आज चारों तरफ़ नेचर को बचाने की चर्चा है. हर वो चीज़ जो हमारे पर्यावरण को नुक्सान पहुंचाए, उसके विकल्प ढूंढे जा रहे हैं. प्लास्टिक, फैक्ट्री, वाहन सब पर्यावरण को नुक्सान पहुंचा रहे हैं. इस लिस्ट में वॉल पेंट भी शामिल है. पेंट हमारे घर, फर्नीचर, और सामान को रंग देकर उनकी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं. लेकिन ये रंगबिरंगे पेंट जिन केमिकल से बनाये जाते हैं वह ओज़ोन को नुक्सान पहुंचाकर ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाते हैं. इस पेंट का नेचुरल विकल्प निकाला है स्वसहायता समूहों ने. इन महिलाओं ने गोबर से जैविक पेंट बनाकर तैयार किया. ये गोबर पेंट पानी और प्राकृतिक रंग जैसे हल्दी, इंडिगो और मेंहदी को मिलाकर बनाये जाते हैं. मिश्रण को फिर दीवारों, फर्श और अन्य सतहों पर लगाते हैं. गाय के गोबर में प्राकृतिक एंटीसेप्टिक गुण होते हैं, और इस पेंट का इस्तेमाल कीड़ों, बैक्टीरिया और फंगस को हटाने में भी मदद करता है.
छत्तीसगढ़ में गाय के गोबर से प्राकृतिक पेंट बनाने के लिए 19 इकाइयां स्थापित की गई. 13,063 SHG की 150,036 महिलाएं गोबर पेंट बना रही हैं. छत्तीसगढ़ में गाय के गोबर से बने लगभग 60 प्रतिशत प्राकृतिक पेंट महिला स्वसहायता समूहों (SHG) के ज़रिये बाज़ार में बेचे जा रहे हैं. भूपेश बघेल सरकार गौठान (पशुधन शेड) योजना के तहत पशुपालकों से 2 रुपये किलो के हिसाब से गाय का गोबर खरीदती है और इसे स्वसहायता समूहों को देती है ताकि वे इसे प्राकृतिक पेंट और वर्मीकम्पोस्ट में बदल सकें.अब तक, इन इकाइयों ने 44,160 लीटर प्राकृतिक पेंट बनाया. उन्होंने 26,292 लीटर की बिक्री से 47.71 लाख रुपये का मुनाफा कमाया है. रायपुर जिले ने सबसे अधिक पेंट (20,841 लीटर) का उत्पादन किया, इसके बाद कांकेर (7,878 लीटर) का स्थान रहा. महिला SHG ने 200 करोड़ रुपये से अधिक की कम्पोस्ट खाद बेची. गांवों में स्वसहायता समूह जैविक खाद और गाय के गोबर से बने कीटनाशकों के उत्पादन और बिक्री के साथ-साथ गो-कश्त, मिट्टी के दीये, अगरबत्ती, मूर्ति और अन्य सामग्री जैसी वस्तुओं का उत्पादन और बिक्री कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.
छत्तीसगढ़ के अलावा और भी राज्यों में गोबर पेंट बनाने का काम SHG महिलाएं ज़ोरो-शोर से कर रही हैं. राजस्थान का कुम्भा महिला स्वसहायता समूह एक दशक से ज़्यादा समय से गाय के गोबर का पेंट बना रहा है. उन्होंने अपने पर्यावरण के अनुकूल पेंट के लिए पहचान हासिल की है और अपने काम के लिए कई पुरस्कार प्राप्त किए हैं.तमिलनाडु की महिला विकास स्वसहायता समूह ने गाय के गोबर का पेंट बनाना शुरू किया, ताकि उनके मवेशियों के कचरे का उपयोग किया जा सके और आय उत्पन्न की जा सके. बिहार के सनिता देवी महिला स्वसहायता समूह ने 2018 में गाय के गोबर का पेंट बनाना शुरू किया.
देशभर में और भी जगहों की SHG महिलाएं गोबर से पेंट बना कर पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं को भी बढ़ावा दे रही हैं. इन महिलाओं को सही ट्रेनिंग और तकनीक तक पहुंचाकर देकर पर्यावरण संरक्षण के और भी मुद्दों पर काम किया जा सकता है. इन महिलाओं के सहयोग और उनके इनोवेशन का सहयोग लेकर ज़मीने स्तर पर नेचर फ्रेंडली प्रेक्टिसेस को लागू करवाया जा सकता है.