लगभग 31 साल पहले उत्तर प्रदेश के गौंडा जिले में अपराधियों के साथ मुठभेड़ और एक डीएसपी की हत्या की घटना चाहे वक़्त के साथ लोगों के दिमाग से निकल गई हो. लेकिन एक महिला ने अपने पति की मौत और उन्हें न्याय दिलाने की लंबी लड़ाई मरते दम तक लड़ी. उधर बेटी अपने पिता के सपने को पूरा करने में जुटी हुई थी.
किसी बेटी का अपने पिता के लिए लगाव किस हद तक हो सकता है, यह करीब से जानना है तो किंजल सिंह की ज़िंदगी को जरूर पढ़ना चाहिए. और वह भी उस बेटी का लगाव जिसे शायद अपने पिता की सूरत तक याद नहीं. उत्तर प्रदेश की सबसे चर्चित, ईमानदार और तेज तर्रार आईएएस अफसर किंजल सिंह ने अपने पिता के उस सपने को पूरा कर दिया जो उन्होंने मरते दम तक देखा. इस बेटी का पिता के प्रति लगाव इतिहास में दर्ज हो गया.और वह भी लगभग २६ साल बाद. किंजल सिंह की कहानी कोई फ़िल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं लेकिन यह हकीकत की घटना है. किंजल सिंह की कहानी रोमांच, मेहनत, जूनून और ज़िद के साथ दर्द के बीच खड़ी हुई. फादर्स-डे पर किंजल सिंह की ज़िंदगी युवाओं के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं.
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घटना साल 1982 मार्च की है. गौंडा जिले में पदस्थ डीएसपी केपी सिंह अपने साथियों के साथ अपराधियों से मुठभेड़ में शामिल हुए. फायरिंग इतनी जबरदस्त थी कि समझना मुश्किल हो गया गोली किस तरफ चल रही.इसी बीच कुछ गोली केपी सिंह को लगी. इस घटना में उनकी मौत हो गई. सिंह परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट गया. केपी सिंह की पत्नी को बनारस के ट्रेज़री में क्लर्क की जॉब मिल गई. उस समय किंजल सिर्फ छह माह की थी. इससे भी बड़ा दुःख यह था कि पति को खो देने वाली विभा सिंह ने छह माह बाद दूसरी बेटी प्रांजल को जन्म दिया.
अपनी बेटी प्रांजल को गोद में लिए विभा बलिया, बनारस से दिल्ली के सुप्रीम कोर्ट तक चक्कर के काटती रही. विभा की सैलरी का एक बड़ा हिस्सा कोर्ट-कचरी में खर्च हो गया. मासूम किंजल अपने पिता की सूरत से बेखबर थी,लेकिन कोर्ट के रास्तों पर चप्पल घिसते उनकी मां की बेबसी दिमाग में लगातार घर कर गई.
समय गुजर रहा था. किंजल के पिता बेटी को आईएएस अफसर बनते देखना चाहते थे.और प्रांजल की मां भी अपनी बेटियों को आईएएस अफसर बनते देखना चाहती थी. पड़ौसियों और समाज को विभा और उनके पति के इस सपने पर भरोसा नहीं होता. किंजल दिल्ली आ गई. ग्रेजुएशन टॉप पोज़िशन से किया. इस बीच एक और सदमा किंजल को लगा. मां को शरीर में उठा छोटा सा दर्द कैंसर की रिपोर्ट में बदल गया. किंजल एक बार और टूट गई,लेकिन खुद को संभाला. 2004 में अस्पताल में आखरी सांसें गिन रही उस वक़्त मन ही मन किंजल ठान चुकी थी कि उनको पिता और मां के सपने को पूरा करना ही है.
अकेली रह गई प्रांजल को भी किंजल अपने पास दिल्ली ले आई. किंजल को मानो " खोने को कुछ नहीं रह गया. आंखों में मां के संघर्ष ,बेबसी के साथ पिता की बेमौत मारे जाना जैसा सीन ने उसे और ज़िद्दी और मेहनती बना दिया." समय पलटा और 2008 में किंजल सिंह की तस्वीर मिडिया जगत में छा गई. यूपीएससी की मेरिट में 25 वां स्थान किंजल को मिला.
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उत्तर प्रदेश में डीएम बनी. उधर मां के निधन के बाद भी पिता की मौत का केस चलता रहा. आखिर 31 साल बाद सीबीआई की स्पेशल कोर्ट में साबित हो गया कि डीएसपी केपी सिंह मुठभेड़ में साजिश के तहत मारे गए. इस घटना में साबित हुआ कि एक ईमानदार अफसर होने की कीमत केपी सिंह को जान गवां कर देनी पड़ी. स्टाफ के ही कुछ लोगों ने साजिश रची. मुठभेड़ में शामिल गुंडों को सूचना लीक कर दी. और मौके का फायदा उठा कर स्टाफ के एक साथी ने निर्दोष सिंह को गोली से छलनी कर दिया.इस न्याय के समय चाहे किंजल की मां जीवित न हो,लेकिन परिवार को इस बात का संतोष है केपी सिंह ईमानदार और मेहनती अफसर थे. छोटी बहन प्रांजल भी यूपीएसी पासआउट होकर आईआरएस में अफसर बनी,जबकि आईएएस किंजल सिंह को यूपी में तेज तर्रार और ईमानदार अफसर के तौर पर देखा जाता है.
आईएएस किंजल सिंह की कहानी फादर्स-डे उन युवाओं के लिए प्रेरणा है जो मुसीबत में धैर्यता खो देते हैं. मां के संघर्षों और पिता की हत्या जैसे कठिन दौर में किंजल सिंह ने न खुद को काबिल बनाया,बल्कि छोटी बहन को भी अफसर बनाने में साथ दिया.