इस साल के आखिर में चुनाव है और अभी से मौसम न केवल चुनावी बल्क़ि होली के कारण गुलाबी भी है. इसीलिए सरकार ने भी बजट रंगीन तैयार किया है ख़ासतौर पर महिलाओं के लिए. अब उनकी अहमियत प्रदेश राजनीति में भी ख़ास हो गयी है, क्योंकि पिछले चुनाव में 2 % का स्विंग महिलाओं ने बीजेपी की तरफ किया. इस चुनाव में यह स्विंग और बढ़ने की उम्मीद बीजेपी को हैं. इस विधानसभा टर्म के अपने आखरी बजट में भाजपा सरकार ने महिलाओं के लिए योजनाओं की बिछात बिछा दी.इस बिछात का रंग पूरी तरह से "गुलाबी" है.
सरकार के इस बजट में लेडी फरफ्यूम की खुशबू है.आप समझ ही गए कि सरकार ने इस बार बजट की रुपरेखा की बुनियाद और विशेषज्ञों से ली राय में प्रदेश की हर उम्र की महिलाएं और युवतियां शामिल हैं. मतलब साफ है कि पिछले विधानसभा चुनाव में चाहे कांटे की टक्कर रही हो,हाथ से सत्ता फिसल गई हो लेकिन प्रदेश की मां,बहने और भांजियां मामा मुख्यमंत्री शिवराज पर मेहरबान रही. चुनावी नतीजे और आंकड़ों में दो प्रतिशत अधिक वोट सिर्फ महिला वोटर से ही भाजपा को मिले.भाजपा के थिंक टैंकर्स और राजनितिक पंडितों ने ही इस दो प्रतिशत अधिक वोट और महिला वोटरों को ध्यान में रख बजट तैयार किया. मामा शिवराज ने बहनों और महिलाओं के इस वोट कर्ज उतारने के साथ अगली बार चुनावी वोट के लिए करवाने करने की कवायद भी शुरू कर दी. यदि हम इस आखरी बजट का विश्लेषण करें तो बजट का एक तिहाई हिस्सा तो महिलाओं की योजना के लिए बुक कर दिया.खास बात यह है कि इस समय वोटरों की संख्या 5 करोड़ 39 लाख 85 हजार 876 हो गए . इसमें 13 लाख 39 हजार नए मतदाता के नाम जुड़ गए . इसमें पुरुष के मुकाबले महिला वोटर ज्यादा है. करीब 75 हजार से ज्यादा इनकी संख्या है. एमपी के 41 जिलों में महिलाओं का आंकड़ा ज्यादा है. प्रदेश के 52 में से 41 जिलो में महिला वोटरों के नाम ज्यादा जुड़े हैं. यानि महिला वोटरों का आंकड़ा 7.07 लाख बढ़ा है.
भाजपा की सरकार ने सबसे बड़ा फोकस महिलाओं के सबसे बड़े समूह स्वसहायता यानि सेल्फ हेल्प ग्रुप पर किया. 47 लाख महिलाओं के चार लाख समूह पूरे प्रदेश के हर हिस्से में आर्थिक बदलाव और संपन्नता की सीढ़ियां चढ़ रहीं हैं.यही वजह सरकार ने इस बजट में 5 हजार करोड़ 84 लाख रुपए समूहों के लिए रिजर्व कर दिए. उधर लाडली बहना योजना में सरकार 8 हजार करोड़ रुपए भी देकर बहनों पर मेहरबान हो गई. SHG भाजपा के लिए कई मौकों पर बैसाखी बन खड़ी हो जाती है. सीएम की सभा में भीड़ जुटाना हो या आर्थिक आत्मनिर्भरता की मिसाल अंतरराटष्ट्रीय पटल रखना हो,सभी जगह गुलाबी साड़ी पहने हुए दीदियां दिखाई दे जाती हैं.सरकार को भरोसा है कि स्वसहायता समूह की महिलाएं ही "लाड़ली बहना" में ब्रिज का काम कर देंगी.सरकार की सक्रियता इतनी अधिक दिखाई दे रही है कि 5 मार्च को मुहर और लिस्ट बनने का काम शुरू. फाइनल लिस्ट मई में आ जाएगी. जून में ऐसी लाडलियों के खाते में रुपए भी जमा हो जाएंगे.
प्रदेश में चुनाव के लिए चाहे अभी छह महीने बाकी है. आम जनता फ़िलहाल अपने काम में व्यस्त हैं ,लेकिन इस विधान सभा चुनाव के आखरी बजट में भाजपा की सरकार ने वोटर्स को अलग-अलग अंदाज़ में लुभाने का प्रयास किया.विपक्षी पार्टी चाहे कितना भी इस बजट का विरोध करे ,लेकिन महिलाओं की भावुकता और और उनके लाडली लक्ष्मी के बाद अब बहना जैसे शब्दों के नाम से प्रस्तावित योजनाओं ने नींद उड़ा दी. और अभी तक कोई ठोस काउंटर नज़र नहीं आया. हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने लाडली बहना के खाते डेढ़ हजार रुपए प्रति माह देने का काउंटर खेला. फ़िलहाल भाजपा ने ऐसे खातों में एक हजार रुपए जमा करने का प्लान किया है.
प्रदेश सरकार और रास्तों पर भी अपनी वोटर फेंसिंग करने का प्रयास करती नज़र आ रही है. इस बजट में महिलाओं पर मेहरबानी का दूसरा बड़ा कारण प्रदेश की वोटर लिस्ट पर भाजपाइयों की पैनी नज़र. प्रदेश के आदिवासी बहूल जिले में पुरुष वोटर की तुलना में महिला वोटर्स की संख्या ज्यादा है. मंडला ,डिंडौरी,अलीराजपुर ,झाबुआ जैसे जिले की 18 विधानसभा में ये संख्या अधिक है. इस कारण पिछले साल की तुलना में बजट में महिलाओं के हक़ की राशि 22 प्रतिशत अधिक रखी गई है.
राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि महिलाओं के मनोविज्ञान और घर में प्रभाव का असर इस बजट पर दिखा. चुनावी बजट पर सरकार और आईएएस अफसरों का मैराथन मंथन साफ दिखाई दे रहा है. यदि राजनीतिक पंडितों की बात मानें तो समूह की 47 लाख महिलाएं और खासकर ग्रामीण महिलाएं किसी भी पार्टी को सत्ता का ताज़ पहना सकती है. इस ताकत को ही दोनों प्रमुख पार्टियां भाजपा और कांग्रेस अच्छे से समझ चुकीं हैं.इसलिए सारा दांव इन महिला वोटर्स पर लगाने में कोई पीछे हटने को तैयार नहीं है. लगातार सत्ता में काबिज़ भाजपा की एंटीइम्बेंसी का गुलाबी रंग में रंगा यह बजट बड़ा तोड़ भी बन सकता है.उधर कांग्रेस अगले टर्म के लिए नया ट्रम्प कार्ड ढूंढ रही है. बहरहाल छह महीने में जगह -जगह महिलाओं और उनकी पूछ-परख के नज़ारे देखने को जरूर मिलेंगे.
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