नर्सिंग डे: मां का दूसरा रूप 'सिस्टर'

सिस्टर शांति और जिंसी जैसे मन और संवेदनाओं से जुड़ी महिलाएं हर गांव और दूर बसे आदिवासियों के मजरे-टोले जैसी बस्तियों में हैं. यदि भारत में नर्सिंग स्टाफ की कमी और ग्रामीण इलाकों में नर्स स्टाफ जाने को तैयार नहीं हो तो सरकार नए विकल्प खड़े कर सकता है.

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Image Credits: Ravivar vichar

हर साल मनाए जाने वाले नर्सिंग डे (Nursing Day) के पहले भारत के लिए अच्छी खबर है. नर्सिंग (Nursing) के क्षेत्र में सबसे प्रतिष्ठित ग्लोबल नर्सिंग अवार्ड (Global Nursing Award) के लिए भारत की दो नर्सेस का नॉमिनेशन हुआ. तो टेन की सूची में ये शामिल हुईं हैं. 12 मई को लंदन (London) में इस अवार्ड की घोषणा होगी.नर्सिंग के क्षेत्र में ये दोनों सिस्टर्स समाज के लिए मिसाल है. इनमे एक शांति टेरेसा लाकरा को पदम् श्री अवार्ड तो दूसरी सिस्टर जिंसी जेरी को आइरिश हेल्थ केयर अवार्ड पहले से ही नवाज़ा जा चुका है. शांति लाकरा अंडमान निकोबार और जिंसी जेरी आयरलैंड में अपनी सेवाएं दे रही है. 

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जिंसी जेरी

भारत में जहां बीहड़ आदिवासी और वनांचल क्षेत्र में अभी भी घनी आबादी होने के बावजूद आधुनिक की बात तो दूर जरूरी स्वास्थ्य सेवाएं (Health Services) भी अभी नहीं पहूंची वहां ऐसी शांति टेरेसा (Shanti Teresa) और जिंसी जेरी (Jincy Jerry) की हर इलाके में जरूरत है. सिस्टर शांति और जिंसी जैसे मन और संवेदनाओं से जुड़ी महिलाएं हर गांव और दूर बसे आदिवासियों के मजरे-टोले जैसी बस्तियों में हैं. यदि भारत में नर्सिंग स्टाफ की भारी कमी और ग्रामीण इलाकों में सेवाओं के लिए नर्स स्टाफ जाने को तैयार नहीं हो तो सरकार नए विकल्प खड़े कर सकता है. स्वास्थ्य मंत्रालय और चिकित्सा शिक्षा मंत्रालय और विभाग चाहे तो इस पर नई योजना लागू कर सकता है.   

nurse shanti

शांति टेरेसा लाकरा

मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़ सहित बिहार, झारखण्ड,यूपी और कई राज्यों में नर्सों की कमी ज्यादा देखी जा रही है. हालांकि मप्र और छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ सालों में नर्सेस की जगह महिला एवं बाल विकास से जुड़ी आंगनबाड़ी कार्यकर्त्ता और दाई को थोड़ा बहुत ट्रेनिंग देकर तैयार किया. लेकिन ये केवल गर्भवती महिलाओं की डेलीवरी करवाने और अस्पताल की एम्बुलेंस आने तक पेशेंट का ध्यान रखने तक सिमित रह जाती है. आदिवासी इलाके में आज भी शिकायत है कि वहां अभी भी न अस्पताल हैं न स्टाफ न और कोई सुविधा. यहां तक कि कच्चे और कठिन रास्तों में एम्बुलेंस भी समय पर नहीं पहुंच पा रही. 

प्रदेश के आदिवासी इलाकों में से एक खरगोन (Khargone) और बड़वानी (Badwani) के जंगल इलाकों में बसे गांव में एम्बुलेंस और अस्पताल सुविधा नहीं मिलने की वजह से बाइक पर अस्पताल (Hospital) ले जाते हुए ही सड़क पर डिलेवरी के कई केस सुनने को मिल जाएंगे.इसके अलावा बीमारी और बुखार की चपेट में आए मरीजों को भी कई किलो मीटर पैदल चला कर अस्पातल तक लाना पड़ रहा है. 

नर्सिंग सेवाओं के आभाव और ऐसे हालातों में सरकार पूरे प्रदेश में गठित महिला स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को वैकल्पिक प्राइमरी ट्रेनिंग दे कर नर्सिंग के लिए भी तैयार कर सकता है. इस समय प्रदेश में ही पचास लाख महिलाएं से ज्यादा अलग-अलग समूहों से जुड़ कर गांवों में अपने रोजगार से जुड़ी हुईं हैं. ये टेक्स सखी,नल-जल योजना,लघु निर्माण यूनिट को चला रहीं हैं. सरकार और शासन इनमें  से स्वास्थ्य सेवाओं में रूचि रखने वाली महिलाओं को प्राइमरी तौर  तैयार कर सकती हैं. ये महिलाएं बीमार मरीज़ों की देखभाल में मदद कर सामान्य सर्दी-ज़ुकाम और बुखारके उपचार के लिए दवाइयां समय पर दे सकती हैं. दूसरी बात ये महिलाएं उसी गांव की रहने वाली होने के कारण आसानी से उपलब्ध हो जाएगी. मजदूरी से निकल कर आत्मनिर्भर बानी ये महिलाएं नर्सिंग के क्षेत्र में भी मिसाल बन सकती हैं. 

भारत को उम्मीद है कि अंडमान और निकोबार के दूर इलाकों में जनजातीय समुदाय में अपनी गुमनाम सेवाएं देने वाली शांति का चयन ग्लोबल नर्सिंग अवार्ड के लिए जरूर होगा. 2004 में सुमानी के कहर में सिस्टर शांति बर्बाद हो चुके इस समुदाय के बीच झोंपड़ी में रही और समुद्री लहरों में डोंगी चला कर इलाज करने पहुंचीं. उधर सिस्टर जिंसी भी डबलिन के मिसेरिकोर्डिया यूनिवर्सिटी में रिसर्च और सही जांचों में खास मुकाम बना चुकीं हैं. इन सिस्टर्स के साथ अन्य देशों की नर्सेस भी नॉमिनी हैं. कोविड जैसी बीमारी में अपनी जान की परवाह किए बगैर मरीज़ों की सेवा और नया जीवनदान देने वाली सभी अग्रिम पंक्ति के सैनिक सामान नर्सेस को नर्सिंग डे की बधाई. रविवार विचार देशभर में गुमनाम सेवाएं दे रही नर्सेस का सम्मान करता है.                      

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