'मिस्टर एंड मिसेज 55', 'कागज के फूल', 'प्यासा', 'बाज', 'जाल', 'साहिब बीबी और गुलाम' जैसी कई शानदार फिल्में देने वाले गुरु दत्त (Guru Dutt), हिंदी फिल्म (Hindi Film) जगत के नायाब कलाकारों में से एक हैं. उन्हें हिंदी सिनेमा (Hindi Cinema) को नई ऊंचाइयों तक ले जाने का आधार माना गया जिन से आज भी फिल्मी जगत सीख रहा है. गुरु दत्त एक लेखक, निर्देशक, अभिनेता और फिल्म मेकर थे. हम गुरु दत्त को खोए हुए और उदासीन किरदारों, जॉनी वॉकर (Johny Walker) के कॉमेडी ट्रैक और उनकी असामयिक मृत्यु के लिए याद करते हैं. इसके अलावा, दत्त को उनकी फिल्मों में दिलचस्प और अपने समय से आगे रहने वाले महिला पात्रों के लिए भी याद किया जाता है.
गुरु दत्त की फिल्मों को 'महिलाओं की फिल्में' नहीं कह सकते, पर उनकी फ़िल्में तेजी से हो रहे मॉडर्नाइज़ेशन (Modernisation) के असर को जस का तस दिखाती हैं. उनकी फिल्मों में गरीबी और बेरोजगारी, अकेलापन, महत्वाकांक्षा, सफलता और विफलता,रचनात्मकता, सेक्शुअलिटी, पहचान, मृत्यु और निराशा जैसे भाव शामिल रहते. उनकी कहानियों में महिला किरदार (female characters) पारंपरिक सामाजिक व्यवस्थाओं पर सवाल उठाती दिखीं.
फिल्म 'मिस्टर एंड मिसेज 55' में सीता देवी, जिसका किरदार ललिता पवार (Lalita Pawar) ने निभाया था, उन शुरुआती नारीवादी किरदारों (feminist characters) में से एक हैं जिन्हें हमने फिल्मों में देखा था, हालांकि उनके किरदार में कई कमिया थी. विवाह पर उनका नज़रिया और उनकी यह सोच कि महिलाओं को किसी भी कीमत पर ज़बरदस्ती शादी नहीं करनी चाहिए, ने दर्शकों को सोचने पर मजबूर किया. फिल्म 'प्यासा' में एक सेक्स वर्कर के किरदार को दिखाया गया है जिसे अपने जीवन में किसी 'हीरो' की तलाश नहीं है. फिल्म के मुख्य किरदार - विजय को गुलाबो किनारे रखती है.
फिल्म 'बाज़' बॉलीवुड (Bollywood) की उन शुरूआती फिल्मों में से है जो अपने समय से बहुत आगे थीं, जिसमें महिला के मुख्य किरदार को एक्शन करते देखा गया. गीता बाली ने एक ताकतवर राजकुमारी निशा की मुख्य भूमिका निभाई, जो एक समुद्री डाकू राजा और विद्रोही बनने के लिए एक पुर्तगाली गुलाम जहाज पर चढ़ती है और दुश्मनों का सामना करती है. फिल्म 'कागज़ के फूल' में अभिनेता को एक टूटे हुए दिल वाले फिल्म निर्देशक के रूप में दिखाया गया था. फिल्म की नायिका शांति का किरदार वहीदा रहमान (Waheeda Rehman) ने निभाया जो नायक के मुश्किल वक़्त के दौरान उसके जीवन में आती है. वो नायक को बचाने की जगह सहायक की भूमिका निभाती है. उसे अपने रिश्ते को संभालने वाली और एक मजबूत, महत्वाकांक्षी महिला के रूप में दिखाया गया है.
फिल्म समाज का आइना होती है, और अपने किरदारों के ज़रिये समाज को आइना भी दिखाती है. गुरु दत्त की फिल्मों ने उस समय पारंपरिक किरदारों से हटके किरदार दिए, जब उनकी कल्पना भी नहीं की जा रही थी. उनके महिला किरदारों द्वारा उठाये सवाल आज के समाज पर भी लागू होते हैं और सोचने पर मजबूर कर देते हैं.