केंद्र सरकार की हमेशा से यह कोशिश रही है की वे आदिवासियों, खासकर आदिवासी महिलाओं, को आगे बढ़ाने का प्रयास करती रहे. सरकार की आदिवासी महिला सशक्तिकरण योजना, वन धन योजना, अदि के तहत आदिवासी महिलाओं की प्रगति में तेज़ी आई है. और भी पहलें है, जिनके साथ आदिवासी विकास की ओर निकल गए है. ट्राइबल कोपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन (TRIFED) की वन धन योजना ने आदिवासियों को न केवल आजीविका कमाने में मदद की, बल्कि उन्हें उद्यमियों में भी बदल दिया है. पहल के तहत, आदिवासी महिलाएं स्वयं सहायता समूह (SHG) बनती हैं और माइनर फारेस्ट प्रोडूस (MFP) और बेचती हैं. इसके अलावा, वे अपनी आय बढ़ाने और रोजगार सृजित करने के लिए वन उपज का मूल्यवर्धन करने के लिए प्रशिक्षण भी प्राप्त करतीं हैं.
योजना के बारे में विस्तार से बताते हुए, ITDA (Integrated Tribal Development Agency) परियोजना अधिकारी डॉ. रानी मंडा ने बताया कि - “वन धन जंगल की संपत्ति का उपयोग करके आदिवासियों के लिए आजीविका तैयार करने में मदद करने वाली एक पहल है. इस कार्यक्रम का उद्देश्य प्रौद्योगिकी के माध्यम से आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान और कौशल सेट को टेक्नोलॉजी की मदद से आगे बढ़ाकर आदिवासियों के लिए पैसे कमाने का एक स्त्रोत है. रापुर मंडल में एक वनधन विकास योजना केंद्र (वीडीवीके) स्थापित किया गया है. इस VDVK में 15 Self Help Groups हैं, जिनमें से प्रत्येक में 15-20 सदस्य हैं.”
नेल्लोर में SHGs के लगभग 275 सदस्य वेलिगोंडा जंगल के करीब रहते हैं. इनमें से प्रत्येक आदिवासी फॉरेस्ट उपज बेचकर आज 400 से अधिक कमा रही है. वन धन योजना के कारण उनके मुनाफे में 60% की बढ़त देखने को मिली है. ये लोग बेर, कैंडिज़, बेल फल का शरबत, आदि, बेचकर अपनी आजीविका चला रहे है. आदिवासी महिलाएं सरकार की योजनाओं के साथ आगे बढ़ रही है, और अपने परिवार का जीवन खुशहाल बना रही है. आदिवासियों की जनसँख्या भारत में बहुत बड़ी पैमाने पर है, इसीलिए सरकार को हर राज्य में उनके भविष्य को सुरक्षित करने के लिए निरंतर नए प्रोजेक्ट्स और प्लान्स लाते रहने चाहिए.