महिला वित्तीय साक्षरता में कॉर्पोरेट का साथ

भारत में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु की हर चार में से तीन महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं है. भारत में महिलाओं की श्रम भागीदारी दर लगातार गिर रही है और आज बमुश्किल 20% से ऊपर है.

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रोहन शर्मा
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Financial Literacy in women population

Image Credits: Social Barriers

जब महिलाएं अर्थव्यवस्था में भाग लेती हैं, तो सभी का लाभ होता है. जब महिलाएं शांति-निर्माण और शांति-स्थापना में भाग लेती हैं, तो दुनिया अधिक सुरक्षित होती है. और जब महिलाएं अपने देशों की राजनीति में भाग लेती हैं तो वे बदलाव ला सकती है ' - हिलेरी क्लिंटन

इसी बात को आगे बढ़ाते यह कहना गलत नहीं होगा की जब महिलाएं समुदाय और सामाजिक विकास में भाग लेती है तो देश का विकास होता है. महिला सह-भागिता को बढ़ाने का मुख्य और असरकारक ज़रिया कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिल्टी प्रोग्राम (CSR) हो सकते है. CSR में महिला सशक्तिकरण को प्राथमिकता से रखने की आवश्यकता है. 

हमारे सामने ऐसे कई उदहारण है जहां महिला स्वयं सहायता समूह की मेंबर , जमा खाता हिसाब वगैरह सँभालते हुए आज क्लस्टर लेवल की लीडर बन चुकी है।  इस तरह Self Help Group की महिला आज समाज में लीडरशिप रोल में आ रही है , जिनके पास समाज और जीवन में बदलाव लाने की क्षमता है। इस तरह वह अपने समुदायों के अंतिम व्यक्ति तक जागरूकता और वित्तीय पहुंच को बढ़ावा दे रही है। SHG से जुड़ी इन महिलाओं ने अपने परिवार और समुदाय के बेहतर भविष्य के लिए दुर्गम सामाजिक और आर्थिक बाधाओं को पार किया है।

स्वयं सहायता समूहों ने , धीरे-धीरे इस मिथक को तोड़ने में मदद की है कि कमाना पुरुषों का काम है. घरेलू स्तर पर महिलाएं निर्णय लेने में अधिक से अधिक शामिल हो रही है. बैंकिंग सेवाओं और वित्तीय लेनदेन के मामलों में पुरुषों पर निर्भरता का स्तर भी कम हुआ है. साथ ही SHG से जुड़ी महिलाओं ने समुदाय सामाजिक और आर्थिक मूल्यों से जोड़ने के लिए गहरी मंशा दिखाई है. सरपंच और ग्रामीण पुरुषों को बीमा और पेंशन नीतियों, बैंक में खाता खोलने, अपने बच्चों की शिक्षा के लिए सरकारी योजनाओं की सलाह लेने और अपने पैसे को बचाने और सही निवेश करने की जाग्रति इनमें बढ़ रही है. 

वित्तीय स्वतंत्रताजागरूकता और महिलाओं सशक्तिकरण भारत के समावेशी विकास के लिए महत्वपूर्ण है. बढ़ती असमानताओं और शक्ति के केंद्रीयकरण के कारण इसे नजरंदाज कर पाना अब और भी मुश्किल है. इसका उदाहरण विश्व बैंक द्वारा हाल ही में लॉन्च किए गए फिनडेक्स से पता चलता है कि भारत में 68% महिलाएं 'फाइनेंशियली इंक्लूडेड' है यानी औपचारिक बैंकिंग चैनलों से जुड़ी हुई है. दूसरी ओर, यह पता चला है कि 23% पुरुष खाताधारकों की तुलना में 32% महिला खाताधारकों ने अपने खातों का उपयोग नहीं किया है. इसके अलावा, 35% पुरुषों की तुलना में केवल 20% महिलाओं के पास डेबिट या क्रेडिट कार्ड है. अधिकांश विवरणों के अनुसार वित्तीय स्वतंत्रता, अवसर और कमाने की क्षमता से जुड़ी हुई है. 

