Dr. Nandini Mohta की पहल बदल रही लोगों का नज़रिया

Dr. Nandini Mohta बताती है- "जब भी मैं जाती और उनके रिश्तेदारों को कोई बच्ची देती, मैं मुस्कुराती और कहती- "माउशी, लक्ष्मी आली, माला मिठाई पाईजे" (लक्ष्मी आई हैं, मुझे मिठाई चाहिए!)

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रिसिका जोशी
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Dr. nandini mohta

Image- Ravivar vichar

महिला सशक्तिकरण, नारीवाद, feminism, gender equality... और भी बहुत से शब्द सुने होंगे ना आपने. लड़कियों को आगे बढ़ाओ, उन्हें सामान मौके दो, वो किसी से काम नहीं... और ना जाने क्या क्या! लेकिन grass root level पर असलियत क्या है ये सिर्फ एक ऐसा व्यक्ति बता सकता है जो एक बच्ची क जन्म दिलवाने में सहायक हो- एक डॉक्टर!

Dr. नंदिनी मोहता है MD Anaesthesia

ऐसी ही एक MD Anaesthesia है Dr. Nandini Mohta जो GMC hospital में delivery ward में हर दिन 20 से ज़्यादा deliveries करवाती है. नवजात के जन्म के तुरंत बाद मां और उसके परिवार का ये सवाल नहीं होता कि बच्चे का स्वास्थ कैसा है, बल्कि सवाल होता है- "लड़का है की लड़की." 

यह एक सवाल सारी असलियत बता देता है. 24 घंटे में 20 से ज़्यादा deliveries होती है उनके अस्पताल में. हम सोचते हैं कि एक देश के रूप में हम लैंगिक भेदभाव से आगे बढ़ गए हैं, लेकिन यह भ्रम तब टूट जाता है जब एक नई मां लड़की के जन्म पर रोने लगती है  और उसे हाथ में लेने से मना कर देती है. समझ आता है की इस देश में लड़की कोई सिर्फ पूजा ही जाता है उनके आने पर ख़ुशी नहीं मनाई जाती.

डॉक्टर बताती है- "मां की एपीसीओटॉमी की सिलाई करते वक़्त वह रोती है और अपनी बच्ची को देखने या पकड़ने से इनकार कर देती है." एक और मामले में, बच्ची की दादी उसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया और उसे लेबर रूम के बाहर बेंच पर छोड़ दिया.

जब महिलाओं और उनके रिश्तेदारों को बताया जाता है कि यह एक लड़का है, तो उनके चेहरे पर राहत और चमक आ जाती है, पहले की तुलना में, एक डॉक्टर के रूप में और उससे भी अधिक एक महिला के रूप में, निराशा से अधिक एक sinking feeling आती है.

छोटी सी पहल बदल बदल रही लोगों का नज़रिया 

इसी बात को ध्यान में रखते हुए नंदिनी ने  फैसला किया कि इस तरह  से वे हर दिन और नेह सहन कर सकती उन्होंने ठान लिया कि वे कुछ और प्रयास करेंगी. वे बताती है- "जब भी मैं जाती और उनके रिश्तेदारों को कोई बच्ची देती, मैं मुस्कुराती और कहती- "माउशी, लक्ष्मी आली, माला मिठाई पाईजे" (लक्ष्मी आई हैं, मुझे मिठाई चाहिए!)

वे बताती है- "यह process धीमा था, लेकिन मैंने देखा कि कैसे रिश्तेदार मेरी बात को दर्ज करते थे और मुस्कुराते थे. वे हमें मिठाइयाँ देने का वादा करते, भले ही वह मुस्कान हल्की ही क्यों न हो. इससे मुझे यह एहसास होने लगा कि डॉक्टर न केवल अपने ज्ञान और कौशल से बल्कि अपने शब्दों से भी प्रभावित करने और बदलाव लाने की शक्ति रखते हैं." उनकी एव छोटी सी पहल बदलाव लाने के लिए काफी है.