जनजातीय समाज का जंगल और महुआ से बड़ा पुराना रिश्ता रहा है. महुआ के फूलों का नाम सुनते ही हमारे ज़हन में शराब बनाने वाले आदिवासियों का चित्र घूम जाता है. पर अब वक्त आ गया है इस पिक्चर को बदलने का .क्योंकि मध्यप्रदेश के उमरिया जिले में मिलने वाले महुए के पेड़ और फूलों से लंदन महकेगा. इसके लिए उमरिया जिला प्रशासन और लंदन की एक कंपनी के साथ करार हुआ है. लंदन भेजने के लिए इन महुआ के फूलों से शराब नहीं बल्कि अच्छी सेहत के लिए च्यवनप्राश बनाया जाएग. इस सार्थक प्रयास से जहां फूलों का बेहतर उपयोग होगा वहीं यहां के आदिवासी मुनाफा कमा कर आर्थिक रूप से ताकवर होंगे.
उमरिया के अनुविभागीय अधिकारी वन विभाग कुलदीप त्रिपाठी ने बताया - "कई दिनों से यह बातचीत लंदन कि कंपनी से चल रही थी. उनकी कई शर्तें थीं. महुआ कि क्वालिटी और स्वच्छता के मापदंड पर यह सब करना था ,जो विभाग ने किए". उन्होंने आगे बताया - " जिले के पांच गांव चिन्हित किए गए जिसमें मगरधरा,अचला ,करकेली आदि शामिल है". वन विभाग ने क़रीब सात सौ आदिवासी चिन्हित किए. ये जंगल के लगभग एक हजार पेड़ों से महुआ के फूल बीन कर विभाग के माध्यम से पैकेजिंग करेंगे.इन फूलों को सोलर पैनल द्वारा सुखाया जाएगा. खास बात यह है कि इसके लिए लाभान्वित होने वाले आदिवासी लोगों को ट्रेनिंग दी गई.
जिले के डीएफओ ( वन मंडलाधिकारी ) मोहित सूद ने बताया - " हमारे यहां महुआ खरीदी का समर्थन मूल्य 33 रुपए किलो है,जबकि लन्दन की यह फारेस्ट कंपनी 110 रुपए किलो लेगी. इसका लाभ सीधे आदिवासी समूह को मिलेगा. प्रशासन ने शर्तों के अनुसार साफ और ऑर्गेनिक प्रोडक्ट के लिए सर्टिफिकेट लेने के लिए भोपाल भी आवेदन कर दिया है. अब ये आदिवासी महुआ के फूलों को पेड़ से नीचे नहीं गिरने देंगे बल्कि हरी नेट जाली लगा कर इकट्ठा करेंगे,जिससे ये फूल मिट्टी में ख़राब नहीं होंगे.".
लंदन कंपनी से जुड़े अनिल पटेल ने बताया - " यह कंपनी शुरू में ही 100 टन महुआ खरीदेगी.उनके साथ वैज्ञानिक सैम रजिया भी मौजूद थे ".
वन मंत्री विजय शाह ने कहा - "महुआ एकत्रण और बेचने को लेकर आदिवासियों में प्रतिस्पर्धा बढ़ी है. इससे जहां आदिवासियों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी वहीं जंगलों को बचाया जा सकेगा."
इस उपलब्धि पर कलेक्टर डॉ केडी त्रिपाठी ने कहा-"इस जिले और आसपास के जंगलों में डेढ़ हजार से ज्यादा महुए के पेड़ हैं. जनजाति समुदाय को कैसे इसका लाभ और अधिक मिले ,इसका प्रयास किया जा रहा था. लगातार संपर्क ट्रेनिंग से आदिवासी लोगों में उत्साह जागा। परिणाम यह रहे कि सरकार की मंशा सफल हुई. हम महुआ एक्सपोर्ट कर पाएंगे.