महिलाओं का 'टाइम यूज़'

53 % महिलाएं जो घर में है और रोज़ बाहर नहीं निकलती, ये घरेलु कामों में उलझी है.  समाज की नज़र से देखें तो ये सारे काम एक महिला के ही हैं. ये वही काम हैं जिन्हे 'काम' की श्रेणी में नहीं गिना जाता और इन कामों के बदलें कोई आमदनी नहीं होती.

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मिस्बाह
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अगर आप महिला हैं तो घर से बाहर निकलने से पहले दो बार ज़रूर सोचती होंगी. अपनी सुरक्षा के बारे में चिंता करना गलत तो नहीं, पर ज़रा सोचिये, क्या घर से बाहर निकले बिना आप आर्थिक रूप से मज़बूत हो सकती हैं ? या, क्या कोई ऐसा भी तरीका है जिस से आप आर्थिक मज़बूती भी पा सकें और रोज़ बाहर भी न जाना पड़े ? 

भारत के राष्‍ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) ने 'टाइम यूज़' सर्वे किया और पता लगाया आप और हम अपना समय किन कामों में देते हैं. इस सर्वे ने बताया शहर में रहने वाली 53 % यानी आधे से ज़्यादा महिलाएं अपने घरों से रोज़ बाहर नहीं निकलती, जबकि, केवल 14%  पुरुष रोज़ घर से बाहर नहीं जाते. यानी असमानता की पहली नज़र यही पड़ रही है. 

इस सर्वे ने महिला और पुरुष की समाज द्वारा गढ़ी गई भूमिकाओं पर रोशनी डाली. 53 % महिलाएं जो घर में है और रोज़ बाहर नहीं निकलती, ये घरेलु कामों में उलझी है. समाज की नज़र से देखें तो ये सारे काम एक महिला के ही हैं. ये वही काम हैं जिन्हे 'काम' की श्रेणी में नहीं गिना जाता और इन कामों के बदलें कोई आमदनी नहीं होती. 25-44 साल की महिलाओं ने घरेलू कामों में हर दिन औसतन साढ़े आठ घंटे बिताए, जबकि, इसी उम्र के पुरुषों ने घरेलू कामों में एक घंटे से भी कम समय बिताया. ये आंकड़े शहर के है. ज़रा सोचिये, ग्रामीण इलाकों का क्या हाल होगा ? ग्रामीण घरों में तो महिलाओं की शुरुआत झाड़ू लगाने से, मवेशियों के दूध दुहनें और तबेले में गोबर उठाने से होती है. इन कामों को कभी काउंट नहीं किया जाता. आखिर में रात को सबको खाना खिलाकर, बच्चों को सुलाने तक ख़त्म होती है. यह दिनचर्या पुरुषों ने  महिलाओं के लिए ज़रूरी और परंपरा मान लिया है. 

घर से बाहर सुरक्षा महसूस न होने पर इन महिलाओं ने घर में रहना चुना. यह भी देखा गया कि कई महिलाओं को शादी के बाद समय न मिलने या शहर बदलने की वजह से बाहर जाकर कमाना छोड़ना पड़ा. विवाहित पुरुषों में, 10 में से 9 नौकरी कर रहे हैं, जबकि विवाहित महिलाओं में सिर्फ़ 10 में से 1 महिला नौकरी पर जा रही है. ये आंकड़े यदि न बढ़े तो महिलाओं का कार्यबल में योगदान भी नहीं बढ़ सकेगा जो कि देश की आर्थिक व्यवस्था के लिए संकट की बात है. 

शुरुआत में एक सवाल पढ़ा था -'क्या कोई ऐसा भी तरीका है जिस से आप आर्थिक मज़बूती भी पा सके और रोज़ बाहर भी न जाना पड़े ?' इसका जवाब स्वसहायता समूह या SHG है. SHG आज महिलाओं की आर्थिक आज़ादी का सबसे ठोस विकल्प बन रहे हैं. SHG से जुड़कर महिलाएं खुद पैसे कमा रही हैं.  डिग्री न हो और घर से रोज़ बाहर न जाना हो फिर भी यदि अपने पैरों पर खड़े होने का सपना देखा है, तो SHG उसे साकार कर सकते हैं.  

SHG से जुड़कर न केवल शहरों की, पर ग्रामीण महिलाएं भी कार्यबल में शामिल हो सकेंगी. आज देशभर में 42 लाख SHG 8 करोड़ से ज़्यादा महिलाओं की आर्थिक आज़ादी का सपना सच कर रहे हैं. अपने ही घर से चूड़ी, मोमबत्ती, खिलौने, या खाने का सामान बनाकर, सिलाई कर या ब्यूटी पार्लर के ज़रिये खुद कमा रहीं है और घर के खर्चे बांट GDP में भी अपना योगदान दे रही हैं. महिलाओं के इस समूह को यदि सरकार और संस्थानों का सहयोग और मार्गदर्शन मिला तो ये इन आंकड़ों में बदलाव ला पाएंगी.  

 

 

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