"आज सुबह जब मैं अपने काम पर आने के लिए तैयार हो रही थी तो मैंने देखा कि मेरे नानाजी टीवी पर कुछ शास्त्रीय संगीत सुन रहे है. हालांकि, हमारे घर में अक्सर शास्त्रीय संगीत सुनते है वो, लेकिन आज लकुच अलग था. जो आवाज़ मेरे कानों पर पड़ी तो मुझे कुछ अलग सा लगा. क्योंकि आवाज़ में जो भारीपन, भाव और जोश था वो मैंने पहले कभी नहीं सुना था."
आवाज़ थी Gangubai Hangal की. आज से पहले तक मई उनका नाम भी नहीं जानती थी, लेकिन उनकी आवाज़ ने मनो मुझे मजबूर कर दिया है उनके बारे में जानने के लिए. आज उनका जन्मदिन है. यानि ये सितारा जिसनें भारतीय शास्त्रीय संगीत का विचारलोगों के मन में बदल दिया था."
"जब मैंने इनके बारे में पढ़ा तो मुझे कुछ ऐसी बातें पता चलीं गंगूबाई के बारे में जिन्होंने मेरे मन में इनके लिए अलग आदर उत्पन्न कर दिया है."
Gangubai Hangal का जन्म
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धारवाड़, Karnataka में इस छोटी सी बच्ची का जन्म 5 march 1913 में हुआ था. एक छोटे से परिवार में जन्मी इस बच्ची में बचपन से ही संगीत सीखने की इच्छा थी क्योंकि इनका परिवार संगीत से जुड़ा हुआ था. गंगूबाई की सबसे पहली प्रशिक्षक उनकी मां थी. गंगूबाई की संगीत यात्रा छोटी उम्र में ही शुरू हो गई जब उन्होंने अपनी मां अंबाबाई से संगीत सीखना शुरू किया, जो खुद एक शास्त्रीय गायिका थीं.
मां से सीखने के बाद उन्हें उस वक़्त के सबसे बेहतरीन प्रशिक्षक से सीखने को मिला. बाद में, उन्होंने प्रसिद्ध संगीतकार (women in history) और शिक्षक सवाई गंधर्व से जयपुर-अतरौली घराने में औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया.
Gangubai Hangal को सवाई गन्धर्व ने दिया था प्रशिक्षण
Gangubai Hangal के जीवन में दो महत्वपूर्ण शिक्षक थे. उनकी पहली शिक्षिका उनकी मां अंबाबाई थीं, जो एक गायिका थीं. बाद में उन्होंने सवाई गंधर्व गुरु के रूप में प्राप्त हुए. वह भारत के सबसे बेहतरीन शिक्षकों में से एक थे. उन्होंने पंडित भीमसेन जोशी जैसे महान कालका को भी सिखाया था और अब एक और महान गायिका गंगूबाई को सिखाने वाले थे. भले ही उनके गुरु 30 किलोमीटर दूर रहते थे लेकिन फिर भी गंगूबाई उनसे सीखने के लिए हर दिन ट्रेन से यात्रा करती थीं.
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शूद्र परिवार में जन्मी थी Gangubai Hangal
गंगूबाई का जन्म एक छोटे से परिवार में हुआ था. उनका जन्म धारवाड़ में एक कृषक चिक्कुराओ नादिगर और कर्नाटक संगीत की गायिका अंबाबाई के घर हुआ था. हंगल ने केवल प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और उनका परिवार 1928 में हुबली में चला गया ताकि गंगूबाई हिंदुस्तानी संगीत सीख सकें.
एक संगीतकार और एक महिला के रूप में, Gangubai Hangal को बहुत अपमान का सामना करना पड़ा क्योंकि लोग उन्हें 'low social status' वाली मानते थे. अपने हर संगीत प्रदर्शन के बाद, वे उसके साथ खाना खाने से भी मना कर देते थे जिसके कारण उन्हें बाहर खाना खाना पड़ता था. इन कठिन अनुभवों के बावजूद, गंगूबाई अपने अपमान से परेशान नहीं हुई. लेकिन ये कहा जा सकता है कि उनके संगीत में उदासी इन्ही सारे अनुभवों का जोड़ हो.
