मां , यह शब्द सुनते ही प्रेम, ममता, करुणा के साथ पालन, पोषण और देखभाल की एक मूर्ति सामने खड़ी हो जाती है. महिलाएं अगर बच्चों की देखभाल इतनी अच्छी तरह कर सकती है तो सोचिये वो अपने खेत खलिहान को कैसा संभालेंगी. ग्रामीण महिलाएं बुवाई से लेकर कटाई और कटाई के बाद भी फसल के रख रखाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. महिला किसान कृषि उत्पादन, खाद्य सुरक्षा , फसल पोषण, भूमि और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन में खासतौर पर योगदान देती हैं. इस तरह वे कृषि में बहुआयामी होती है और भारत की दूसरी हरित क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं.
सरकार की विभिन्न योजनाओं जैसे जैविक खेती, स्वरोजगार योजना, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना आदि के तहत ग्रामीण महिलाओं को वरीयता मिलती है. हालांकि भारत में विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति हुई है लेकिन फिर भी लिंग असमानता (जेंडर पेरिटी) हर जगह मौजूद है. विश्व के कृषि क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी 43 % है जो भारत में 70-80 प्रतिशत तक बढ़ जाती है. भारत में ग्रामीण महिलाएं कृषि उत्पादन बढ़ा रही हैं, खाद्य सुरक्षा में सुधार कर रही है. इस तरह गरीबी उन्मूलन की तरफ भारत के हाथ मजबूत कर रही हैं.
इस सबके बावजूद महिलाओं को खेतों में भी शोषण का सामना करना पड़ता है. पुरुषों की तुलना में अधिक कृषि काम करने के बाद भी अधिकार और आय दोनों नहीं मिलते. यूएन की फ़ूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइज़ेशन (FAO) की रिपोर्ट के अनुसार, यदि महिलाओं को पुरुषों के समान संसाधनों तक समान पहुंच दी जाए तो विकसित देशों में कृषि उपज में 2.5 से 4 प्रतिशत की वृद्धि की जा सकती है, जो कम से कम 100 मिलियन अधिक कुपोषित लोगों को अच्छा खाना खिलाने के लिए पर्याप्त है. इसी तरह यदि ग्रामीण महिलाओं को अवसर और सुविधाएं मिले तो वे देश को दूसरी हरित क्रांति की ओर ले जा सकती हैं और तस्वीर बदल सकती हैं. आज ग्रामीण महिलाएं मजदूरी और कटाई के बाद के कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. महिला किसान अपने पुरुष समकक्षों की तरह उत्पादक और उद्यमी दोनों हो सकती हैं, लेकिन जमीन जायदाद में हिस्सा , लोन सुविधा , कृषि खरीदी , मंडी पहुंच की काम जानकारी से पीछे रह जाती है. यह देखा गया है कि ग्रामीण महिलाओं को ग्रामीण पुरुषों और शहरी महिलाओं की तुलना में अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.
महिलाओं को भारतीय अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा माना जाता है. भारतीय कृषि में महिला किसानों का बहुत बड़ा योगदान है. महिलाएं कृषि क्षेत्र में कार्यबल का सबसे बड़ा प्रतिशत हैं, लेकिन उनका ज़मीन और उत्पादक संसाधनों पर नियंत्रण नहीं है. महिला कृषकों के ज्ञान, दृष्टिकोण और कौशल में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रशिक्षण और तकनीकी सलाह प्रदान करने की ज़रुरत है. साथ ही नए शोध और अनुसंधानों के बारे में भी उन्हें जानकारी देने की ज़रुरत है. आम तौर पर कृषि में महिलाओं की भूमिका को हाशिए पर रखा जाता है और उनके योगदान को कम करके आंका जाता है.
सरकार हो या NGO दोनों ने ही कृषि में महिलाओं की भूमिका पर कम ध्यान दिया है. इसका परिणाम यह हुआ की जिस प्रकार और जिस स्तर पर कृषि क्षेत्र में महिलाओं का काम होना चाहिए था वह नहीं हो पाया. कृषि से जुड़ी ग्रामीण महिलाओं की वास्तविकताओं से शासन, प्रशासन, समाज और हम सब को संवेदनशील होने की आवश्यकता है. इस से उन्हें पुरुषों के समान कृषि और ग्रामीण विकास के अवसर मिलेंगे. महिला किसानों को ऋण, मार्केट और नई कृषि तकनीक प्रदान की जा सकती हैं. यह सुविधाएं उन्हें एकमुश्त SHG के तौर पर मिल सकती है. इसलिए महिला स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) पर जोर दिया जाना चाहिए ताकि उन्हें माइक्रो-क्रेडिट से जोड़ा जा सके. महिला किसानों को सशक्त बनाने, उनकी क्षमताओं को बढ़ाने और नई कृषि प्रौद्योगिकियों तक उनकी पहुंच बढ़ाने के लिए SHG बहुत मददगार साबित होंगे.