कोविड-19 महामारी, बढ़ती ग़रीबी, और मानवीय संकटों की वजह से दुनियाभर की स्वास्थ्य प्रणाली पर दबाव पड़ा है. 10 देशों में से केवल एक के पास अपनी वर्तमान स्वास्थ्य योजनाओं को लागू करने के लिए पर्याप्त धन है. ज़रूरी स्वास्थ्य सेवाओं पर महामारी के प्रभावों को हाल में में आई डब्ल्यूएचओ (WHO) सर्वे रिपोर्ट से समझा जा सकता है. सर्वे के अनुसार, लगभग 25 % देशों में अभी भी बीमार बच्चों, गर्भवती महिलाओं, और पोस्ट-नेटल देख-रेख के पर्याप्त इंतिज़ाम नही हैं.
"दुनिया भर में गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं की उच्च दर पर मृत्यु हो रही है. COVID-19 महामारी से स्वास्थ्य प्रणाली को गहरा झटका लगा है", WHO के 'मातृ, नवजात शिशु, बाल और किशोर स्वास्थ्य डायरेक्टर' (Director of Maternal, Newborn, Child and Adolescent Health and Ageing ) डॉ. अंशु बनर्जी (Dr. Anshu Banerjee) ने बताया.
रिपोर्ट से पता चलता है कि हर साल 45 लाख से ज़्यादा महिलाओं और शिशुओं की मौत गर्भावस्था, प्रसव या जन्म के बाद पहले हफ्तों के दौरान हो जाती है. ये हर सात सेकंड में एक मौत के बराबर है. यदि समय पर उचित देखभाल की जाए तो ये आंकड़े कम किये जा सकते हैं, क्योंकि ज़्यादातर मौतें उपचार योग्य वजहों से हुई हैं.
फंडिंग लॉस और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में निवेश की कमी से हेल्थ सेवाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. प्रीमैच्योरिटी पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत की सबसे बड़ी वजह है. एक तिहाई से भी कम देशों में छोटे और बीमार बच्चों के इलाज के लिए पर्याप्त न्यूबोर्न केयर यूनिट्स (newborn care units) हैं.
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (United Nations Population Fund -UNFPA) में टेक्निकल डिवीज़न (Technical Division) के डायरेक्टर डॉ. जुलिटा ओनाबैंजो ने कहा, "गर्भावस्था या प्रसव के दौरान किसी भी महिला या युवा लड़की की मृत्यु उनके मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन है." उन्होंने आगे कहा, "मातृ और नवजात मृत्यु दर को कम करने के लिए मानव अधिकार और लैंगिक समानता पर बल देने वाली एप्रोच अपनानी होगी. साथ ही खराब मातृ स्वास्थ को बढ़ावा देने वाले कारण जैसी सामाजिक-आर्थिक असमानता, भेदभाव, गरीबी और अन्याय से निपटने के लिए काम करना होगा."
आवश्यक दवाओं और पानी-बिजली के साथ कुशल स्वास्थ्य कर्मियों, खासकर दाइयों (midwives) की ज़रुरत है. अपनी प्लानिंग में गरीब महिलाओं और खराब स्थितियों में रह रही महिलाओं को टारगेट कर योजनाओं से जोड़ने का लक्ष्य बनाना होगा.
भारत में महिलाओं और नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य के विषय में जागरूकता फैलाने के लिए स्वयं सहायता समूहों का सहारा लिया जा सकता है. ये महिलाएं ज़मीनी स्तर पर वेक्सीन, स्वच्छता, मेंस्ट्रुअल हाइजीन जैसे मुद्दों पर जागरूकता फैलाने का काम कर रही हैं. ये महिलाएं अपने समुदाय में अच्छी जान-पहचान और पकड़ रखती हैं, जिस वजह से इनकी बात को सुना और माना जाता है. इसका फायदा उठाते हुए, SHG महिलाओं को प्रशिक्षित कर मातृ स्वास्थ और नवजात शिशु की सही तरीके से देख-भाल के विषयों पर समुदाय में सही जानकारी दी जा सकती है.