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महिलाओं के सशक्तिकरण (women empowerment) की चाबी आर्थिक आज़ादी (financial freedom) है. आर्थिक रूप से सक्षम होने पर महिलाएं सामाजिक और आर्थिक बदलाव (social and economic change) की अगुवाई करती हैं. आज देशभर में महिलाओं को वर्कफोर्स (female workforce) से जोड़ा जा रहा है, ताकि राज्य और देश की अर्थव्यवस्था में वे भागीदार बन सकें. शहर के साथ-साथ ग्रामीण महिलाएं (rural women) भी अपना रोज़गार शुरू कर कार्यबल का हिस्सा बन रही हैं. रोज़गार की शुरुआत करने के लिए वे स्वयं सहायता समूहों (Self Help Groups) को ज़रिया बना रही हैं. समूह (SHG) से जुड़कर वे आत्मनिर्भरता का सफर शुरू करती हैं. देश के और राज्यों की तरह बंगाल में भी स्वयं सहायता समूह की संख्या बढ़ रही है.
हाल ही में, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Bengal CM Mamta Banerjee) ने ट्वीट कर कहा, "जब महिलाएं सशक्त होती हैं, तो समुदाय समृद्ध होता है!" बंगाल में स्वयं सहायता समूह महिला सशक्तिकरण का कारगर ज़रिया बन रहे हैं. ट्वीट में उन्होंने बंगाल SHG से जुड़े कुछ आंकड़े साझा किया. बताया कि पिछले 12 वर्षों में, स्वयं सहायता समूहों की क्रेडिट सप्लाई (credit supply) 25 गुना बढ़ी है. 2010-11 में 93,425 से बढ़कर 2022 -23 में समूहों की संख्या 6.77 लाख हो गई. पिछले 12 सालों में क्रेडिट 443 करोड़ रुपयों से बढ़कर 13,660 करोड़ हो गया.
सरकार अलग-अलग योजनाओं के तहत स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा दे रही है. ज़्यादा से ज़्यादा महिलाओं को इससे जुड़ने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. उन्हें ट्रेनिंग देकर, आसान लोन देकर, और बचत के लिए प्रोत्साहित कर आर्थिक आज़ादी का रास्ता दिखाया जा रहा है.