भारतीय महिलाओं को आईएफएस का रास्ता दिखाने वाली मुथम्मा

मुथम्मा चाहती तो वह आईएएस (IAS) या आईआरएस (IRS) को भी चुन सकती थी, जैसा उस दौर में महिलाओं के लिए सोचा जाता था, पर धारा के साथ बहना तो उन्होंने सीखा ही नहीं था, इसीलिए चुना इंडियन फॉरेन सर्विस (Indian Foreign Service) जो कि उस समय पुरुष प्रधान पद था

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हेमा वाजपेयी
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image credit : The Better India

आज़ादी मिले अभी एक साल ही हुआ था. नया भारत, नए सपने, नयी उम्मीदें, हर जगह देखी जा सकती थी. इन्ही सपनों की उड़ान चाह रही थी, कर्नाटक (Karnataka) के कोडागु (Kodagu) जिले के एक छोटे से कस्बे विराजपेट (Virajpet) में पैदा हुई सी.बी.मुथम्मा (C B Muthamma). कूर्ग (Kurg) की वादियों में कोडव (Kodav) शैली के खाने पीने के साथ एक ऐसे परिवार में जन्मी, जहां संस्कृति और पढ़ाई लिखाई का माहौल था. परिवार ने पढ़ाई से कभी रोका नहीं और मुथम्मा ने अपनी स्कूलिंग सेंट जोसेफ गर्ल्स स्कूल, मदिकेरी (Saint Joseph Girls School, Madikeri) से की, आगे की पढ़ाई के लिए चेन्नई (Chennai) गईं और वहां के वुमन क्रिश्चिएन कॉलेज (Women Christian College) से ट्रिपल गोल्ड मेडल (Triple Gold Medal) लेकर अपनी क़ाबलियत को साबित किया. यहीं से उनकी सोच का दायरा बड़ा हुआ. खूब मेहनत की और 1948 में यूपीएससी (UPSC) परीक्षा पहले अटेम्प्ट में पास करने वाली पहली भारतीय महिला (First Indian Women) बनी.  

मुथम्मा चाहती तो वह आईएएस (IAS) या आईआरएस (IRS) को भी चुन सकती थी, जैसा उस दौर में महिलाओं के लिए सोचा जाता था, पर धारा के साथ बहना तो उन्होंने सीखा ही नहीं था, इसीलिए चुना इंडियन फॉरेन सर्विस (Indian Foreign Service) जो कि उस समय पुरुष प्रधान पद था. समाज की सोच भी ऐसी ही थी की कोई महिला डिप्लोमेट (Female Diplomat) कैसे हो सकती है? विदेशों में कैसे रहेगी? पुरुष प्रधान क्षेत्र में कैसे खुद को संभालेगी? इन सब सवालों से अलग, वो पितृसत्तात्मक सोच जिसमें पुरुष सोचते है की कोई भी महिला उनके बराबर नहीं है. इन्ही कारणों से उन्हें UPSC इंटरव्यू (UPSC Interview) के दौरान खुद यूपीएससी के चेयरमैन (UPSC Chairman) ने उन पर आईएफएस केटेगरी (IFS Category) को चेंज करने का  दबाव बनाया. लेकिन वो अपनी चॉइस पर डटी रहीं. 

इन सबके अलावा शादी का भी दबाव बनाया गया पर उन्होंने अपने करियर को सबसे ज़यादा महत्व दिया और दुनिया समाज के प्रेशर को झेला. जब उन्हें IFS से अलग करने की सारी कोशिशें नाकाम हो गयी तो उनसे एक शपथ पत्र पर भी साइन करवाया गया कि अगर उन्होंने शादी की तो उन्हें इस्तीफा देना होगा. शादी के लिए उन्हें समाज और परिवार वालो के ताने भी सुनने पड़े. मुथम्मा उस दौर में विदेश में काम करना चाहती थी जब अधिकतर महिलाएं विदेश जाने के बारे में सोचती भी नहीं थी. मुथम्मा ने हंगरी (Hungary) और घाना (Ghana) में काम किया और अपनी आखिरी पोस्टिंग नेदरलैंड (Netherland) में भारतीय राजदूत (Indian Ambassador) के रूप में की. अपनी 32 साल की जॉब  के बाद 1982 में रिटायर हुई. Chonira Belliappa Muthamma, एक ऐसा नाम है जिसने हर बाधा को तोड़ कर महिलाओं के लिए आने वाले वर्षों में सिविल सेवा (Civil Services) में चुनौतियों  का सामना करने के लिए प्रेरित किया. वो एक ऐसी डिल्पोमेट (Diplomat) रहीं जिन्होंने विदेशों में अपने कामों के साथ देश में जेंडर इक्वालिटी (Gender Equality) के लिए लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ी और जीती भी. सी.बी.मुथम्मा वुमेन एम्पॉवरमेंट (Women Empowerment) की ऐसी मिसाल है जिन्होंने अपनी हिम्मत, व्यक्तित्व और निश्चय से दुनिया में महिलाओं के लिए मिसाल कायम की.  

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