'इंडिया' नाम ही नदी के नाम से पड़ा. इंडस या सिंधु नदी ने हमें नाम दिया इंडिया. नदी को प्रकृति का उपहार, ईश्वर का आशीर्वाद ,जीवन का आधार माना गया. नदियों और झीलों के तट पर बसी गृहस्तियां और नदी के पानी से सींचते खेतों ने भारत को खेती में अव्वल पहचान दिलाई. लेकिन, आज भारत में 70% नदियां प्रदूषित हैं और इनका पानी इस्तेमाल के लिए अनुचित. नदियों के लिए अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई 1997 से हर साल 14 मार्च को मनाया जाता है. भारत में 400 से ज़्यादा नदियां हैंऔर इस साल 'नदियों का अधिकार' थीम हैं.
SHG समाज और जीवन के हर क्षेत्र में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं वहीं जल संरक्षण और जल संवर्धन में भी पीछे नहीं हैं. देश में रोज़ 4 करोड़ लीटर गन्दा पानी नदियों में बहा दिया जाता है जिससे हो रहे नुक्सान आज इंसान हो या जानवर सब भुगत रहें हैं. लेकिन, प्रदुषण के काले बादलों के बीच से SHG की पहल बेहतर कल की उम्मीद जगा रही है. भारत में महिला स्वसहायता समूहों ने अपने जल संरक्षण प्रयासों से नदियों और झीलों को बचाने में अहम भूमिका निभाई. राजस्थान में जल सहेलियों ने जल संरक्षण के बारे में जागरूकता फैलाई और पानी को बचाने वाले तालाब, बंधान जैसी संरचनाओं के निर्माण और रखरखाव में मदद करती है. समूह ने राजस्थान में कई सूखे जल निकायों को बचाने और वापिस चालू करने में मदद की.
महाराष्ट्र में पानी फाउंडेशन महिलाओं को उनके गांवों में जल योद्धा बनने के लिए ट्रेनिंग देता है. ये महिलाएं जल संरक्षण के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए काम करती हैं और वाटरशेड संरचनाओं जैसे मिट्टी के बांधों, खाइयों और रिसाव टैंकों के निर्माण में मदद करती हैं.असम में नारी शक्ति पुरस्कार जो कि भारत सरकार विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान देने वाली महिलाओं को देती है. यह पुरस्कार असम की महिलाओं के एक समूह को दिया गया था जिन्होंने ब्रह्मपुत्र नदी की सफाई के लिए एक स्वसहायता समूह बनाया. उन्होंने प्लास्टिक कचरे के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता पैदा की और नदी और उसके किनारों को साफ करने का अभियान शुरू किया.
उत्तराखंड में महिलाओं ने राज्य के जल संसाधनों की रक्षा के लिए समूहों का गठन किया. उन्होंने वर्षा जल संचयन प्रणाली (रेन वॉटर हार्वेस्टिंग ) और पारंपरिक जल प्रबंधन प्रथाओं को दोबारा शुरू करने के लिए जागरूकता फैलाई. गुजरात का उजेली गांव जल संरक्षण का एक मॉडल है. गांव की महिलाओं ने बारिश के पानी को इकट्ठा करने और इसे ज़मीन के अंदर टैंकों में जमा करने के लिए एक प्रणाली बनाई. गांव ने पानी को रिसाइकिल करने के लिए वेस्टवाटर ट्रीटमेंट प्लांट भी लगाया.
ये तो बस कुछ ही कहानियां हैं, देशभर में कई महिला स्वसहायता समूह हैं जो जल संरक्षण और नदियों और झीलों को बचाने की दिशा में काम कर रहे हैं ताकि सूखती नदियों को बचाया जा सके और इनके साफ़ पानी में घुलते केमिकल और प्लास्टिक को रोका जा सके. इन समूहों को सरकार द्वारा ट्रेनिंग और तकनीक मुहैय्या करवाई जानी चाहिए ताकि योजनाबद्ध तरीके से ये समूह नदियों को बचाने का काम कर सके. साथ ही इन महिलाओं का साथ देने के लिए इस दिशा में काम कर रही संथाओं और आम लोगों को भी आगे आना होगा, तभी इस मुहीम को और बढ़ाते हुए 311 प्रदूषित नदियों को बचाया जा सकता है.