कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (Corporate Social Responsibility-CSR) के ज़रिये व्यवसाय सामाजिक विकास (social development) में योगदान देते हैं और अपने मुख्य कार्यों से परे ज़मीनी स्तर पर बदलाव लाने के लिए काम करते हैं. CSR के ज़रिये कंपनियों द्वारा समाज को लौटाने की अवधारणा पुरानी है. टाटा समूह और अजीम प्रेमजी फाउंडेशन (Azim Premji Foundation) जैसे बड़े नाम कई दशकों से जमीनी स्तर पर सामाजिक कार्यक्रमों और योजनाओं को डिजाइन करने में मार्गदर्शन दे रहे हैं.
2013 में भारत सरकार ने CSR नियमों में बदलाव किया और कंपनियों के लिए CSR को अनिवार्य बना दिया. नियमों में कहा गया है कि पिछले तीन वर्षों में नेट प्रॉफिट का 2% CSR गतिविधियों पर खर्च किया जाएगा. सरकार के दबाव के बावजूद, कुछ कंपनियां अभी भी CSR को लागू करने के लिए जूझ रही हैं. वे नहीं जानती कि कहां से शुरू करें, किससे संपर्क करें, या किस क्षेत्र में काम करें. कई कंपनियां इस चुनौती से 2023 में भी जूझ रही हैं. शोध से पता चलता है कि ज़्यादातर CSR परियोजनाएं 4-5 राज्यों में केंद्रित हैं, जिनमें महाराष्ट्र और कर्नाटक को पर्याप्त खर्च मिलता है.
वर्तमान में, CSR खर्च का एक बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च किया जा रहा है. हालांकि, विकास के लिए दुसरे आयामों पर भी काम करना ज़रूरी है. समग्र विकास का लक्ष्य पूरा करने के लिए और कौशल, आजीविका, लिंग, प्रभावी शासन और डिजिटल पहुंच जैसे कई क्षेत्रों को संबोधित करने की ज़रुरत है. समाज के निचले तबके को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए योजनएं बनानी होंगी.
यह समझने के लिए कि किस क्षेत्र में CSR सही रहेगा, फील्ड की सही जानकारी, डेटा, और रिसर्च (research) ज़रूरी है.स्थानीय समुदायों के साथ जुड़ना और विश्वसनीय अनुसंधान संगठनों के साथ मिलकर एरिया की रिसर्च करना, CSR को सरल और प्रभावशाली बना सकता है.
एक बार बैंक की CSR शाखा ने CSR प्रोजेक्ट शुरू करने से पहले यह पता लगाया कि झारखंड में ग्रामीण समुदाय ऋण तक कैसे पहुंच रहे हैं. ग्राउंड पर रिसर्च की गई कि वे पारंपरिक साहूकारों के पास जा रहे थे, या स्वयं सहायता समूहों (self help groups) का सहारा ले रहे थे. बैंक के CSR का उद्देश्य लोगों को अनुचित ब्याज दरों और साहूकारों के शोषण से समुदाय को बचाने के लिए बैंकिंग सुविधाओं और सरकारी ऋणों तक पहुंच बढ़ाना था. रिसर्च के दौरान पता चला कि उस समुदाय में कियोस्क शुरू किये जा सकते हैं और हर महीने बैंक के प्रतिनिधियों को इन समुदायों में दौरे के लिए भी भेजा जा सकता है. इसके बाद, बैंक ने CSR लागू किया और साथ ही समुदाय में अपनी सर्विसेज बढ़ाकर मुनाफा भी बढ़ाया.
CSR गतिविधियों को लागू करने से पहले यदि समुदाय की ज़रूरतों (community needs) का आकलन किया जायेगा तो न सिर्फ उस समुदाय की चुनौतियां दूर होंगी, पर CSR के ज़राये अपने मुख्य काम को बढ़ाने के अवसर भी मिल सकेंगे.
साभार: प्रेरणा मुखर्या
फाउंडर, आउटलाइन इंडिया