प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, लोकसभा में विपक्ष ने नेता मल्लिकार्जुन खड़गे सब साथ एक टेबल पर बैठे है. सामने प्लेट्स में परोसा गया है मिलेट से बना स्वादिष्ट खाना. हंसी मजाक के माहौल में सभी खाने का आनंद ले रहे है. इस स्तर पर सरकार आज मिलेट का प्रोमोशन कर रही है. भारत के प्रोपोज़ल के बाद संयुक्त राष्ट्र (UN) ने साल 2023 को 'इंटरनेशनल ईयर ऑफ़ मिलेट्स' घोषित किया, जिससे मिलेट्स को खूब बढ़ावा मिला. साथ ही आम जनता में भी मिलेट से बने खाने की जागरूकता बढ़ी है. रागी की खीर, कोदो का मंचूरियन, कुटकी का चीला जैसी कई चीज़ें भी अब बाज़ार में दिखने लगी हैं. मिलेट को फ्यूचर सुपर फ़ूड का नाम दिया गया है.
आज राष्ट्रीय और राज्यों की पहल की वजह से मिलेट्स खेतों में लौट रहा है. पोषक-अनाज कहे जाने वाले बाजरा को किसानों ने स्मार्ट क्रॉप का नाम दिया क्योंकि ये कम वर्षा और अनुपजाऊ मिट्टी में भी आसानी से उग जाता है. मिलेट्स की बढ़ती डिमांड के बाद अब सवाल उठता है, क्या हम मिलेट की डिमांड पूरी कर पाएंगे?
मिलेट्स को 'पोषण का पावरहाउस' माना गया. 10 अप्रैल, 2018 को कृषि मंत्रालय ने बाजरा को 'पोषक अनाज' घोषित किया. ज्वार, बाजरा, रागी/मंडुआ, मामूली बाजरा - कंगनी/काकुन, चीना, कोदो, सावा/सांवा/झंगोरा, और कुटकी, एक प्रकार का अनाज (कुट्टू) और अमरनाथ (चौलाई), जिनमें 'उच्च पोषक तत्व' होते हैं. मिलेट्स को 'न्यूट्री सीरिअल्स' कहा गया और इसको उत्पादन, खपत और व्यापार के लिए 'पोषक अनाज' के रूप में सरकार इसे ग्लोबल स्तर पर प्रमोट कर रही है. आईसीएआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मिलेट्स रिसर्च, हैदराबाद का कहना है, "बाजरा में 7-12% प्रोटीन, 2-5% वसा, 65-75% कार्बोहाइड्रेट और 15-20% आहार फाइबर होता है.
बाजरा की खेती पहले 35 मिलियन हेक्टेयर ज़मीन के क्षेत्र में की जाती थी. लेकिन अब इसे केवल 15 लाख हेक्टेयर में ही उगाया जा रहा है. जबकि, तमाम सरकारी कोशिशें इसे बढ़ावा देने की बात कर रही है. बाजरा की ज़्यादा मेहनत में कम पैदावार, खेती में समय लगना और मुश्किल प्रोसेसिंग होने के कारण किसानों ने अपने खेतों में बाजरा के बदले गेहूं और धान को जगह दी. भारत में बाजरा मुख्य रूप से खरीफ की फसल है. 2018-19 के दौरान, तीन मिलेट्स फसलें - बाजरा (3.67%), ज्वार (2.13%), और रागी (0.48%) - देश में सकल फसली क्षेत्र का लगभग 7 प्रतिशत है.
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए), 2013 के तहत, पात्र परिवार चावल 3 रुपये, गेहूं 2 रुपये और मोटा अनाज 1 रुपये प्रति किलो लेने के हकदार हैं. वैसे तो अधिनियम में मिलेट्स का नाम नहीं है, पर मोटे अनाज को NFSA की धारा 2(5) के तहत 'फ़ूड ग्रेन' की परिभाषा में शामिल किया गया. हालांकि, केंद्रीय पूल के लिए खरीदे गए और NFSA के तहत बांटे मोटे अनाज की मात्रा ज़ीरो है. भारतीय खाद्य निगम (FCI) के पास स्टॉक के डेटा से पता चलता है कि 1 नवंबर, 2022 को केंद्रीय पूल में मोटे अनाज का केवल 2.64 लाख मीट्रिक टन (LMT) स्टॉक उपलब्ध था. इसकी तुलना में, चावल 265.97 LMT, गेहूं 210.46 LMT और धान का स्टॉक 263.70 LMT था.
केंद्र ने अपने द्वारा गठित एक समिति की सिफारिश को माना कि मिलेट्स को पीडीएस में शामिल किया जाए. सरकार ने केवल ज्वार, बाजरा और रागी के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) घोषित किया. ज्वार हाइब्रिड के लिए एमएसपी 2,970 रुपये प्रति क्विंटल और ज्वार मालदंडी के लिए 2,990 रुपये प्रति क्विंटल घोषित किया. बाजरा की MSP 2,350 रुपये प्रति क्विंटल और रागी की MSP 3,578 रुपये प्रति क्विंटल तय की गई.
बाजरा मुख्य रूप से एशिया और अफ्रीका में कम आय वाले और विकासशील देशों में उगाया जाता है, और दुनिया भर में लगभग 60 करोड़ लोगों की थाली का हिस्सा है. 2023 को मोटा अनाज के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष के रूप में मनाने के संकल्प का प्रस्ताव देकर, भारत ने खुद को मिलेट्स के लीडर के रूप में पेश किया.
आर्थिक सर्वेक्षण 2023 के अनुसार, भारत में बाजरा की औसत उपज 1,239 किलोग्राम/हेक्टेयर है, जो किसानों को आमतौर पर धान या गेहूं से मिलने वाली उपज का सिर्फ एक चौथाई है. एशिया में, भारत बाजरा उत्पादन में 80% योगदान देता है, और विश्व स्तर पर, भारत की हिस्सेदारी 20% है. लेकिन, यह भारत में मिलेट्स उगा रहे किसानों के लिए मुनाफे का सौदा नहीं रहा है. मिलेट की फसल को सिर्फ स्मार्ट क्रॉप नहीं पर किसानों के लिए इसे स्मार्ट इनकम का सोर्स भी बनाना ज़रूरी है.
साथ ही मिलेट्स के उत्पाद को बढ़ाने के लिए मोटा अनाज की सभी किस्मों के MSP तय करना होगा, PDS में प्रचार के साथ मोटे अनाज को जगह देनी होगी. सरकार को सिर्फ ईयर ऑफ़ मिलेट घोषित करवाने की पहल पर संतोष करने की बजाय किसानों को लाभ और मिलेट के उत्पादन को बढ़ाने के लिए प्लान बड़े स्तर पर तैयार करना होगा. यदि किसानों को मिलेट्स की खेती से आर्थिक मज़बूती नहीं मिली तो तमाम प्रयास खोखले साबित होंगे. रविवार विचार का मानना है कि 'ईयर ऑफ़ मिलेट्स' की सफलता सटीक कार्यप्रणाली पर निर्भर करती है.