"किसी समय एक राइस मिल में दिहाड़ी मजदूरी करने वाली आदिवासी महिलाओं को भी कोरोना काल ने प्रभावित किया. इन्होंने योग्यता स्वयं सहायता समूह बनाया. हिम्मत नहीं हारी. जीविका मिशन से लोन लिया.और मिल खुद चलाने का फैसला किया. जिस मिल में काम करती थी उसकी मालिक बन गई." पीएम नरेंद्र मोदी की यह बात सुनते ही मीना की आंखों में चमक और चहरे पर खुशियां छा आई. मीना कहती है - "जीवन की परेशानियों से जूझकर नए मुकाम खड़े किए और आज उसका परिणाम देश ने देखा. मुझे ख़ुशी है कि आदिवासी बहूल चिचगांव का नाम रोशन हो गया." पीएम मोदी ने अपनी "मन की बात " में बालाघाट जिले के दूरस्थ इलाके चिचगांव की मीना रहंगडाले की मेहनत और स्वयं सहायता समूह की ताकत का ज़िक्र किया. इस ज़िक्र के बात से ही मीना सुर्ख़ियों में है. अब जिला प्रशासन भी मीना की मिसाल दूसरे समूह सदस्यों को देकर उन्हें भी प्रोत्साहित कर रहा है.
धान उत्पादन के लिए चर्चित बालाघाट जिले के चिचगांव की आदिवासी महिलाएं भी एक राइस मिल में काम करती थीं. कोरोना काल में हालत यह हुए कि राइस मिल बंद हो गई. दिहाड़ी मजदूरी करने वाली इन महिलाओं के सामने रोजी-रोटी का संकट हो गया. राइस मिल भी बिकने की नौबत आ गई. मीना रंहगडाले बताती है - "हमने हिम्मत नहीं हारी.चौदह महिला सदस्यों ने योग्यता स्वयं सहायता समूह से कामकाज की शुरुआत की. थोड़ा थोड़ा पैसा इक्कठा किया. शुरू में कुछ लोन लिया.धीरे-धीरे राइस मिल हमने खुद चलाने का फैसला लिया. और अब हमने दो साल के अंदर तीस लाख का मुनाफा कमाया."
समय के साथ समूह की दूसरी महिलाओं ने अपना अलग कारोबार भी शुरू कर दिया. संस्था की सचिव वर्षा ने जहां वेल्डिंग यूनिट डाल दी वहीं गीता बाई ने दूध का कामकाज भी शुरू किया. मीना आगे बताती है -" मन की बात में हमारे समूह का नाम आने के बाद जिले के सभी बैंकों ने सहयोग देना शुरू कर दिया. हमने पांच लाख का लोन लिया. सभी किश्तें समय पर उतारते हैं. मुझे प्रशासन अलग-अलग आयोजनों में बुलाता है. यदि महिलाएं ठान ले तो वह आत्मनिर्भर बन सकती है."
चिचगांव में ही 22 समूह अलग-अलग कारोबार से जुड़े हैं. जिले के आजीविका मिशन के जिला परियोजना प्रबंधक ओमप्रकाश वेदुआ कहते हैं -"आदिवासी बहूल इस जिले में महिलाओं को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने और स्वाभिमान की ज़िंदगी मिले,इस बात के लिए प्रशासन प्रयासरत हैं. चिचगांव की मीना की मेहनत पीएम की मन की बात में शामिल होने से जिले को नई पहचान मिली है." जिले में राइस मिल में कई गरीब किसान अपना धान लेकर आते हैं और पिसाई करा कर चावल अपने स्तर पर बेचते हैं. बालाघाट में इसके अलावा दूसरे उत्पाद भी अपनी पहचान बना चुके हैं.