मानव तस्करी की शिकार महिलाओं को मिले अधिकार

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के 2021 के आंकड़ों के अनुसार, तस्करी किए गए 5,993 लोगों में से 65 % महिलाएं थीं. विश्व स्तर पर दर्ज किए गए प्रत्येक 10 पीड़ितों में पांच वयस्क महिलाएं और दो काम उम्र की लड़कियां हैं.

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मिस्बाह
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Image Credits: Ravivar Vichar

बिज़नेस की दुनिया में कई तरह की चीज़ों का व्यपार होता है. व्यापार 'चीज़ों' का होता है. अब, पहले वाक्य में 'चीज़ों' की जगह 'इंसानों' शब्द पढ़िए. क्योंकि, व्यापार जीते जागते 'इंसानों' का भी हो रहा है. मानव तस्करी पूंजीवाद की सबसे कड़वी सच्चाई है. पूंजीवाद मानव शरीर को, ख़ासकर सामाजिक रूप से कमज़ोर मानवों को इस्तेमाल करने योग्य, मुनाफा कमाने लायक, और व्यवसाय के सुनहरे अवसर के रूप में देखता है. ह्यूमन ट्रैफिकिंग (Human Trafficking) या मानव तस्कारी कहने को तो ग़ैरक़ानूनी है, लेकिन फिर भी यह हमारे समाज की गंभीर समस्या बनी हुई है.

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (statistics of the National Crime Records Bureau) के 2021 के आंकड़ों के अनुसार, तस्करी किए गए 5,993 लोगों में से 65 % महिलाएं थीं. संयुक्त राष्ट्र (United Nations) कार्यालय ने 2020 में मानव तस्करी पर अपनी वैश्विक रिपोर्ट (world report) में दर्ज किया कि विश्व स्तर पर दर्ज किए गए प्रत्येक 10 पीड़ितों में पांच वयस्क महिलाएं और दो काम उम्र की लड़कियां हैं. इस तरह के भारी भरकम आंकड़ों को देखते हुए, उन कारणों की जांच करना ज़रूरी हो जाता है जो महिलाओं को अवैध व्यापार की ओर धकेलते हैं. 

ड्रग्स और हथियारों के बाद ह्यूमन ट्रैफिकिंग दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऑर्गनाइज़्ड क्राइम (organised crime) है. अत्यधिक ग़रीबी, शिक्षा की कमी और कानून का ठीक से लागू न होना, मानव तस्करी का शिकार बनने की बड़ी वजहें बनता है. गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की महिलाओं को अक्सर संसाधनों और बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच की कमी से जूझना पड़ता है. जिसके कारण उन्हें गुलामी और बेरोजगारी की परिस्थितियों में धकेल दिया जाता है. जिसके बाद वे अपने लिए कोई भी निर्णय लेने के सक्षम नहीं बचतीं. इसके अलावा, विषम लिंगानुपात (skewed sex ratio), सांस्कृतिक मानदंड (cultural norms) और लिंग आधारित हिंसा (gender-based violence) महिलाओं की स्थिति कमज़ोर बनाती है. 

आज हर प्लेटफार्म पर महिलाओं के सशक्तिकरण पर चर्चा हो रही है. सशक्तिकरण के एक या दो नहीं, अनेक पहलु हैं. सशक्तिकरण लक्ष्य होने से ज़्यादा एक प्रोसेस है- बहुआयामी प्रक्रिया (multi-dimensional process) है. एक ऐसी प्रक्रिया जो किसी महिला को अपने जीवन पर कंट्रोल देती है. अपने निर्णय खुद लेने की ताकत देती है. सशक्तिकरण की प्रक्रिया में कदम रखने से पहले उन सभी चुनौतियों को पहचानना होता है जो उन्हें पुरषों की तुलना में  सामना करती हैं. इस तरह, लैंगिक समानता महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में शुरू की गई नीतियों का एक अहम उद्देश्य बन जाती है. 

भारत में, महिलाओं के सशक्तीकरण को पहली बार पांचवी पंचवर्षीय योजना (1974-79) में जगह दी गई जब नज़रिये को बदलते हुए विकास की परिभाषा में महिलाओं के विकास की बात को भी जोड़ा गया. महिलाओं के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना को 1976 में अपनाया गया. पहली बार योजना दस्तावेज में 'महिला और विकास' नाम से एक अध्याय शामिल किया. महिलाओं के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक विकास पर ध्यान देने के लिए 1992 में राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की गई. 

तस्करी की शिकार महिलाओं को समाज में लौटने के लिए सहायता करना उनके पुनर्वास के लिए एक ज़रूरी उपकरण हो सकता है. तस्करी की शिकार महिलाओं का सशक्तिकरण उनके जीवन के सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक, राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक क्षेत्रों के आस-पास घूमता नज़र आता हैं. सशक्तिकरण का सामाजिक पेहलु समाज में महिलाओं को भ्रांतियों से लड़ने में मदद करता है. शैक्षिक और आर्थिक सशक्तिकरण (educational and economic empowerment) उन्हें  रोज़गार देकर खुद के पैरों पर खड़ा होने के सक्षम बनाता है.  

सरकार ऐसी कई पहलें कर रही है जो महिलाओं को उनकी इच्छा और क्षमता के अनुसार अपना रास्ता खुद बनाने में ईंट का काम करती हैं.

उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने में स्वयं सहायता समूहों (Self Help Groups) से काफी मदद मिली है. आजीविका मिशन (Ajeevika Mission) से जुड़कर महिलाएं प्रशिक्षण हासिल कर रही हैं और आत्मनिर्भर बन रही हैं.

इसी कड़ी में, तस्करी की शिकार महिलाओं के सशक्तिकरण और पुनर्वास के लिए सरकार ने कई कार्यक्रम शुरू किए हैं. मानव तस्करी की शिकार महिलाओं को सुरक्षित स्थान देने के लिए, पश्चिम बंगाल में असमी केंद्र, उनकी मानसिक सेहत पर ध्यान देता है, और व्यावसायिक और कौशल-आधारित प्रशिक्षण देता है. देशभर में, सरकार ने हर उम्र की तस्करी से पीड़ित महिलाओं को कानूनी सेवाएं देने के लिए NALSA (The National Legal Services Authority) विक्टिम्स ऑफ़ ट्रैफिकिंग एंड कमर्शियल सेक्सुअल एक्सप्लोइटेशन योजना (Victims of Trafficking and Commercial Sexual Exploitation), 2015 की शुरुआत की. 2016 में, महिला और बाल विकास मंत्रालय ने उज्ज्वला की शुरुआत की, जो तस्करी की रोकथाम और कमर्शियल यौन शोषण के लिए तस्करी के पीड़ितों के बचाव और पुनर्वास के लिए एक व्यापक योजना है. तस्करी के खिलाफ इंडियन लीडरशिप फोरम (ILFAT) जैसे मंच तस्करी के खिलाफ चल रहे आंदोलन में पीड़ित महिलाओं की आवाज़ को बुलंद करने में मदद कर रही है. 

ह्यूमन ट्रैफिकिंग के चंगुल से निकल आई महिलाओं को अपनी कहानी खुद लिखनी होगी और योजनों में कमियां बतानी होगी. नागरिक, सरकार, मीडिया, न्यायालय- सभी को मिलकर एक ऐसा समाज बनाने की ज़रुरत है जहां लोकतंत्र के लाभ से ये महिलाएं और बच्चे वंचित न हो.  

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