नमदा गलीचों को दी पहचान और महिलाओं को रोज़गार

आरिफ़ा कश्मीर में रहती है. कश्मीर के मशहूर नमदा गलीचे बनाने की पारंपरिक कला को वे पुनर्जीवित कर रही है. उन्होंने जॉब करने की जगह, कश्मीरी हस्तशिल्प, ख़ासकर नमदा गलीचा बनाने की कला को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के अपने जुनून को आगे बढ़ाने का फैसला किया.

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मिस्बाह
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arifa jan kashmir

Image Credits: Dainik Bhaskar

कला, उस जगह की पहचान होती है जहां से वो पनपी. तकनीक के इस दौर में जहां हम मशीनों पर निर्भर होते जा रहे हैं, ये कलाएं खो रही हैं. पर, कुछ लोग हैं जिन्होंने कलाओं को बचाने को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया. आरिफ़ा जान (Arifa Jan) भी ऐसा ही एक नाम है. आरिफ़ा कश्मीर (Kashmir) में रहती है. कश्मीर के मशहूर नमदा गलीचे (Namda rugs) बनाने की पारंपरिक कला को वे पुनर्जीवित कर रही है. आरिफ़ा जान कॉमर्स ग्रेजुएट (commerce graduate) है. उन्होंने जॉब करने की जगह, कश्मीरी हस्तशिल्प (Kashmiri handicraft), ख़ासकर नमदा गलीचा बनाने की कला को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के अपने जुनून को आगे बढ़ाने का फैसला किया.

नमदा गलीचे ऊनी रेशों (felted wool) को एक साथ जोड़कर बनाए जाते हैं. रुचि की कमी और घटती मांग की वजह से यह पारंपरिक शिल्प (traditional art) विलुप्त होने की कगार पर था. आरिफ़ा जान ने नामदा गलीचों के सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व को पहचाना और इस शिल्प को वापिस मशहूर बनाने का बीड़ा उठाया. आरिफ़ा जान ने 'वूलेन क्राफ्ट्स' नाम से अपना उद्यम शुरू कर नमदा गलीचा बनाने की कला में ग्रामीण महिलाओं (rural women) को प्रशिक्षण (training) देना शुरू किया. उन्हें गलीचे बनाने के लिए ज़रूरी उपकरण और सामग्रियां दी, जिससे वे अपना रोज़गार शुरू कर सशक्त बन सके.

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Image Credits: Deccan Herald

आरिफ़ा ने लगभग 100 स्थानीय कारीगरों (craftsmen) के साथ काम कर रही है, जिनमें ज़्यादातर महिलाएं हैं. 2020 में, शिल्प को पुनर्जीवित करने में उनकी कड़ी मेहनत और प्रयासों के लिए उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार (Nari Shakti Award) से सम्मानित किया गया था. अपने प्रयासों से, आरिफ़ा जान ने न केवल इस कला को पुनर्जीवित किया है, बल्कि नामदा गलीचों की सुंदरता और शिल्प कौशल को भी पहचान दिलाई है. उन्होंने कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपने गलीचे प्रदर्शित किए. कला प्रेमियों और खरीदारों ने उनके इस प्रयास की खूब तारीफ की और धीरे-धीरे नामदा गलीचों की मांग बढ़ने लगी. 

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