मीरा बनी मर्दानी

अपने इलाके में पूर्ण शराब बंदी लागू होने से पहले ही मीरा ने गांव की महिलाओं को इकठ्ठा करके 200 से ज़्यादा SHG तैयार किये. ग्रामीण महिलाओं को एकजुट कर जब मीरा सड़क पर उतरी तो देखते ही देखते उन्होनें अवैध शराब की दर्जनों भट्टियां तबाह कर दीं.

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रिसिका जोशी
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अबला समझ कर महिला को आज तक बहुत दबाया गया है. उनके साथ ज़ोर ज़बरदस्ती से ना जाने कितने गलत काम भी किये गए. और इन सब अनहोनियों का सबसे बड़ा कारण कहीं न कहीं शराब बनी हैं. देश दुनिया में महिलाओं के ऊपर हो रहे अत्याचार और ज़ुल्म में शराब भी एक कारण है. भारत में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर बहुत से कानून बनते रहे हैं. शराब के मामले में भी सरकार आए दिन कुछ न कुछ नया करती रहती हैं. भारत में गुजरात के बाद बिहार को 'ड्राई स्टेट' बना दिया गया . 

भले ही बिहार और गुजरात में शराब खुलेआम नहीं बिक रही हो, लेकिन ये बात किसी से छुपी नहीं हैं की शराब का कला धंधा दोनों ही राज्यों में दिन दुगना रात चौगुना बढ़ रहा हैं. काला बाज़ारी के बढ़ते हुए इस जंजाल में ना जाने कितने मासूम लोग फास जाते हैं. शुरुआत किसी एक से होती हैं, और शिकार उससे जुड़ा हर व्यक्ति हो जाता हैं. जहरीली शराब इस शराबबंदी का खतरनाक पक्ष हैं. इन 'सो कॉल्ड ड्राई स्टेट्स' में जहरीली शराब कई मौतों का कारण बनी हैं.

महिलाओं ने बहुत सहन करा, लेकिन जब बात हद से आगे बढ़ जाए, तो लड़की हो या औरत, तो उसे महिषासुर मर्दिनी का रूप लेना पड़ता है. मीरा ने बिहार में भी यहीं रूप लिया, उसने यह बात साबित कर दी की आज महिलाएं किसी से कम या कमज़ोर नहीं है. ग्रामीण महिलाओं को एकजुट कर जब मीरा सड़क पर उतरी तो देखते ही देखते उन्होनें अवैध शराब की दर्जनों भट्टियां तबाह कर दीं. 

अपने इलाके में पूर्ण शराब बंदी लागू होने से पहले ही मीरा ने गांव की महिलाओं को इकठ्ठा करके 200 से ज़्यादा SHG तैयार किये,  जो अवैध शराब के कारोबारियों के खिलाफ़ आवाज़ उठा रहे थे. बात सिर्फ़ भट्टियां तबाह करने तक ही सीमित नहीं है. जो लोग इन अवैध भट्टियों को चला रहे थे, उनकी भी अच्छी खासी खबर ली गई. मीरा का डर इस कदर लोगों में मन में बैठ गया की बहुत से लोगो ने तो शराब को हाथ तक लगाना बंद कर दिया. 

वर्ष 1996 से वर्ष 2002 तक नेट्रोडेम जमालपुर से फील्ड वर्कर के रूप में जुड़कर मीरा ने अलग-अलग गांव में 200 से अधिक स्वयं सहायता समूहों का गठन किया. अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण समिति के जिला स्तरीय कमेटी के सदस्य के रूप में कार्य कर चुकी मीरा फिलहाल आंगनवाड़ी सेविका हैं. भले ही अब वे सेविका के रूप में दुनिया के सामने हैं , लेकिन उन्होनें आज तक महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का काम बंद नहीं किया. कोसी त्रासदी के दौरान मीरा ने सहरसा जाकर कैंप में रह रही महिलाओं को बांस से बनने वाली चीज़ों के बारे में बताया और स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया. 

मीरा के सामाजिक कार्य को देखते हुए बिहार वैलेंट्री एसोसिएशन पटना ने उन्हें वर्ष 2008 में सम्मानित भी किया. वहीं वर्ष 2006 में दिल्ली में आयोजित महिला उनमुखी कार्यशाला में बिहार का एकमात्र महिला प्रतिनिधि प्रतिनिधि के रूप में भाग लेने का अवसर मिला. मीरा ने ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं की समस्या को प्रमुखता से सामने रखा और इसके लिए मीरा ने गांव में महिलाओं के हित के लिए अवैध शराब के कारोबारियों के खिलाफ खुलकर आगे आईं. आंगनवाड़ी सेविका के रूप में कार्य कर रही मीरा हमेशा महिलाओं के हित की रक्षा को लेकर आज भी अपनी आवाज को बुलंद कर रही है. 

वर्ष 2003 से 2007 तक कैथलिक चर्च बरियारपुर से जुड़कर मीरा ने क्षेत्र में 250 स्वयं सहायता समूह बना कर महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ा. वहीं गंगा दियारा क्षेत्र की महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए शिविर का आयोजन कराया जिसमें महिलाओं को सत्तू, बेसन, मसाला, अगरबत्ती, पापड़ आदि बनाने का प्रशिक्षण दिलाकर काम से जोड़ा.

मीरा देवी ने बिहार में ऐसे कितने ही स्वयं सहायता समूह शुरू करवाए जिनमें आज महिलाएं अपनी रोज़ी रोटी कमा रही है और अपने परिवार को मदद भी कर रही है. मीरा देवी ने जो काम किया उसकी जितनी सरहाना की जाए कम है. सिर्फ़ बिहार में ही क्यों, अगर पुरे देश की महिलाएं अपने स्वयं सहायता समूह तैयार करे और ऐसे गैरकानूनी धंधो को बंद करवा दे, तो देश को सुधरने में ज़्यादा समय नहीं लगेगा.

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