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Image Credits: Ravivar vichar
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देश के लिए मेडल जीतने वाली महिला पहलवानों को अगर इंसाफ के लिए धरने पर बैठना पड़ रहा है,आंसू बहाना पड़ रहे हैं तो समझा जा सकता है,आम महिलाओं से इंसाफ कितनी दूर है ? सरकार के हर नारे में महिलाएं हैं, बहन-बेटी के बगैर उसकी कोई योजना पूरी होती नहीं है, लेकिन वही बहन-बेटियां इंसाफ मांग रही है और सरकारी दरवाजे बंद पड़े हैं. अखाड़े में जो पहलवान पलक झपकते ही विरोधी को पटक दे देते हैं, उनका मुकाबला सरकारी 'खलीफा' से है और सारे पहलवान मिलकर भी उसे चित नहीं कर पा रहे हैं. हालांकि सबसे बड़ी अदालत के दखल से मुकदमा दर्ज हो गया है, लेकिन लड़ाई अभी जारी है और पहलवान जगह छोड़ने को तैयार नहीं हैं. कह रहे हैं कि जब तक जेल नहीं भेज दिया जाता, हम यहां से जाने वाले नहीं हैं. आम आदमी से लेकर सियासत और खिलाड़ियों का इन्हें साथ मिल रहा है, लेकिन ऑल इंडिया ओलंपिक एसोसिएशन की अध्यक्ष पीटी उषा ने पहलवानों पर ही सवाल लगा दिए हैं. उन्होंने अपनी दो बिरादरियों को ताकत देने के बजाए कुर्सी का साथ दिया है. वो सिर्फ खिलाड़ी ही नहीं हैं, महिला भी हैं, लेकिन अभी उन्हें सरकार की दी कुर्सी प्यारी है, इसलिए उसी जबान में बोल रही हैं. सब वही पहलवान हैं, जो देश के लिए जब मेडल जीतकर आई थीं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन्हें बुलाया था,बात की थी, पीठ पर हाथ रखा था और अभी भी उन्हें हाथ की जरूरत है.
फरीहा नक़वी का शेर है-
ज़माने अब तिरे मद्द-ए-मुक़ाबिल
कोई कमज़ोर सी औरत नहीं है !
हमें इंसाफ चाहिए !
वो महिला पहलवान, जिन्होंने हिंदुस्तान के लिए मेडल जीते हैं, अभी बेबस हैं, लाचार हैं. आंखों में आंसू हैं, चेहरे पर मायूसी है और पेशानी की लकीरों में कई सवाल उलझे हैं. इनकी लड़ाई 'सरकारी' सांसद बृजमोहन शरण सिंह से है, जो कुश्ती फेडरेशन के अध्यक्ष भी हैं. पहलवानों का कहना है, इन्होंने खिलाड़ियों के साथ ज्यादती की है, शोषण किया है और हमें इंसाफ चाहिए. हालांकि जिस दरवाजे पर वो इंसाफ मांगने खड़े हैं, वहां कुछ नहीं हो रहा है. अदालत ने जरूर दखल दिया है, जिसके बाद ब्रजमोहन के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया है, लेकिन पहलवान खुश नहीं हैं. उनका कहना है कि जब तक जेल नहीं भेज दिया जाता, कुर्सी से हटा नहीं दिया जाता, हम यहां से हटने वाले नहीं हैं !
प्रियंका की एंट्री और बबीता की उलझन !
बहन के इंसाफ के बजाय बबीता फोगाट ने अपनी पार्टी को चुना है और प्रियंका गांधी की इंट्री को वो बर्दाश्त नहीं कर पाई हैं. बबीता कह रही हैं, शून्य से उठकर शिखर तक पहुंचने वाले हम खिलाड़ी अपनी लड़ाई लड़ने में स्वयं सक्षम हैं. खिलाड़ियों के मंच को राजनीतिक रोटी सेंकने का मंच नहीं बनना चाहिए. कुछ नेता खिलाड़ियों के मंच से अपनी राजनीति चमकाने में लगे हैं. खिलाड़ियों को भी ध्यान रखना चाहिए, हम किसी एक के नहीं समूचे राष्ट्र के हैं ! इसके बाद बबीता को खूब ट्रोल किया जा रहा है और कहा जा रहा है कि राष्ट्र के इन पहलवानों के सम्मान को चोट पहुंचाई गई है, उनकी अस्मिता पर हमला हुआ है, उनका शोषण किया गया है, जिसमें तुम्हारी बहन भी शामिल है !
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