आत्मनिर्भर भारत और चेतन समाज के संकल्प के साथ जयपुर के केशव विद्यापीठ में सेवा भर्ती का तीन दिवसीय राष्ट्रीय सेवा संगम सम्पन्न हुआ. यहां महिलाओं ने समूह के साथ सशक्तिकरण और स्वावलंबी बनने पर विचार किया. इन्हीं में से एक था इंदौर से आया स्वयं सहायता समूह वैभवश्री. सेवा संगम में आयोजित प्रदर्शनी में अपने समूह के उत्पाद लेकर आईं वैभवश्री समूह की प्रतिनिधि कविता वाघमरे गर्व से बताती हैं - "कभी तीन हजार रुपये की सामूहिक बचत से शुरू हुई यात्रा आज कम से कम 30 हजार प्रति माह के मुनाफे पर पहुंच चुकी है."
सेवा भारती, इंदौर नगर प्रमुख कविता ने बताया- "सेवा भारती के सहयोग से स्थानीय बहनों को सिलाई प्रशिक्षण के साथ अचार, पापड़, बड़ी, मुरब्बा, गुलदस्ते बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है. कुछ बहनें घर पर ही उत्पाद बनाकर वैभवश्री तक भेजती हैं. वैभवश्री ने दिपावली पर लगाई जाने वाली लाइट की लड़ियां भी बनाई है. आज समूह घरों में बैठी महिलाओं से 50 हजार से अधिक दीपावली की लाइटिंग वाली लड़ियां बनवा रहा है. कविता की आंखों में चमक आ जाती है, जब वे बताती हैं कि इंदौर में चीनी लाइट लड़ियां लगाना बंद ही हो गया है.
वैभवश्री में कुर्ता पायजामा, कपड़ों के थैले, लंगोट, झंडे सब सामान सालभर बिकता है. इसके अलावा राखियां, दीपावली की लड़ियों की भी सालभर बिक्री होती है. समूह की महिलाएं न केवल खुद के लिए बल्कि अपने से कमज़ोर का भी साथ दे रहीं है. कविता का कहना हैं- "हमें चाहे प्रशिक्षण हो या कच्चा माल सेवा भारती से हर समस्या का हल तुरंत मिलता है. यह सब लाकर बहने घर पर ही झंडे, बैग, कुर्ते, पायजामा आदि सिल कर तैयार करती हैं. कोरोना काल मे बहनों ने मास्क बनाकर भेजे." यह समूह तीन साल से चल रहा है, जिसमे 10 महिलाएं हैं. तीन साल पहले ये 10 महिलाएं 100 रुपये की सामूहिक बचत के साथ जुटी थीं. अब इनकी यह बचत 5000 रुपये महीना पहुंच गई है. आज ये इतनी आत्मनिर्भर हैं कि आपस में लोन भी दे देती हैं और बड़े बैंकों के मोटे ब्याज चुकाने से भी बच जाती हैं. आपसी सहयोग और कर्मठता की मिसाल देख कर क्षेत्र की और भी बहनें प्रेरित हुई है.
यह कहानी सिर्फ वैभव श्री समूह की ही नहीं बल्कि देश के ज़्यादातर SHGs की है, जिन्होंने बहुत कम पैसे जोड़कर आज बहुत बड़ा व्यवसाय खड़ा कर लिया है. वैभव श्री की कहानी सेऔर भी स्वयं सहायता समूहों को प्रेरणा लेनी चाहिए, क्यूंकि अगर यह महिलाएं बिना डरे अपनी ज़िंदगियाँ सवार सकतीं है तो, दूसरी महिलाएं क्यों नहीं.