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Image Credits: Google Images
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AI के इस दौर में तकनीक हर क्षेत्र में अपना ज़ोर जमा रही है. तकनीक के हिसाब से न ढलने पर पिछड़ने का डर हर पेशेवर के काम करने के तरीके में बड़ा बदलाव ला रहा है. भारत में खेती इस बदलाव से अछूती नही रही. खेती सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 19 प्रतिशत है और लगभग दो-तिहाई आबादी इस क्षेत्र पर निर्भर है. पिछले कुछ समय में एग्रोटेक्नोलॉजी ने किसानों के काम को आसान किया. बढ़ती तकनीकी उपकरणों की लिस्ट में ड्रोन भी शामिल है. यह एक इंसान के बिना उड़ाए जाने वाला छोटा विमान है, या यूं कहें कि एक उड़ने वाला रोबोट है. इसे दूर से ही रिमोट के माध्यम से कंट्रोल किया जाता है. इसमें जीपीएस बेस्ड नेविगेशन सिस्टम और अनेक सेंसर होते हैं. यह बैटरी की सहायता से काम करता है. इसमें कई तरह के टूल्स जैसे कैमरा, कीटनाशक छिड़काव यंत्र भी लगे होते हैं. मल्टी-रोटर ड्रोन, फिक्स्ड विंग ड्रोन व सिंगल-रोटर हेलीकॉप्टर ड्रोन आदि कृषि ड्रोन किसान अपने काम को आसान और जल्दी करने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं.
उत्तरप्रदेश में अब कृषि समितियों और स्वयं सहायता समूहों को 40 प्रतिशत सब्सिडी पर ड्रोन दिए जाएंगे. कृषि विभाग के डिप्टी डायरेक्टर गिरीश चंद्र ने बताया पहले चरण में यूपी में 88 ड्रोन मुहैया कराएंगे. एक ड्रोन 10-12 किलोग्राम नैनो (लिक्विड) यूरिया या कीटनाशक ले जा सकेगा. 8 बीघा ज़मीन पर सिर्फ 10 मिनट में ऊपर से छिड़काव करेगा. काम लागत और सीमित समय में अब किसान बड़े पैमाने पर छिड़काव का काम कर सकेंगे. पहले छिड़काव का सिर्फ 30 % ड्राई नाइट्रोजन ही फसल अब्सॉर्ब कर पाती थी लेकिन ड्रोन की मदद से 86 % तक अब्सॉर्ब हो सकेगा. इस ड्रोन की कीमत 7 -10 लाख तक होगी जिसको खरीदने के लिए कृषि समितियों और स्वयं सहायता समूहों को 40 प्रतिशत सब्सिडी मिलेगी.
हरयाणा, महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, और कर्नाटक में कृषि ड्रोन का इस्तेमाल बढ़ रहा हैं. स्वयं सहायता समूह देशभर में कृषि तकनीक को बढ़ावा दे रहे हैं. कृषि सखी और पशु सखी बन समूह की दीदियां किसानों को एग्रोटेक्नोलॉजी में हो रहे बदलावों और सरकारी स्कीमों के बारे में जानकारी दे रहे हैं. 70 % ग्रामीणों की आमदनी खेती से आती है. इन 70 % को यदि तकनीकी सहायता दी जाये तो उन्हें आमदनी बढ़ाने में मदद मिल सकेगी. कृषि तकनीक की ऐसी स्कीमों में स्वयं सहायता समूहों को और भी राज्यों में शामिल किया जाना चाहिए ताकि उनकी आमदनी के अवसर बढ़े और अपने गांवों में वे एग्रोटेक्नोलॉजी के फायदों को पंहुचा सकें.