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मिठाई की मिठास अब और बढ़ने वाली है, क्योकि इस मिठाई से अब स्वयं सहायता समूह की दीदियों को रोज़गार मिलेगा. बिहार सरकार शराबबंदी कानून को सख्ती से लागू करवा रही है. जिसके बाद नीरा रोज़गार का एक अच्छा ऑप्शन बना. ताड़ और खजूर के पेड़ से जो ताजा रस निकलता है, उसे नीरा कहते हैं. गया जीविका के डीपीएम आचार्य मम्मट ने बताया कि सरकार चाहती है कि जहां लोग पहले नीरा को नशे के रूप में इस्तेमाल करते थे अब हेल्थ ड्रिंक की तरह इस्तेमाल को बढ़वा देंगे. इसे पीने से पीलिया, पेट संबंधित रोग, डिहाइड्रेशन और डायबिटीज़ में राहत मिलेगी.
गया जिले ने इस वित्तीय वर्ष में 11 लाख लीटर से अधिक नीरा बनाने का गोल सेट किया. ग्रामीण क्षेत्रों में 40 से अधिक बिक्री केंद्रों पर नीरा को बेचने की योजना बनाई. मनेर प्रखंड में नीरा से एक से बढ़कर एक टेस्टी खान-पान बनाने का काम मीठी नीरधारा, शुद्ध जल और अमृत उत्पादक समूह की 120 दीदियां मिलकर कर रही हैं. ये नीरा से पेड़ा, लड्डू, तिलकुट सहित अनेक प्रकार की मिठाइयां बनाती हैं. मिठाइयों को पटना के 23 ब्लॉक में करीब 100 अस्थायी स्टालों पर बेचा जाता है. इन स्टॉल के गिनती 240 तक पहुंचाने की योजना है. दुकानों से ऑर्डर मिलना भी शुरू हो गए हैं.
बिहार कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) और तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय (TNAU) एमओयू पर साइन करेंगे. दोनों विश्वविद्यालयों के कृषि वैज्ञानिक मिलकर नीरा को हेल्थ ड्रिंक बनाने के लिए काम करेंगे. तमिलनाडु में सबसे ज़्यादा ताड़ के पेड़ हैं जिसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर नीरा बनाने में किया जायेगा. गया जिले के बांके बाजार प्रखंड के विशुनपुर, बाबा धाम, सैफगंज और रौशनगंज में 4 जगहों पर नीरा बिक्री केंद्र शुरू किये गए, जिससे इन इलाकों में शराबबंदी लागू करने में सहयोग मिलेगा. ग्रामीण इलाके में बड़ी संख्या में लोग ताड़ी के उत्पादन से जुड़े हुए हैं, लेकिन उन्हें नीरा के फायदे की जानकारी देकर इसके उत्पादन से जोड़ा जा रहा है. नीरा से बनीं मिठाई और हेल्थ ड्रिंक न केवल शराबबंदी करने में मदद करेंगे पर स्वयं सहायता समूहों को भी रोज़गार का नया अवसर देंगे.