प्रकृति का संरक्षण (environment conservation) और उसके साथ ताल मेल मिलाकर चलना भारतीय संस्कृति (Indian culture) का हिस्सा है. इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए कई भारतीय पर्यावरण सुरक्षा में अहम भूमिका निभा रहे हैं. ये देश के लिए गर्व की बात थी जब यूनेस्को (UNESCO) ने विश्व पर्यावरण दिवस पर जगदीश एस बाकन (Jagdish S Bakan) को बायोस्फीयर रिजर्व प्रबंधन ( Biosphere Reserve Management) के लिए 2023 मिशेल बैटिस पुरस्कार की घोषणा की. जगदीश, वाइल्डलाइफ वार्डन एंड डायरेक्टर ऑफ़ द गल्फ ऑफ़ मन्नार बायोस्फियर रिज़र्व ट्रस्ट ऑफ़ रामनाथपुरम, (Jagdish, Wildlife Warden and Director of the Gulf of Mannar Biosphere Reserve Trust of Ramanathapuram) यह पुरस्कार जीतने वाले पहले भारतीय बने. उन्होंने पुरस्कार समारोह में अपनी केस स्टडी प्रस्तुत की. जगदीश को बायोस्फीयर रिजर्व प्रबंधन में उनकी उपलब्धियों के लिए 12 हज़ार अमेरिकी डॉलर भी मिले.
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मरीन बायोडायवर्सिटी (Marine biodiversity) का खनन, इकोसिस्टम (ecosystem) क्वालिटी में गिरावट, समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण (plastic pollution), अवैध वन्यजीव व्यापार और इकोसिस्टम की कमी से राज्य के कई हिस्सों में समुद्री सेहत के लिए गंभीर खतरे हैं. इन मुद्दों पर काम करने के लिए, मन्नार खाड़ी रिजर्व की जैव विविधता की ज़रुरत पर जागरूकता पैदा करने, समुदाय-आधारित प्लास्टिक नियंत्रण अभियान चलाने, प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के साथ सामुदायिक विकास के प्रयासों और मैंग्रोव, मूंगा चट्टानों के रेस्टोरेशन के लिए कई पहल कीं. जगदीश एस बाकन का मानना है कि मन्नार की खाड़ी को बचाने में महिलाएं अहम भूमिका निभा रही हैं.
इस परियोजना ने 7,788 सदस्यों के लिए नौकरियां पैदा की हैं जिनमें 7,243 महिलाएं हैं. स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने के लिए लगभग 26.4 करोड़ रुपये का माइक्रोक्रेडिट प्रदान किया गया. इस परियोजना के तहत चार इकोटूरिज्म और दो प्लास्टिक-मुक्त क्षेत्र बनाये गए. सभी चार इकोटूरिज्म स्थलों पर, स्वयं सहायता समूहों (Self Help Group) की महिला सदस्य पर्यटकों के लिए कैंटीन सेवाएं चलाती हैं.
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संरक्षण परियोजनाओं को और अधिक कुशल बनाने के लिए, स्वयं सहायता समूहों (SHG) के लगभग 36 हज़ार सदस्य और 252 इको विकास समितियों के सदस्य मन्नार की खाड़ी बायोस्फीयर रिजर्व ट्रस्ट के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. अब तक, SHG महिलाओं और स्थानीय लोगों ने वन कर्मियों के साथ मिलकर 70 हेक्टेयर बंजर भूमि पर 70 हज़ार मैंग्रोव पौधे लगाए हैं. उन्होंने समुद्र के 600 वर्ग मीटर में मूंगा चट्टानों और 1,000 वर्ग मीटर में समुद्री घास को पुनर्जीवित करने में भी मदद की.
वन कर्मचारियों और मछुआरों द्वारा बहुत सारे समुद्री वन्यजीवों को बचाया जा रहा है और ऐसे मछुआरों को नकद पुरस्कार दिए जाते हैं. प्रकृति संरक्षण के लिए मछुआरे आगे आ रहे हैं. इसके अलावा, मछुआरों के समुदायों के पास संरक्षण का पारंपरिक ज्ञान है. वे जानते हैं कि मछली की अच्छी पकड़ तभी होगी जब समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र स्वस्थ और विविध होगा. इस तरह की पहलों से न केवल पर्यावरण को बचाया जा रहा है, बल्कि SHG महिलाओं, स्थानीय समुदायों, और मछुआरों को भी रोज़गार मिल रहा है. रविवार विचार का मानना है कि देशभर में पर्यावरण संरक्षण के कामों में SHG महिलाओं का योगदान लिया जाना चाहिए.