सुन्दर मखमली गलीचे जिन्हें देखकर अपने पैरो के नीचे रखने का मन नहीं होता, देखे तो ज़रूर होंगे आपने. शहरों के शोरूम्स में रखे ये फर्शों को देखकर तुरंत खरीद लेने का मन भी करता ही होगा. यह एक कालीन हज़ारों में बिकता है, लेकिन कभी सोचा है की इन नायाब गलीचों को किन हाथों ने बनाया? राजस्थान में धौलपुर जिले से लगभग 24 किलोमीटर दूर सैपऊ तालुक का एक छोटा सा गांव, बहरावती जिसकी आबादी 2500 के करीब है. इसी गांव में रहती है वो महिलाएं जो इन सुन्दर फर्शों को दिन-रात मेहनत कर के तैयार करती है. एक दिन में लगभग डेढ़ इंच तक गलीचा बुन जाता है, जिसे पूरा करने में महिलाओं को तीन महीने तक का समय लग सकता है. ये महिलाएं प्रति वर्ग 500 रुपये कमाती है और एक कालीन बाज़ारों में करीब 30,000 रुपये में बिकता है.
धौलपुर स्थित गैर-लाभकारी मंजरी फाउंडेशन द्वारा कालीन-बुनाई में के लिए नया प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया था, जिसके बारे में इनके टीम लीडर विनोद कुमार ने बताया, "मार्च 2020 में गांव की लगभग 30 महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया, और आज वे अपने लिए आजीविका का अच्छाखासा स्त्रोत बना चुकीं है. प्रशिक्षण के अलावा, मंजरी फाउंडेशन मार्केटिंग अवसर भी पैदा करता है और ग्रामीण स्तर के स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं को कर्जे की सुविधा भी देता है." गाँव की महिलाओं द्वारा बुने गए गलीचों को बिचौलिए ले जाते हैं, जो उन्हें उत्तर प्रदेश के आगरा में फिनिशिंग यूनिट में भेजते हैं. गलीचे बनाने वाली कालीन कंपनियां महिलाओं को मुफ्त में मशीनें उपलब्ध कराती हैं. बिचौलिए बुनकरों के घरों में मशीन स्थापित करते हैं और महिलाओं को रंगीन ऊन के लच्छे और कालीन बुनने के लिए एक पैटर्न भी उपलब्ध कराते हैं.
यहाँ की महिलाओं के परिवार में ज़्यादातर पुरुष दिहाड़ी मजदूरी में लगे हुए है. इसीलिए घर को चलाना मुश्किल हो जाता था. महिलाओं ने फैसला किया कि वे कालीन बनाने का काम करेंगी ताकि आपने परिवार की ज़रूरतों को पूरा कर सकें. आज सारी महिलाएं सक्षम है और अपने काम को और आगे बढ़ाना चाहती है. वर्तमान में बिचौलिए इनकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा ले जाते हैं, क्योंकि वे कालीनों के लिए ऑर्डर लाकर इन महिलाओं को देते है. महिलाओं को शुरू से आखिर तक सब कुछ करने का अधिकार दिया जाए तो चीजें उनके लिए काफी बेहतर होंगी. मंजरी फाउंडेशन के विनोद कुमार ने कहा- "हमारी कोशिश है गलीचा बनाने की पूरी प्रक्रिया धौलपुर में ही हो. इससे बिचौलियों की भूमिका खत्म होगी और महिलाएं ज्यादा कमाएंगी." बहरावती में स्वयं सहायता समूह, सिद्धि बाबा राजीविका महिला बचत समिति की सुजाता कुमारी कहती हैं- "गाँव में ऐसी कई महिलाएँ हैं जो गलीचा बनाने के लिए मशीनें और कच्चा माल खरीदने के लिए स्वयं सहायता समूह से ऋण लेने को तैयार हैं."
राजस्थान के धौलपुर में यह एक बहुत बड़ी पहल साबित हो रही है. महिलाएं अपना घर आसानी से चला पा रही है और सशक्त बन रही है. अपनी कला और कौशल के माध्यम से कमाने वाली ना जाने कितनीं महिलाएं है भारत में. हर राज्य में इस प्रकार से काम करने वाली अगर एक भी फाउंडेशन तैयार हो जाए, तो देश का नक्शा बदलने में देर नहीं लगेगी.