"बड़ी परेशानी है... बैंक का काम करने इतनी दूर जाना पड़ता है. एक तो पहले ही बैंक का कामकाज इतना मुश्किल, ऊपर से ये दूरी." मीना पसीना पोंछते हुए SHG की मीटिंग में पहुंची. वहां जब दीदियों को उसने आपबीती सुनाई तो एक दीदी बोल पड़ी, "सही कहा, बैंकों की परेशानी तो है... क्यों न अपन ही बैंकिंग कॉरेसपॉंडेंट एजेंट (BCA) बन जाएं ?"
"ये क्या है ?"
"इसका तो नाम ही इतना मुश्किल है, काम कैसा होगा ?"
"कैसे बनेंगे हम ये एजेंट-वेजेंट?"
सारे सवाल मीटिंग हॉल में गूंज उठे. मीना ने तुरंत NRLM वाली मैडम को फ़ोन लगाया और सवालों की बौछार कर दी.
मीना ने सब समझकर दीदियों को बताया- "हम SHG सदस्य भी बैंकिंग कॉरेसपॉंडेंट एजेंट बन कर अपने गांवों में बैंकिंग सेवाएं दे सकते है जिसे कहते हैं मोबाइल बैंकिंग यानि चलता फिरता बैंक. अब हमें बैंक जाने की ज़रूरत नहीं है बैंक खुद हमारे घर आएगा. मैडम ने बताया ओडिसा में अब तक पांच बैंकों के लिए शहर भर में 1262 BCA काम कर रहे हैं और पिछले साल उन्होंने मिलकर 230 करोड़ रुपये का लेनदेन करवाया. अपने मध्यप्रदेश में ही 728 स्वसहायता समूह की महिलाएं BCA बनीं और झारखंड में 1051 महिलाएं. हां, काम समझना शायद थोड़ा मुश्किल है, पर अपन यूट्यूब का सहारा भी तो ले सकते हैं" अपनी बात रखते हुए मीना ने मोबाइल खोला.
यूट्यूब से पता चला, "सिर्फ हमारे यहां ही नहीं बल्कि और बहुत सारे ग्रामीण इलाकों में आज भी बैंक की सुविधा नहीं है. जहां बैंक हैं भी वहां लोगों को, खासकर महिलाओं को पैसे निकालने, जमा करने, चेक डालने की बेसिक समझ भी नहीं है. ये बैंकिंग कॉरेसपॉंडेंट एजेंट वाला मॉडल भारत में फाइनेंशियल इन्क्लुशन का सबसे बेहतर तरीका माना गया है, तो क्यों न इन परेशानियों को हम BCA या अपनी भाषा में बोले तो बैंक सखी बनकर हल करें? महिलाओं को यदि बैंक सखी या BCA बनाया गया तो उससे न केवल उनकी पैसों की समझ बढ़ेगी बल्कि दूसरी महिलाएं भी बिना झिझक उनसे बैंक के लेन-देन को समझ पाएंगी. मध्य प्रदेश में 728 SHG दीदियों को ट्रेनिंग देकर SRLM ने उन्हें बैंक सखी बनाया है. अगर ये कर सकती हैं तो हम क्यों नहीं ?" मोबाइल से नज़र उठाते ही मीना ने बोला.
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ये सब सुनते ही दीदियों के माथे के शल कम होने लगे. "हां, फिर तो अपन ही PF अकाउंट, बैंक की स्कीम, पेंशन प्लान वगैरह के बारे में गांव में सबको समझा पाएंगे." एक दीदी ने बोला.
"और फिर तो फाइनेंशियल लिट्रेसी चारो तरफ फैल जाएगी."
"हां, अपन तो चलते फिरते बैंक बन जायेंगे"
"सही बात है, बुज़ुर्गों को पेंशन के बारे में बताएंगे, माओं को सुकन्या समृद्धि योजना जैसी स्कीमों के बारे में, और युवाओं को SIP जैसे प्लानों के बारे में. " सारी दीदियां एक के बाद एक बोल पड़ी.
SHG महिलाएं आज क्या कुछ नहीं कर रही- खेती से लेकर होटल चलाने तक, प्रोडक्ट बेचने से लेकर सिलाई करने तक वो हर काम कर रही हैं और अब तो बैंक सखी बन वो बैंकों और महिलाओ की बीच की दूरी भी कम करेंगी. दूसरी महिलाओं के लिए रोल मॉडल बन बैंक सखी हर महीने लगभग ६७६२ रुपये कमा रही हैं और करीब 64% बैंक सखियां हर महीने 5 हज़ार से ज़्यादा कमा लेती हैं. ग्रामीण विकास मंत्रालय की तरफ से ग्रामीण स्व-रोजगार प्रशिक्षण संस्थान से पहले दीदियों को 6-8 दिन का कोर्स करवाया जायेगा. उन्हें सर्टिफिकेट भी मिलेगा. इस ट्रेनिंग में हमें बैंकिंग एप्लीकेशन जैसे डीजी-पे का इस्तेमाल करना, फॉर्म भरना, बायोमेट्रिक डिवाइसेस से आधार लिंक करना, लेन-देन करना, सब शुरू से सिखाया जायेगा. जब अच्छी ट्रेनिंग होगी तो भला कहां कुछ मुश्किल लगेगा.
मुझे लगता है बिना देरी किये हमे तुरंत ट्रेनिंग के लिए आवेदन दे देना चाहिए. फिर देखना बैंक सखी बन हम पूरे गाँव को कैसे बैंक और उसकी स्कीमों से लिंक करवाते हैं और नए खाते खुलवाते हैं. फिर... हर हाथ में ATM कार्ड होगा और हर महिला अपने पैसों का हिसाब खुद रखेगी.
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