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भारत चावल का एक बड़ा उत्पादक और निर्यातक है. यहां चावल की 6 हज़ार से ज़्यादा किस्मों की खेती की जाती है, जो न सिर्फ भारत में, पर विदेश में भी काफी पसंद की जाती है. इन्हीं किस्मों में शामिल है ओडिशा का बांस का चावल या बैम्बू राइस (Bamboo Rice). ये चावल की विशेष किस्म है जो सूखते हुए बांस में उगता है. बांस के पेड़ में फूल आने का मतलब होता है कि वो पेड़ मरने वाला है. बैम्बू राइस या बांस का चावल मरते बांस की आख़िरी निशानी है. यह असल में बैंबू का बीज होता है जो चावल जैसा दीखता है, जिसे कई जनजातियों में खाया जाता है.
बालासोर (Balasore) सहित ओडिशा (Orissa) के कई हिस्सों में इस फ़सल से कई आदिवासियों का रोज़गार जुड़ा है. बालासोर के बरुनसिंह पंचायत के मालगांव में एक महिला स्वयं सहायता समूह (Self Help groups-SHG) ने बांस के चावल की कटाई की कला में महारत हासिल कर ली. इस अनोखे चावल को बाज़ार में बेचकर ये महिलाएं अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार ला रही हैं. यह चावल आसानी से नहीं मिलता है क्योंकि आमतौर पर बांस के पेड़ में 50-60 साल बाद फूल निकलते हैं. ये कहना ग़लत नहीं होगा कि 100 साल में 1-2 बार ही बांस के चावल उगते हैं. साफ़-सुथरा बांस का चावल इकट्ठा करने के लिए काफी मेहनत और समय लगता है, जिससे यह दुर्लभ और बाद में महंगा हो जाता है.
आयुर्वेद में इसका प्रयोग फैट कम करने, पॉइजनिंग खत्म करने और वॉर्म इन्फेस्टेशन ठीक करने में किया जाता है. इसका स्वाद हल्का मीठा और कसैला होता है. बैम्बू राइस स्ट्रेंथ और इम्यूनिटी को बढ़ाने में फायदेमंद है. बैम्बू राइस को बेच स्वयं सहायता समूह की महिलाएं आमदनी को बढ़ाने के साथ इस पौष्टिक चावल के इस्तेमाल को भी बढ़ावा दे रही हैं.