आज के इस दौर में महिलाएं पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं, हर फील्ड में अपनी पहचान बना रही हैं, फिर भी उन्हें समान वेतन नहीं मिल रहा. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा "वीमेन एंड मेन इन इंडिया 2022" नामक एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, भारत के ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में वेतन में गहरा लिंग अंतर है. रिपोर्ट ने बताया कि समान कार्य करने वाली महिलाओं के लिए बाजार-निर्धारित मजदूरी पुरुषों की तुलना में काफी कम है. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक समाचार रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक दशक में ग्रामीण क्षेत्रों में लैंगिक वेतन अंतर बढ़ा है, हालांकि शहरों में यह कम हुआ है.
एनएसओ की इस रिपोर्ट से पता चलता है कि अप्रैल-जून 2022 के दौरान, ग्रामीण भारत में महिला मजदूरी दर पुरुष मजदूरी के आधे से 93.7% तक थी, जबकि शहरों में, यह पुरुष मजदूरी के आधे से 100.8% के बीच रही. राष्ट्रीय आंकड़ों के अनुसार, पुरुषों के लिए औसत ग्रामीण मजदूरी 393 रुपये प्रतिदिन है जबकि एक महिला कार्यकर्ता की मजदूरी 265 रुपये प्रतिदिन है. इसी तरह, पुरुषों के लिए शहरी मजदूरी 483 रुपये/दिन है जबकि महिलाओं के लिए यह 333 रुपये/दिन है.
ग्रामीण पुरुषों के लिए सबसे ज़्यादा दैनिक मजदूरी दर वाले तीनों राज्यों - केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में भी मजदूरी में व्यापक लिंग अंतर है, जहां महिला मजदूरी औसत पुरुष मजदूरी का 60% से कम है. केरल में लिंग वेतन अंतर बड़े राज्यों में सबसे व्यापक है, ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में पुरुषों और महिलाओं के बीच समान कार्य के लिए मजदूरी में असमानता का अनुभव होता है. केरल में ग्रामीण पुरुषों के लिए औसत दैनिक मजदूरी दर देश में सबसे अधिक 842 रुपये है, जबकि राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में महिला श्रमिकों को प्रतिदिन 434 रुपये मिलते हैं, जो पुरुषों के वेतन का केवल 51.5% है.
अन्य बड़े राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, कर्नाटक और ओडिशा में, महिला ग्रामीण मजदूरी दर पुरुष श्रमिकों के वेतन के 70% से कम थी, एनएसओ प्रकाशन का हवाला देते हुए टीओआई की रिपोर्ट में कहा गया है. कर्नाटक को छोड़कर, जहां सबसे अधिक पुरुष मजदूरी दर है, अन्य पांच राज्यों में दैनिक मजदूरी 400 रुपये से कम है. उत्तराखंड एक ऐसा शहरी क्षेत्र हैं जहाँ पुरुषों की तुलना में महिलाओं की कमाई कुछ ज़्यादा है.
चार राज्यों, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में, पुरुष मजदूरी दर प्रति दिन 400 रुपये से अधिक है और लिंग विभाजन सबसे कम है. इन राज्यों में महिला मजदूरी पुरुष मजदूरी का 85% से अधिक है. गुजरात, मध्य प्रदेश और झारखंड में भी लैंगिक विभाजन कम है. हालांकि, इसके पीछे एक कारण यह है कि पुरुष श्रमिकों को भी महिलाओं को उचित वेतन मिलने के बजाय बहुत कम दर पर भुगतान किया जा रहा है. कई राज्यों के लिए, शहरी क्षेत्र एक समान पैटर्न दिखाते हैं क्योंकि पुरुषों के लिए उच्च मजदूरी दर लिंग विभाजन को बढ़ाती है जबकि कम मजदूरी वाले राज्यों में विभाजन काफी कम है. इस प्रकार, शहरी मजदूरी में लैंगिक अंतर केरल में सबसे अधिक है क्योंकि यहां पुरुषों के लिए उच्चतम मजदूरी दर है. इसी तरह, कर्नाटक और तमिलनाडु में भी पुरुषों के लिए उच्च मजदूरी दर और मजदूरी में बड़ी लैंगिक असमानताएं हैं.
इसके विपरीत, गुजरात, ओडिशा और झारखंड जैसे राज्यों में कुल मजदूरी दर सबसे कम है, जिसकी वजह से लिंग के आधार पर वेतन का अंतर कम है. विशेष रूप से, हरियाणा, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में समग्र वेतन अधिक है और लिंग वेतन अंतर कम है. टीओआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2011-12 के वेतन आंकड़ों की तुलना से पता चलता है कि 19 बड़े राज्यों के ग्रामीण इलाकों में से 11 में लिंग वेतन अंतर बढ़ गया है, पश्चिम बंगाल, गुजरात और छत्तीसगढ़ में 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि देखी गई है. वर्ल्ड इनक्वॉलिटी रिपोर्ट ने बताया भारत में मज़दूरी से कमाए गए पैसों में महिलाओं का योगदान सिर्फ 18 % है, जबकि पुरुषों ने 82 % का योगदान दिया.
इन आंकड़ों को पढ़कर लगेगा कि शायद वेतन की असमानता सिर्फ भारत में है, लेकिन आपको बतादें कि सबसे ज़्यादा विकसित कहे जाने वाले देश अमेरिका में भी कुछ ऐसा ही हाल है. अमेरिकन महिलाओं को सैलरी हाइक मांगने पर पुरुषों की तुलना में ज़्यादा रिजेक्शन झेलना पड़ता है. वह की 61 % महिला कर्मचारियों ने कभी खुद से सैलरी हाइक नहीं माँगा. एक रिपोर्ट में बताया गया कि अमेरिका में पुरुषों की तुलना में करीब 17 % कम वेतन मिलता है. केवल 36 % महिलाएं अपनी सैलरी से संतुष्ट है, जबकि 42 % पुरुष अपनी सैलरी से खुश है.
शिक्षा, कौशल या अनुभव वेतन तय करने के पैरामीटर होने चाहिए, लेकिन आज भी लिंग के आधार पर वेतन तय किया जा रहा है. पुरुष सहकर्मी जितनी मेहनत करने पर भी महिलाओं को समान वेतन नहीं मिलना समाज के न्यायिक मूल्य पर सवाल खड़ा करते हैं ? गाँवों और शहरों में महिलायें स्वयं सहायता समूहों से जुड़कर आर्थिक क्रांति ला रही हैं, वर्कफोर्स में शामिल होकर जीडीपी (सकल घरेलु उत्पाद) में योगदान दे रही हैं. इकॉनमी को बूस्ट देने की क्षमता रखने वाली इस आधी आबादी के वेतन में भेदभाव न केवल इनके मनोबल को तोड़ेगा, पर वर्कफोर्स में इनकी भागीदारी पर भी गहरा प्रभाव डालेगा. आज हम हर क्षेत्र में समानता की बात कर रहे हैं, फिर वेतन में समानता पर ठोस कदम क्यों नहीं उठाये गए?