राजनीतिक भागीदारी से सामाजिक मज़बूती

'शी लीड्स' ने हर क्षेत्र से आने वाली महत्वाकांक्षी महिला लीडर्स के लिए स्टेट गेस्ट हाउस, श्रीनगर में 'वीमेन पायनियरिंग चेंज फॉर पीस एंड प्रॉस्पेरिटी' विषय पर एक दिन का सेशन आयोजित किया. इसमें महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी की ज़रुरत पर चर्चा हुई. 

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मिस्बाह
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She Leads

Image Credits: Only Kashmir

स्वयं सहायता समूहों (Self Help Groups-SHG) से जुड़कर देश की लाखों महिलाएं आर्थिक आज़ादी (Financial Freedom) हासिल कर, अपने परिवार व अपने समुदाय में बदलाव की कहानियां लिख रही हैं. महिलाओं की इस आर्थिक क्रांति (Financial Revolution) में कश्मीर (Kashmir) की महिलाएं भी पीछे नहीं हैं. महिलाएं स्वयं सहायता समूह से जुड़कर फायदा तभी ले सकेंगी जब उनमें लीडरशिप स्किल हो. लीडरशिप के कौशल को बढ़ाने के लिए उन्हें ट्रेनिंग की ज़रुरत है. इसी कड़ी में आगे बढ़ते हुए 'शी लीड्स' ने हर क्षेत्र से आने वाली महत्वाकांक्षी महिला लीडर्स के लिए स्टेट गेस्ट हाउस, श्रीनगर में 'वीमेन पायनियरिंग चेंज फॉर पीस एंड प्रॉस्पेरिटी' (Women Pioneering Change for Peace and Prosperity) विषय पर एक दिन का सेशन आयोजित किया. इसमें महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी पर चर्चा हुई. 

इस सेशन का आयोजन शी लीड्स (She Leads), स्त्री शक्ति- द पैरेलल फ़ोर्स की संस्थापक रेखा मोदी ने न्यूज़ कश्मीर की संपादक फ़रज़ाना मुमताज़ के सहयोग से किया था, जिन्होंने पूरे कार्यक्रम की एंकरिंग भी की. सफीना बेग, अध्यक्ष डीडीसी बारामूला और हजल समिति जम्मू और कश्मीर, शोधकर्ता डॉ. ओवी थोराट, बारामूला कॉलेज के प्रोफेसर शफिया, शिक्षाविद् जावेद कमली, सोशल इंटरप्रेन्योर डॉ. रितु सिंह, राज्य आयुक्त कर डॉ. रश्मी सिंह आईएएस, शोधकर्ता मुश्ताक उल हक सिकंदर और शेख समीर, पत्रकार मीर सबीन गुलरेज़, AIWC सदस्य रोशन आरा ने सेशन में भाग लिया.

रेखा मोदी ने बताया कि आरक्षण (reservation) बहुत ज़रूरी मुद्दा है क्योंकि छत्तीसगढ़ में वर्तमान में भारत में महिला विधायकों की संख्या सबसे अधिक है, जबकि पिछली विधानसभा में जम्मू-कश्मीर में महज 2.2 फीसदी महिला विधायक थीं. कई वर्षों से जम्मू-कश्मीर में महिलाओं के लिए कोई स्टेट कमीशन नहीं है. भारत की आधी आबादी पिछले 30 सालों से राजनीतिक दलों में आरक्षण पाने के लिए इंतजार कर रही है. 

आज के समय में महिलाओं की आर्थिक आज़ादी सबसे ज़रूरी मुद्दा है, लेकिन इसके साथ राजनीतिक भागीदारी (political participation) भी ज़रूरी है, जो अक्सर उनके परिवार और समाज के सहयोग पर निर्भर करती है. आर्थिक आज़ादी तक पहुंचने और राजनीति में हिस्सा लेने के लिए महिलाएं स्वयं सहायता समूहों का सहारा ले रही हैं. इस से जुड़ कर वे अपना रोज़गार शुरू करती हैं और लीडर का रोल भी अदा करती हैं. 

मुश्ताक उल हक सिकंदर कहते है कि राजनीति के क्षेत्र में काम कर रही महिलाओं की ज़िम्मेदारी है कि वे महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को बढ़ाएं. उन्होंने राजनीतिक दलों से महिलाओं को भागीदारी देने का आग्रह किया. महिलाओं की राजनीति में भागीदारी बढ़ने से सामाजिक, आर्थिक, और शैक्षिक विकास को भी गति मिल सकेगी. 

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