विगत 3-4 सालों में जिस महामारी ने पूरी दुनिया को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से चपेट में लिया, वह है कोरोना महामारी और इस महामारी से उबरने में जो सबसे कारगर सिद्ध हुआ वह है "योग". योग (yoga) ही एक मात्र ऐसी विधा है जिसके माध्यम से व्यक्ति का शारीरिक-मानसिक विकास संभव है. यदि उच्च पढ़ाई या जानकारी लेना हो तो जनसामान्य विदेश जाने की सोचते हैं, लेकिन जब बात आती है योग की, योग के मूल को जानना हो, योग की जड़ें समझना हो तो पूरी दुनिया की निगाहें हमारे देश पर आ टिकती है. क्यूंकि योग भारत (India) में जन्मा है. यही वजह अंतरराष्ट्रीय योग दिवस (International Day of Yoga) 21 जून की घोषणा और पालन का श्रेय भारत की इस विधा को जाता है. यदि इस योग को हम जीवन का हिस्सा बना लें तो जीवन ऊर्जा से तो भर ही जाएगा लेकिन जीवन जीने की कला भी आ जाएगी.
योगमुद्रा में पूजा शर्मा (फोटो क्रेडिट :रविवार विचार)
मन की धैर्यता की चाबी योग
योग हमारे जीवन को सरलता की ओर ले जाता है. योगमयी होने पर मन की उलझने खत्म हो जाती है. जीवन में नियमितता आती है, अनुशासन आता है, संयम आता है, मन को साधा जा सकता है. ऐसा नहीं है कि योग में होने पर जीवन में समस्याएं, उलझने या परेशानियां नहीं होंगी. नहीं.....समस्याएं तो जीवन का हिस्सा है जो हमेशा बनी रहेंगी लेकिन योग में होने पर आप समस्याओं के बारे में नहीं, समाधान के बारे में सोचने के बारे में प्रेरित करता है. समाधान खोजते है,जो सकारात्मक होते है . यही योग है . हम इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं. मान लीजिए हमें कार से किसी दूसरे शहर जाना है, लेकिन हम रास्ता नहीं जानते तो हम हम इधर-उधर से रास्ता पूछ कर, भटक कर, कुछ अनुमान लगा कर दूसरे शहर जैसे-तैसे पहुंचते है. परंतु यदि हम गूगल नेविगेशन (mobi.e app) की सहायता लें तो हम आसानी मंज़िल तक पहुंच ही जाएंगे, ठीक उसी तरह से योग हमारे जीवन में सहायता करता है और हम हमारी स्वस्थ शरीर (healthy body) की मंज़िल तक पहुंचता है.
योगमुद्रा में पूजा शर्मा (फोटो क्रेडिट :रविवार विचार)
योग में अनेक विधाएं है. उनमें से एक मुख्य है प्राणायाम. प्राणायाम शब्द प्राण और आयाम से मिलकर बना है. सामान्यतः प्राणायाम शब्द का अर्थ माना जाता है कि सांसों का विस्तार करना. तो क्या प्राण का अर्थ सांस है? नहीं. क्यूंकि सांसें तो नैसर्गिक है. प्राकृतिक देन और सहज प्रक्रिया है. इसीलिए प्राणायाम में प्राण का अर्थ हुआ वह शक्ति जो हमें जीवन देती है. हमें ऊर्जा देती है.जो हमारे जीवन को चलायमान रखती है, उस 'संजीविनी शक्ति' का विस्तार करना ही प्राणायाम है. प्राणायाम के द्वारा शुद्ध वायु फेफड़ों के एक-एक वायु कोश तक पहुंचती है तथा साथ ही शरीर के विषाक्त और विकार को बाहर लाती है.
योगमुद्रा में पूजा शर्मा (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)
योग के लिए जगह नहीं, मन चाहिए
अक्सर लोग उत्साह में योग शुरू करते हैं. महंगे-महंगे मेट और साधन खरीदते हैं. कुछ दिन के बाद यह प्रेक्टिस छोड़ देते हैं. योग के लिए जगह नहीं बल्कि मन चाहिए. यदि आप व्यस्त हैं तो ऑफिस में कुछ समय निकाल कर भी सहज योग कर सकते हैं. घर बड़ा होना जरुरी नहीं कुछ साफ-सुधरी जगह पर आसन लगा कर ध्यान कर सकते हैं. ऐसी मान्यता है कि कोई भी 21 दिन किया गया अभ्यास आदत बन जाता है. आप इसे आदत बनाइए. आप ऊर्जावान और सकारात्मक जीवन की संजीविनी को पा लेंगे.
यदि आप अधिक समय न दें सकें तो इतना तो कर ही सकते हैं-
* सहज बैठ कर आंख बंद करें. गहरी सांसें लें. बहुत आहिस्ता से लें और छोड़ें.
* ॐ का गहरा उच्चारण करें. यह नाभि तंत्र तक असर डालता है.
* आप कुछ देर मौन रहना सीखें. यदि विचार आते यहीं तो फ़िक्र न करें. कुछ समय बाद मन स्थिर होने लगेगा.
* बीपी,शुगर या माइग्रेन,अपच,कांस्टिपेशन है. सामान्य पानी पीकर करें लाभ होगा.
* ध्यान से उठें तो सकारात्मक सोचें. खुद को स्वस्थ महसूस करें.
* अथ्रॉइटिस है तो कलाई,घुटने सहित कमर, पैर के पंजे और एड़ी को हल्की गति से घुमाएं.
* योग एक्सपर्ट से जरूर सलाह लें. कई बार मन से अधिक योग शरीर के लिए परेशानी कर सकता है.