देशभर में 'इंटरनेशनल ईयर ऑफ़ मिलेट' (International Year of Millet) के तहत मिलेट से बने पकवानों को बढ़ावा दिया जा रहा है. बाजरा को बढ़ावा देने वाली सरकारी पहलों की वजह से बाजरा थाली में वापिस लौट रहा है. तेलंगाना ने बाजरा की खपत में उल्लेखनीय वृद्धि की है. पूरक पोषण के अलावा लक्षित आबादी समूहों के दैनिक आहार में बाजरा की खपत बढ़ी है.
नीति आयोग की रिपोर्ट ने बताय कि तेलंगाना में बाजरा के उत्पादन, प्रसंस्करण और खपत को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार और संगठनों ने कई पहलों की शुरुआत की, जिसकी वजह से बाजरा की खपत बड़ी और आईसीडीएस के तहत बच्चों को परोसे जाने वाले पौष्टिक भोजन में बाजरा की मात्रा बढ़ी है. इससे लक्ष्य समूह में स्टंटिंग, वेस्टिंग, और एनीमिया को कम करने में योगदान मिला है. यह पहल 3 से 6 वर्ष की आयु के बच्चों, उनकी माताओं और समुदाय के सदस्यों को कवर करती है. इसमें जिला प्रशासन, विकाराबाद (2017-19), आदिलाबाद (2019-20) और तकनीकी भागीदार WASSAN (वाटरशेड सपोर्ट सर्विसेज एंड एक्टिविटीज नेटवर्क) शामिल है.
आईसीडीएस (ICDS) में बाजरा की शुरुआत ने बड़े पैमाने पर खरीद को बढ़ाया है और इस तरह बाजरा के लिए बाजार में भारी मांग पैदा की है. उत्पादन, व्यापार, प्रसंस्करण आदि पर व्यापक रूप से असर पढ़ा और रोज़गार के अवसर बढ़ने लगे. इसने महिला एसएचजी,छोटे उद्यमियों, किसानों और ग्रामीण लघु उद्योगों की संख्या में वृद्धि हुई. कोमाराम भीम जिले के SHG समूह ने अपने ब्रांड के तहत बाजरा का प्रसंस्करण और पैकेजिंग का काम शुरू किया. आदिवासी महिलाओं के नेतृत्व वाले संयुक्त देयता समूहों (Joint Liability Groups) द्वारा मैनेज ITDA (एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना) क्षेत्रों में आठ खाद्य प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित की गई, जिसके ज़रिये करीब 80 आदिवासी महिलाएं पोषण उद्यमी बन गई.
सरकार की मिलेट को बढ़ावा देने वाली पहल ने देशभर में ऐसी कई स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को अपना रोज़गार शुरू करने में मदद की है. इन महिलाओं ने अपने रोज़गार के ज़रिये सरकार की मिलेट को बढ़ावा देने वाली योजनाओं को ऊंचाइयों तक पहुंचाया है. राज्य सरकारों को इन महिलाओं को अपनी पहल में ज़्यादा से ज़्यादा शामिल करना चाहिए, ताकि SHG दीदियों को रोज़गार मिले और इन महिलाओं के ज़रिये इस पहल का फायदा हर तबके तक पहुंच सके.