अब नहीं मिलेगा रंग में भंग

पूरे भारत में कई जगहों पर स्वसहायता समूहों की महिलाएं सब्ज़ी, फूलों ओर पत्तियों से नेचुरल गुलाल बना रहीं है. अब आप इन रंगों से बिना अपनी त्वचा की चिंता किये होली पर धूम मचा सकते हैं.

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रंगों भरी पिचकारी, उड़ता गुलाल, गुजिये की महक, और चारों ओर बिखरी खुशियां.  लेकिन होली के रंग में भंग मिला सकते हैं सिंथेटिक गुलाल.  हर साल लगभग 1 करोड़ टन रासायनिक/सिंथेटिक रंगों का इस्तेमाल खुशियों को फीका कर देता है. हर होली पर हम स्किन इन्फेक्शन या आंख में जलन की परेशानी के बारे में सुन ही लेते है. इन सिंथेटिक रंगों का न सिर्फ त्वचा बल्कि पर्यावरण पर भी बुरा असर पड़ता है. यही वजह है कि अक्सर विशेषज्ञ लोगों को होली में कुदरती या हर्बल रंग को इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं.

पूरे भारत में कई जगहों पर स्वसहायता समूहों की महिलाएं सब्ज़ी, फूलों ओर पत्तियों से नेचुरल गुलाल बना रहीं है. अब आप इन रंगों से बिना अपनी त्वचा की चिंता किये होली पर धूम मचा सकते हैं. आइये, देखते हैं इस बार कोनसे SHG हर्बल रंगों से इस होली में रंग भर रहें हैं -

उत्तर प्रदेश के कई जिलों की महिलाएं पलाश के फूलों से हर्बल गुलाल तैयार कर रही हैं.  उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर, सोनभद्र, वाराणसी,चंदौल, और चित्रकूट जिले की SHG के 5 हज़ार किलो से ज़्यादा हर्बल गुलाल ज़ोर-शोर से बाज़ारों में बिके. पलाश के फूलों से इन महिलाओं ने लाल, हरे, बैंगनी, गुलाबी गुलाल तैयार किये. लंदन समेत भारत में मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार और उत्तराखंड में भी ये गुलाल बेचे. 

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ग्राम नागारास, छत्तीसगढ़ के मुस्कान समूह की दीदियों के लिए दोगुनी खुशी साथ लेकर आया है. उनके आस-पास उगने वाली घास ओर पौधों से ये हर्बल गुलाल तैयार किया. रोज़गार न मिल पाने की वजह से लड़कियां ओर महिलाएं आस-पास के गांवों में मिर्ची तोड़ने के लिए जाया करती थीं. पर अब नहीं जाना पड़ता. 

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साहूपार ग्राम पंचायत में उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत SHG ने फूलों से केमिकल रहित गुलाल बनाये. जिलाधिकारी प्रियंका निरंजन तथा पुलिस अधीक्षक आशीष श्रीवास्तव ने ग्राम पंचायत साहूपार पहुंचकर रंगों का निरीक्षण किया ओर बस्ती महोत्सव  पर  समूह के लिए स्टॉल लगवाने का भी बोला. 

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छत्तीसगढ़ में स्वसहायता समूह की महिलाओं ने पालक, लालभाजी, हल्दी, जड़ी- बुटी व फूलों से हर्बल गुलाल बनाये. इसके अलावा मंदिरों एवं फूलों के बाज़ार से निकलने वाले पुराने फूलों की पत्तियों को सुखाकर फिर पीसकर गुलाल तैयार किया. फूलों के साथ ही चुकंदर, हल्दी, आम और अमरूद की हरी पत्तियों को भी प्रोसेस किया ओर मिलाया. पिछले साल की डिमांड देखते हुए इस बार भी जमकर हर्बल गुलार बेचने की  तैयारी है. 

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राजस्थान में SHG महिला स्वरोजगार समिति ने फूलों, हल्दी और अन्य नेचुरल चीज़ों का इस्तेमाल कर हर्बल गुलाल बनाना शुरू किया. यह समूह राज्य के दूसरे समूहों को हर्बल गुलाल बनाने की ट्रैनिंग भी दे रहा है.

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केरल में कुदुम्बश्री के एक महिला स्वसहायता समूह ने हल्दी, गुड़हल के फूल और गेंदे के फूल से इस होली के लिए हर्बल गुलाल बनाना शुरू किया ओर दुसरे समूहों को ट्रेनिंग भी दी. 

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ऐसे कई स्वसहायता समूह है जो नेचुरल सामग्री से हर्बल गुलाल बना रहे हैं. ये SHG नेचर फ्रेंडली प्रैक्टिस को बढ़ावा देकर ग्रामीण महिलाओं की आर्थिक मज़बूती का ठोस ज़रिया बन रहें हैं. इन हर्बल रंगों से इस बार की होली सुरक्षित और ज़्यादा रंगबिरंगी हो सकेगी. 

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