अब रोड पर सिर्फ मजदूरी नहीं, ठेकेदार बनी दीदियां

जिन सड़कों को बनाने में महिलाओं ने मजदूरी की, अब उन सड़कों की देखरेख के लिए ठेकेदार बना दिया. MPRDC के साथ बकायादा MOU साइन कर ये जवाबदारी आजीविका मिशन के एक समूह को सौंपी. अब आने वाले पांच सालों 2028 तक ये महिलाएं ही अलॉट की गई सड़कों को संभालेंगी.

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ब्लॉक मैनेजर तृप्ति बैरागी के साथ समूह महिलाएं (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)

चंदा के चहरे पर अब मुस्कान है. चंदा कहती है - "बरसों से मजदूरी के लिए भटकना पड़ता था. अब जहां काम करेंगे उस जगह के मालिकन भी हो गए. यह कभी सोचा नहीं था. जिन सड़कों को बनाने में ठेकेदार के पास मजदूरी की आज सड़क की हम ही देखरेख करेंगे. मजदूरी के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा. समूह में जुड़ने से जिंदगी सुधर गई."

     

आदिवासी जिले (Adivasi district) झाबुआ (Jhabua) में आजीविका मिशन (Ajeevika Mission) की महिलाओं को सरकार ने बड़ा तोहफा दे दिया. जिन सड़कों को बनाने में इन महिलाओं ने मजदूरी की, अब उन सड़कों की देखरेख के लिए ठेकेदार बना दिया. प्रदेश का यह सबसे अलग प्रयोग माना जा रहा. मध्य प्रदेश ग्रामीण सड़क प्राधिकरण (MPRDC) के साथ बकायादा MOU साइन कर ये जवाबदारी आजीविका मिशन के एक समूह को सौंपी. अब आने वाले पांच सालों 2028 तक ये महिलाएं ही अलॉट की गई सड़कों को संभालेंगी. इसके लिए समूह (SHG) की सदस्यों को सालाना पैसा भी मिलेगा. ये महिलाएं अब और अधिक आत्मनिर्भर होंगी. 

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झाबुआ के राखी समूह की सदस्य रोड किनारे झाड़ियां हटाते हुए (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)

 

झाबुआ जिले की फ़िलहाल दो रोड का यह काम इन महिला सदस्यों को दिया है.झाबुआ की ब्लॉक प्रबंधक तृप्ति बैरागी कहती हैं -"यह आजीविका मिशन की महिलाओं के लिए बड़ी उपलब्धि है. करड़ावद बड़ी के राखी स्वयं सहायता समूह को ये काम दिया है. यह समूह झाबुआ- कल्याणपुरा रोड से डुंगरालालू तक 1. 01 किमी और झाबुआ-मेघनगर रोड से करड़ावद बड़ी तक 2 . 85 किमी रोड को संभालेंगी. इसके लिए पहले साल समूह को 23 हजार 500 रुपए दिए जाएंगे. यह रुपए हर साल बढ़ेंगे.पांचवे साल यह राशि 27 हजार 500 हो जाएगी. महिलाएं अब मजदूरी के लिए नहीं भटकेगी." इस मिशन में ही ग्राम नोडल कविता कानूनगो कहती हैं-" गांव में समूह की सदस्यों को दूसरे काम भी दिलवाए जा रहे ,लेकिन यह काम मिलने से महिलाएं और उनका परिवार बहुत खुश है। मैं लगातार समूह को गाइड कर रहीं हूं। "   

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ब्लॉक मैनेजर तृप्ति बैरागी समूह सदस्यों को काउंसलिंग करती हुईं (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)

इस काम के बाद समूह की महिलाओं ने मोर्चा संभल लिया. राखी स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष मनता कटारा कहती हैं- "जब हमें बताया गया कि रोड की देखरेख करना है. हमारे लिए ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा. अभी सभी सदस्य दीदी लोन लेकर अलग-अलग रोजगार से जुड़ीं हुई हैं. इस रोड पर अब मालकिन की तरह हो गए. कई दीदियों ने इस रोड बनाने में मजदूरी भी की. हमारी आर्थिक हालत और सुधर जाएगी. 25 से ज्यादा महिलाओं को सीधे रोजगार मिलेगा." इन समूह की महिलाओं को ट्रेनिंग भी दी गई और काम भी समझाया गया. आजीविका मिशन के जिला परियोजना प्रबंधक देवेंद्र श्रीवास्तव कहते हैं -" यह आदिवासी समूह की महिलाओं के लिए बड़ी उपलब्धि है. सदस्य रोड किनारे लगी पेड़ों की झाड़ियां, सड़क शोल्डर, स्लोप, बारिश में रपटों पर पानी भरने के बाद सफाई, रोड किनारे लगे माइल सटोन, पोल आदि की पुताई भी कराएंगे." 

प्रदेश में आजीविका मिशन से जुड़ी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सबसे अलग नवाचार माना जा रहा है. झाबुआ कलेक्टर तन्वी हुड्डा कहती हैं -"आदिवासी जिले की महिलाएं बहुत मेहनती है. आजीविका मिशन से जुड़ने के बाद उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ. ये सदस्य महिलाएं कई तरह के रोजगार से जुड़ीं. एमपीआरडीसी से एमओयू हों के बाद महिलाओं को अलग तरह का रोजगार मिला साथ ही उनका आत्मविश्वास अधिक बढ़ेगा. ऐसी महिलाओं को लगातार प्रोत्साहन दिया जा रहा है." 

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झाबुआ कलेक्टर तन्वी हुड्डा खुद महिअलों के साथ ज़मीन पर बैठ कर चर्चा करते हुए (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)

सबसे पिछड़े और आदिवासी बहुल इस जिले में आजीविका मिशन की महिलाओं ने नई चुनौती मानकर साबित कर दिया कि वे भी बेहतर काम के साथ निर्णय लेने के काबिल हैं. झाबुआ-रतलाम सांसद जीएस डामोर कहते हैं -" सरकार ने उन महिलाओं पर भरोसा किया जिन्हें अभी तक अनपढ़ और कमजोर माना जाता रहा. आजीविका मिशन की समूह सदस्यों आर्थिक मजबूती देने और आत्मविश्वास बढ़ाने में यह एमओयू बड़ा कदम है."

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