. जिला प्रशासन की ओर से इन्हें प्रशिक्षण दिया गया, इसके बाद 20-25 महिलाओं ने मिलकर सारे शौचालयों का निर्माण कर दिया. काम करने के बाद जब इन महिलाओं को पैसे मिले तो इनके जोश में और बढ़ावा आया. बस फिर क्या था, वो दिन है और आज का दिन है, झारखंड में 50 हज़ार से ज़्यादा रानी मिस्त्री काम कर रहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक भी इनकी सफलता की कहानियां पहुंची और वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए खूंटी जिले की कुछ रानी मिस्त्रियों वे भी इनका हौसला बढ़ा चुके हैं.
Image Credits: Ram Nath Kovind facebook official page
इन्ही में से एक नाम है, सुनीता देवी. झारखंड के लातेहार जिले के उदयपुरा गांव की रहने वाली और अपने इलाके की मशहूर ‘रानी मिस्त्री’. वह वर्ष 2019 में भारत के राष्ट्रपति के हाथों भारत सरकार की ओर से कामकाजी महिलाओं को प्रदान किए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान 'नारी शक्ति पुरस्कार' से नवाजी जा चुकी हैं. इन रानी मिस्त्रियों पर 'वल्र्ड बैंक' ने हाल में एक रिपोर्ट बनाई. हजारीबाग की ही एक रानी मिस्त्री निशात जहां कहती हैं, "महिलाएं पुरुषों से कम नहीं हैं. जो पुरुष कर सकते हैं वो महिलाएं भी कर सकती हैं और कई बार तो पुरुषों से बेहतर कर सकती हैं. रेजा-मजदूर के रूप में महिलाएं पहले भी निर्माण कार्य में लंबे समय से काम करती आयी हैं. अब उन्हें रानी मिस्त्री के रूप में काम करने का मौका मिला है तो वे यहां भी अपना हुनर और काबिलियत दिखा रही हैं." सब लोगों ने यह मान रखा है कि महिलाएं निर्माण गतिविधियों में सहायकों की भूमिका ही निभाती है. लेकिन, झारखंड में महिला मजदूरों ने मिस्त्री के काम में पुरुषों के वर्चस्व को तोड़ दिया है.
झारखंड उन राज्यों में से एक है जिसे 'स्वच्छ भारत अभियान' की योजना बनाने और उसको लागू करने के लिए 'विश्व बैंक' की ओर से तकनीकी मदद मिली थी. इस तकनीकी मदद के हिस्से के रूप में विश्व बैंक ने टॉयलेट बनाने के लिए मिस्त्रियों को प्रशिक्षित करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया था और उनमें से कई कार्यक्रमों में महिला मजदूरों ने भी हिस्सा लिया. कई रानी मिस्त्रियों के परिवार वाले इस काम को सीखने को लेकर उनके खिलाफ खड़े हो गए. पर संघर्ष कर इन रानी मिस्त्रियों ने अपना मुकाम पा ही लिया. झारखंड में यह बात साबित हो गयी कि महिलाएं किसी से भी कम नहीं है. सिर्फ झारखंड ही नहीं बल्कि हर राज्य कि महिला इतनी ही सशक्त है कि वो कुछ भी आसानी से कर सकती है. बस चाहिए तो वो हौसला जो झारखंड महिलाओं ने दिखाया. अगर हर महिला बिना डरे काम करने लग गयी तो देश कि शिथि को बदलने में ज़रा भी वक़्त नहीं लगेगा.