अक्षय तृतीया यानि क्षेत्रीय बोली में आखातीज. बिना मुहूर्त का अबूझ मुहूर्त. विवाह के लिए सबसे अच्छा मुहूर्त इसे ही मानते हैं. जब विवाह के लिए कोई मुहूर्त न निकले तो आखातीज का मुहूर्त सबसे बढ़िया. और यही कारण हमारे देश में इस दिन विवाह के आयोजन लाखों की संख्या में होते हैं. यहां तक कि सरकार की कन्यादान योजनाओं को भी इस तारीख में कर दिया जाता है. मान्यता है कि इस दिन किये गए विवाह सफल होते हैं. मान्यता यह भी है कि श्रीकृष्ण का वरदान है कि इस दिन पूजा पाठ करने से सभी पापों से मुक्ति हो जाती है. इसी दिन सामूहिक आयोजन की आड़ में बाल विवाह भी हो जाते हैं. अधिकांश शिकायतें इसी दिन सामने आती हैं.लगातार बदलते माहौल और नाबालिगों के साथ बेटियों की शिक्षा और उनको आत्मनिर्भ बनाने पर जोर दिया जा रहा है,ऐसी स्थिति में सरकारें भी काफी हद चेत गईं. साल 2006 में बाल विवाह प्रतिषेध अधिनयम बना. निगरानी होने लगी. बावजूद बाल विवाह के आंकड़े चिंताजनक है. इससे यह साबित होता है कि कानून ही नहीं समाज में काउंसलिंग की ज्यादा जरूरत है.
अभी भी यदि आंकड़ों पर नज़र डालें तो यूपी, बिहार, वेस्ट बंगाल और त्रिपुरा में बाल विवाह सबसे अधिक दर्ज किए गए. मप्र स्टेट में यदि 2021 तक जारी हुए आंकड़ों में बाल विवाह रोकने पर 10 प्रतिशत की कमी आई. लेकिन अभी भी देश में 15 लाख बाल विवाह सालाना होने की शिकायतें मिल रहीं हैं. इसका विषम प्रभाव यह पड़ा कि 1 करोड़ 11 लाख अस्सी हजार नाबालिग बच्चियां 2021 तक प्रेग्नेंट हो गईं. इससे ज्यादा दुखद यह है कि हर साल 22 हजार निर्दोष बेटियां प्रिग्नेंसी में दम तोड़ देती है. इससे साफ है कि सरकार की योजनाओं पर अभी रूढ़ियों में जकड़ी परम्पराएं भारी पड़ रहीं हैं.कुछ परिवार की डाली है कि उनके समाज में लड़की की यदि जल्दी शादी न की गई तो बाद में लड़के नहीं मिलते. दूसरा कारण गांव में गलत अफवाहों और लड़की के बदनाम होने से डरते हैं. यही वजह कानून की जानकारी और कार्रवाई के डर के बावजूद चुपके से शादी कर देते हैं. बैतूल की 17 साल की रजनी (बदला हुआ नाम) कहती है-" मेरी बिल्कुल शादी का मन नहीं था. घर वालों ने ज़िद पकड़ ली. मैंने अपनी सहेली की मदद ली. और 1098 नंबर पर शिकायत करवा दी. मैं अब आगे पढ़ रही हूं."
ग्रामीण इलाकों में चोरी-छुपे अभी भी बच्चियों के विवाह हो रहे हैं. ये ही सरकारी अमले के लिए ये केस ही चुनौती बन जाते हैं. खरगोन जिले की महिला एवं बाल विकास विभाग की सहायक संचालक मोनिका बघेल कहती हैं -" पिछले वर्ष 15 साल की लड़की की शादी की सूचना मिली. पास ही के तीर्थ गांव के एक मंदिर में हम पहुंचे. बाराती आधी-अधूरी शादी के बीच दुल्हन के भेष में तैयार की बच्ची को लेकर भाग गए. हमने पुलिस की मदद से विवाह को शून्य घोषित करवाया."
एक दूसरे इलाके के प्रकरण में एक लड़की को हल्दी लगे हाथों से मंडप में से उठाया और और स्कूल लेजाकर किताबें थमाई. प्रिग्नेंट हुई एक बच्ची को देर से पता चला. कोर्ट ने निर्धारित समय निकल जाने और गर्भ में बच्चे की जान को खतरा बता कर अबॉर्शन से मना कर दिया. 16 साल की बच्ची की जान बड़ी मुश्किल से बची.
इस साल भी राजस्थान,मप्र,छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में शासन ने अलर्ट जारी किया. पुलिस महकमा ,महिला एवं बाल विकास, सामाजिक संघठन सहित कई लोगों को इस बाल विवाह रोको अभियान से जोड़ा गया है. गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. जयश्री श्रीधर का कहना है कि 18 साल से काम उम्र में बाल विवाह करना किसी भी लड़की के जीवन के लिए खतरनाक हो सकता है. उसका शारीरिक विकास पूरी तरह नहीं होता. न ही वह प्रिग्नेंट होने की स्थिति में रहती है.