भारत में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु की हर चार में से तीन महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं है. भारत में महिलाओं की श्रम भागीदारी दर लगातार गिर रही है और आज बमुश्किल 20% से ऊपर है. सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के बावजूद, भारत मानव विकास सूचकांक पर 189 देशों में से 131वें स्थान पर है. इसलिए, लैंगिक अंतर को पाटना और महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाना न केवल रैंकिंग में सुधार के लिए, बल्कि बेहतर सामाजिक परिणामों और प्रगति के लिए भी अनिवार्य है.

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इन परिभाषाओं से वित्तीय जागरूकता की धारणा का पता चलता है. यहां तक कि एक महिला जो काम करती है और कमाती है, वह वित्तीय रूप से स्वतंत्र नहीं हो सकती है, क्योंकि अधिकांश महिलाओं (शहरी और ग्रामीण) में वित्तीय साक्षरता की कमी है. महिलाओं को वित्तीय तौर पर जागरूक करने की आवश्यकता है ताकि वे औपचारिक और सुरक्षित माध्यमों से बचत कर सकें. उन्हें अपने वित्तीय लक्ष्यों को खुद से स्पष्ट करने और उनके हिसाब से विभिन्न उत्पादों का चयन करने, उत्पादक उद्देश्यों के लिए ऋण प्राप्त करने और अपने भविष्य को सुरक्षित करने में सक्षम हो जाए. 

कंपनियां और उनके सीएसआर प्रोग्राम इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभा सकते है. यह सच है की ग्रामीण महिलाओं को वित्त के बारे में जागरूक होने और उस तक पहुंचने में कई चुनौतियों और बाधाओं का सामना करना पड़ता है, फिर भी जब बात मेहनत की कमाई को बचाने की आती है तो वे सबसे अच्छा मोल तौल करती है. साथ ही वित्तीय समावेशन और सशक्तिकरण एक ऐसी ताकत है, जो जाति और धर्म की बाधाओं को तोड़कर सभी सामाजिक स्तरों पर महिलाओं को एकजुट करती है. स्वतंत्र रूप से वित्तीय विकल्प और निर्णय लेने की क्षमता महिलाओं को पहचान और सम्मान की भावना प्रदान करती है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में. और इस तरह महिला सशक्तिकरण निस्संदेह व्यापक समुदाय और अर्थव्यवस्था पर एक बदलाव लाने वाला प्रभाव डालता है.

Corporate Social Responsibility (CSR) के तहत अगर वित्तीय साक्षरता और समावेशन (इन्क्लूसन) पर काम किया जाए तो न सिर्फ महिला सशक्तिकरण बल्कि सामुदायिक और सामाजिक विकास में खुद ब खुद तेज़ी आएगी.  कई CSR प्रोग्राम इस ओर काम भी कर रहे है जैसे L&T Financial Services ने 'डिजिटल सखी' (Digital Sakhi ) शुरू की , ICICI Bank Limited भी वित्तीय साक्षरता को लेकर बड़े स्तर पर काम कर रहा है. Home Credit India (HCIN ) भी महिलाओं के बीच वित्तीय साक्षरता प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया प्रोजेक्ट "सक्षम" पर काम कर रहा है.  बंधन बैंक (Bandhan Bank), क्रिसिल (Crisil) जैसे कई कॉर्पोरेट्स आज अपनी CSR एक्टिविटी के साथ इस ओर आगे बढ़ रहे है. ज़रुरत है ऐसे ओर प्रयासों की मुख्यतः कॉर्पोरेट दुनिया से क्योंकि महिलाओं के पास चाह है और राह भी दिख रही है बस इंतज़ार है उस राह पर आगे ले जाने वाले साथ की.

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