नमाज़ इस्लाम के 5 स्तंभों में से एक है. नमाज़ इबादत का तरीका है जिसे पुरुष और महिलाओं पर फ़र्ज़ किया गया, यानि दिन में 5 नमाज़ पढ़ना अनिवार्य है. इस्लाम मज़हब में पुरुषों को मस्जिद जाकर नमाज़ अदा करने के लिए प्रेरित किया गया और महिलाओं को घर में ही नमाज़ अदा करने की आसानी दी गई. महिलाओं के मस्जिद जाने पर चर्चा लंबे समय से चल रही है. यह आम धारणा है कि मुस्लिम महिलाओं को पुरुषों की तरह मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ने की इजाज़त नहीं, जबकि हक़ीक़त में धार्मिक आधार पर महिलाओं को मस्जिद में नमाज़ पढ़ने से नहीं रोका गया है.
इस मामले में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर बताया कि महिलाओं को मस्जिद के अंदर नमाज़ अदा करने की इजाज़त है,और इसपर किसी तरह की रोक नहीं है. बोर्ड ने कहा कि मुस्लिम महिलाएं नमाज़ अदा करने के लिए मस्जिद में आने और जाने के लिए पूरी तरह आज़ाद हैं. यह उनकी मर्जी पर है कि वह मस्जिद में नमाज़ अदा करने के अपने अधिकार का इस्तेमाल करना चाहती हैं या नहीं. मक्का में पवित्र काबा के आसपास की सभी मस्जिदों में पुरुष और महिलाओं की एक साथ नमाज़ अदा करने की इजाज़त नहीं है. लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि महिलाएं मस्जिद में नमाज़ नहीं पढ़ सकतीं. महिलाओं की नमाज़ की जगह अलग होती है जहां वे नमाज़ अदा कर सकती हैं.
भारत के 200 मिलियन मुसलमानों में से अधिकांश सुन्नी हैं. सुन्नी हनफ़ी न्यायशास्त्र के हवाले से अपने फैसले लेते हैं. नई दिल्ली में दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय में महिलाओं और मस्जिदों पर पीएचडी कर रही सोबिया हामिद भट बताती हैं, "हनफ़ी न्यायशास्त्र कहता है कि नैतिक भ्रष्टाचार के समय में, महिलाओं के लिए घर पर नमाज़ अदा करना बेहतर बताया गया था." उन्होंने कहा कि यह विचार काफी हद तक इस आशंका से आकार लेता है कि मस्जिदों में महिलाओं की मौजूदगी से नैतिक भ्रष्टाचार होगा. भट ने कहा कि जब इस्लाम दक्षिण एशिया में आया, तो पहले से ही यहां प्रचलित परंपराएं और पितृसत्तात्मक मानदंड मौजूद थे जिसने धीरे-धीरे इस्लाम में भी जगह बनाली. इन वजहों से भारत की मस्जिदों में ख़ासकर उत्तर भारत की मस्जिदों में महिलाओं के लिए अलग से नमाज़ की जगह नहीं बनाई जाती.
बेंगलुरु में जामिया मस्जिद के इमाम मोहम्मद मकसूद इमरान रशदी ने कहा कि भारत में कई मस्जिदों में पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग दरवाज़े नहीं हैं. "इसीलिए महिलाओं पर प्रतिबंध हैं, क्योंकि हमें डर है कि यह टकराव और विवाद पैदा कर सकता है," रशदी ने कहा. हालांकि, उन्होंने इस बात पर सहमति जताई कि मस्जिदों में नमाज़ के लिए महिलाओं के प्रवेश की और अलग नमाज़ अदा करने की सुविधा होनी चाहिए. उन्होंने कहा, "नई मस्जिदों को महिलाओं के अनुकूल बनाने के लिए डिजाइन और निर्माण किया जाना चाहिए,"
16 वीं शताब्दी में दिल्ली में खैरुल मंज़िल मस्जिद को महानतम मुगल शासक जलालुद्दीन अकबर की पालक माँ महम अंगा ने बनवाया था. 1561 में अंगा द्वारा तामीर की गई खैरुल मंज़िल मस्जिद को दिल्ली की पहली मस्जिद कहा जाता है जिसे एक महिला ने कमीशन किया था. इसके अलावा, कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद में अपने संबोधन से, रज़िया सुल्ताना ने न केवल अन्य महिलाओं को मस्जिद जाने के लिए, बल्कि मस्जिद बनाने के लिए भी राह दिखाई थी . भारत में महिलाओं के मस्जिद में नमाज़ पढ़ने की ये बहस 6 शताब्दियों से भी ज़्यादा पुरानी है. आज जिस दौर में हर जगह महिलाओं की मौजूदगी की बात हो रही है, वहीं मस्जिदों में महिलाओं की एंट्री को लेकर भी मानसिकता बदलने की उम्मीद है.