मैं उस वक़्त अवाक रह गई जब देखा कि आदिवासी अंचल में महिलाएं अपनी आंखों की जाती हुई रौशनी से बेखबर थी.उसकी मासूमियत पर दया भी आई और दुःख भी हुआ.एनीमिया से पीड़ित इस महिला के मोतियाबिंद आखरी स्टेज पर था. उसे अगले दिन मैंने उसे इंदौर बुलाया. सवाल था खेत-मजदूरी छूट जाएगी. इतने पैसे भी नहीं. खैर,उसे बुलाया और निःशुल्क ऑपरेशन कर रौशनी लौटाई. ये कोई एक केस नहीं था. दो लगातार कैंप में ढाई सौ से ज्यादा मरीज़ों की आंखें जांचीं. ख़ास कर महिलाओं की संख्या अधिक थी जिनकी आंखें कमज़ोर निकली. अपने परिवार का ध्यान रखने वाली ये महिलाएं अपने ही हेल्थ से बेखबर है.घरों में चूल्हों की परंपरा और धुएं में कमी के बाद भी महिलाएं आंखों की सजा भुगत रही.ये सामाजिक चिंता का विषय है.
सामान्य तौर पर ये देखा जाता है कि शहरी इलाकों में कम उम्र में ही बच्चों से लगा कर अधिकांश लोग चश्में का उपयोग कर रहे जबकि ग्रामीण इलाकों में बिना चश्मों को लगाए लोग दिख जाते हैं. इस बात से ये भ्रम अब दूर कर लेना चाहिए कि गांव में लोग स्वस्थ हैं और उनकी आंखें भी बढ़िया है. बिगड़ते खान-पान और जागरूकता की कमी का असर ये हो रहा कि लोग अपनी रौशनी खो रहे हैं. "अंधत्व की रोकथाम जैसे सप्ताह" में ये समझना जरुरी है आखिर आंखों को कैसे बचाएं. क्या ध्यान रखें.
Image Credits: Dr. Anshu Khare
इन दिनों शुगर (डायबिटीज़) के मरीज़ लगातार बढ़ रहे.आपको यदि शुगर हो गई तो सबसे पहले आंखों का भी चेकअप करवाइये. दूसरा मोतियाबिंद के मामले में देखने में आ रहा है कि कम उम्र में ही यह हो सकता है. धुंधला दिखाई दे,चश्में के नंबर का बदलना,तेज़ लाइट में चकाचौंध लगना या एक से ज्यादा परछाई दिखाई देना लक्षण हो सकते हैं.डॉक्टर से आंखों की जांच करवाना ही चाहिए. आजकल इसका ऑपरेशन भी आसानी से हो जाता है.आंखों की रौशनी जाने का सबसे बड़ा कारण ग्लूकोमा है. इसे आम भाषा में कांचबिंद या आंखों में काला पानी उतरना भी कहते हैं. ये आंखों के लिए सबसे खतरनाक है. इसमें कई बार लक्षण नज़र आखरी तक नज़र नहीं आते और पेशेंट इलाज में लेट हो जाता है. इसमें आंखों की नसों में दबाव बनता है और आंख परदे पर खून के धब्बे बन जाते हैं.आंखों में चोंट,ब्लड प्रेशर,शुगर,ड्रग्स, अल्कोहल भी ग्लूकोमा के कारण हैं. शुरुआत में इसका इलाज किया जा सकता है. आजकल अच्छे ड्रॉप और दवाइयां मिल जाती हैं.
ख़ास बात यही है कि 40 की उम्र में समय पर जांच जरुरी है. कोविड में इस्टीरॉयड के उपयोग के बाद भी आंखों और नज़र कमज़ोर की शिकायतें बढ़ीं हैं. लगातार स्क्रीन पर काम करने वाले बीच में ब्रेक दें. पर्याप्त रौशनी रखें.प्रोटेक्टिव ग्लास का उपयोग करें. प्रकृति के सुंदर उपहार इन आंखों की देखभाल कर ही हम इस अनुपम प्रकृति को निहार सकते हैं.