Gangubai Hangal थी उस वक़्त की feminist
जब देश में feminism का चलन भी शुरू नहीं हुआ था तब कुछ महिलाएं थी जो असल में इस विचार की प्रतीक थी. Hangal ने जिस वक़्त संगीत की दुइनया में इतना बड़ा नाम बनाया था तब देश में भारतीय शास्त्रीय संगीत को पुरुष प्रधान मना जाता था.
ऐसे युग में जब महिला शास्त्रीय संगीतकार बहुत काम थी तब गंगूबाई ने लैंगिक रूढ़िवादिता को तोड़ा और भारतीय शास्त्रीय संगीत के पुरुष-प्रधान क्षेत्र में अग्रणी बन गईं. उन्होंने महिला संगीतकारों की भावी पीढ़ियों के लिए मार्ग भी
प्रशस्त किया है.
Gangubai Hangal के गले की सर्जरी के बाद हुई भरी आवाज़
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गले की सर्जरी के बाद उनकी आवाज़ में एक भारीपन आ गया था जिसे किराना घराने के दिग्गजों ने वर्षों की कड़ी मेहनत से फायदे में बदल दिया. कलकत्ता में एक संगीत सम्मेलन में, गंगूबाई को उनके संगीत कार्यक्रम के निर्धारित होने से एक रात पहले एक निजी बैठक में गाने के लिए कहा गया.
उन्हें ऐसा करने के लिए कहा गया क्योंकि आयोजक उनके जैसी कमजोर लड़की से इस आवाज़ की कल्पना ही नहीं कर पा रहे थे. लेकिन उस दिन उन्हें त्रिपुरा के महाराजा ने इतनी बेहतरीन प्रदर्शन के लिए स्वर्ण पदक से सम्मानित किया.
पंडिता और विदुषी की उपाधि लाने वाली प्रेरक थी Gangubai Hangal
प्रमुख महिला गायिकाओं को 'बाई', 'बेगम' और 'जान' कहकर पुकारना बंद कराकर 'पंडिता' या 'विदुषी' कहकर संबोधित करने का श्रेय गंगूबाई को दिया जाता है. उन्होंने संगीत industry में मौजूद दोहरे मापदंड का खुलकर विरोध किया और इसी के साथ वे महिला अधिकारों केलिए हमेशा खफ्ही रहने वाली महिलाओं में से एक थी. वह बॉलीवुड अभिनेता नाना पाटेकर सहित कई लोगों के लिए मां समान हैं, जिन्होंने उनके संगीत समारोहों में भाग लेने का कोई मौका नहीं छोड़ा.
96 में चल बसी Gangubai Hangal
94 साल की उम्र में, गंगूबाई ने अपना आखिरी संगीत कार्यक्रम कुंडगोल के नादागीर वाडा में दिया, जहां उन्होंने आधे घंटे से अधिक समय तक दर्शकों को अपनी आवाज़ से दीवाना बना दिया था. कोई यकीन ही नहीं कर पा रहा था कि इस उम्र में ऐसी आवाज़ में गाना मुमकिन है. अपने संगीत करियर के अलावा, गंगूबाई सामाजिक और राजनीतिक कार्यों में भी सक्रिय रूप से शामिल थीं. उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम सहित विभिन्न आंदोलनों को अपना समर्थन दिया.
Gangubai Hangal को भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनके असाधारण योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले. कुछ उल्लेखनीय पुरस्कारों में पद्म भूषण, पद्म विभूषण और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार शामिल हैं.Gangubai Hangal का 21 जुलाई 2009 को 96 वर्ष की आयु में निधन हो गया. लेकिन वो आज की पीढ़ी की संगीतकारों के लिए एक रास्ता तैयार कर के गयीं जिसपर चलकर आज ना जाने कितनी बेहतरीन गायिका हमारे सामने आ रही है.