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Image Credits: Google Images
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भारतीय सेना की वर्दी अपने आप में गर्व, समर्पण और साहस का प्रतीक है. लेकिन जब कोई महिला अधिकारी इतिहास रचती है, तो वह सिर्फ एक सैनिक नहीं, बल्कि पूरे देश की बेटियों के लिए उम्मीद की किरण बन जाती है. ऐसी ही एक प्रेरणास्रोत हैं मेजर दीक्षा सी. मुद्ददेवननवर, जो भारतीय सेना की पहली महिला अधिकारी बनीं जिन्हें ‘बलीदान बैज’ से सम्मानित किया गया है.
कर्नाटक के बेलगावी जिले की रहने वाली मेजर दीक्षा ने अपने सैन्य जीवन की शुरुआत भारतीय सेना की मेडिकल कोर से की थी. लेकिन उनकी असाधारण साहसिक भावना, अनुशासन और समर्पण ने उन्हें स्पेशल फोर्सेज जैसे कठिन और विशेष बलों का हिस्सा बनने की प्रेरणा दी. उन्होंने स्वेच्छा से स्पेशल फोर्सेज की ट्रेनिंग के लिए आवेदन किया और हर चुनौती को पार करते हुए एक नया इतिहास रच डाला.
‘बलीदान बैज’ भारतीय सेना की पैरा स्पेशल फोर्स यूनिट का सबसे प्रतिष्ठित प्रतीक है. यह बैज केवल उन्हीं सैनिकों को दिया जाता है जिन्होंने:
अत्यधिक कठिन शारीरिक और मानसिक प्रशिक्षण पूरा किया हो,
जंगल युद्ध, दुश्मन क्षेत्र में कार्रवाई, और
खतरनाक मिशनों में तैनाती के लिए खुद को पूरी तरह तैयार साबित किया हो.
अब तक यह बैज केवल पुरुष कमांडोज़ को दिया गया था. लेकिन मेजर दीक्षा ने इस सोच को तोड़ते हुए इसे प्राप्त किया — और यह दिखा दिया कि नारी शक्ति भी किसी मिशन में पीछे नहीं.
इस 90 दिन की कठिन ट्रेनिंग में उन्होंने ऐसे-ऐसे परीक्षणों को पार किया जो सामान्य सैनिकों के लिए भी बेहद चुनौतीपूर्ण होते हैं —
दिन-रात की कड़ी मेहनत, मानसिक दबाव, अत्यधिक अनुशासन, युद्ध रणनीति, और शारीरिक परीक्षा.
उन्होंने हर मोर्चे पर अपने साहस का परिचय दिया और यह साबित कर दिया कि महिलाएं न केवल युद्धभूमि में, बल्कि निर्णय लेने, नेतृत्व करने और राष्ट्र सेवा में बराबरी से आगे बढ़ सकती हैं.
हाल ही में भारतीय सेना द्वारा चलाया गया “ऑपरेशन सिन्दूर” यह साबित करता है कि हमारी सेना हर मोर्चे पर तैयार है. इस साहसिक ऑपरेशन में जब महिला अधिकारियों की भूमिका उजागर हुई, तो यह एक स्पष्ट संकेत था कि अब महिलाएं भी मोर्चे की अगली कतार में खड़ी हैं.
पहली बार किसी महिला अधिकारी को बलीदान बैज से सम्मानित किया गया.
इससे सेना में महिलाओं के लिए नई राहें खुलेंगी.
यह महिला सशक्तिकरण का प्रतीक बन गया है.
यह हर युवती को प्रेरणा देता है कि वह भी देश सेवा के लिए आगे बढ़ सकती है.
मेजर दीक्षा की उपलब्धि सिर्फ एक पुरस्कार नहीं, बल्कि एक सोच की जीत है.
यह हर उस सोच को चुनौती देती है जो मानती है कि कुछ काम केवल पुरुषों के लिए होते हैं.
“सीमाएं अब सिर्फ नक्शे पर हैं, सपनों में नहीं.
जो हौसला रखती हैं, वही इतिहास रचती हैं.”
बेटी बचाओ अब केवल नारा नहीं,
अब कहो — "बेटी बनाओ देश की शान!"
मेजर दीक्षा मुद्ददेवननवर का नाम भारतीय सैन्य इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा.
वह सिर्फ एक सैनिक नहीं, बल्कि नारी शक्ति, समर्पण और साहस का प्रतीक बन चुकी हैं.
जय हिंद! 🇮🇳
नारी शक्ति को सलाम!