सिकल सेल : आधुनिक इलाज के बिना मिशन अधूरा

Sickle Cell Awareness Day: संगठन के प्रयास और सरकार को मिली जानकारी का असर यह हुआ कि स्कूलों में सिकलसेल की जांच को जरुरी कर दिया. आदिवासी जिलों में जांच की मशीनों की संख्या को बढ़ाया गया. अस्पतालों में मुफ्त दवाइयों की सुविधा बढ़ने के निर्देश दिए गए.

New Update
sickle cell

खरगोन के आदिवासी बहूल भगवानपुरा इलाके में निःशुल्क लगाया कैंप

पश्चिमी मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में ही सामाजिक संगठनों और लगाए गए कैम्प में डॉक्टर्स (doctors) द्वारा बीमार लोगों से पता चलता है कि 21 से 24 प्रतिशत लोग सिकलसेल एनीमिया (sickle cell anemia) जैसी जानलेवा बीमारी की चपेट में हैं। इससे भी बड़ी चिंता इस बात यह है कि ये गर्भवती महिलाएं सही इलाज और सही काउंसलिंग के आभाव में सिकलसेल से पीड़ित नए बच्चे को जन्म दे रहीं हैं। हालांकि पिछले कुछ साल से सरकार और यहां तक कि राज्यपाल मंगूभाई पटेल (Governor Mangubhai Patel) ने खुद इंट्रेस्ट दिखाया।

आप यह जानकर चौंक जाएंगे कि मप्र के आदिवासी इलाकों (Adivasi regions) में गर्भवती महिलाएं (pregnant women) भयावह बीमारी की चपेट में है. अपनी बीमारी से बेखबर ये महिलाएं खून की कमी और शारीरिक थकान समझ केवल आयरन की गोलियां खा रहीं हैं. पश्चिमी मध्य प्रदेश में ही सामाजिक संगठनों और लगाए गए कैम्प में डॉक्टर्स द्वारा बीमार लोगों से पता चलता है कि 21 से 24 प्रतिशत लोग सिकलसेल एनीमिया जैसी जानलेवा बीमारी की चपेट में हैं. इससे भी बड़ी चिंता इस बात यह है कि ये गर्भवती महिलाएं सही इलाज और सही काउंसलिंग के आभाव में सिकलसेल से पीड़ित नए बच्चे को जन्म दे रहीं हैं. हालांकि पिछले कुछ साल से सरकार और यहां तक कि राज्यपाल मंगूभाई पटेल ने खुद इंट्रेस्ट दिखाया.

प्रदेश में आदिवासी बहुल खरगोन जिले की भुरली बाई (परिवर्तित नाम) कहती है -"कई सालों से मुझे एकदम बुखार आता. बहुत कमजोरी लगती. गांव में किसी भी बंगाली डॉक्टर को देखा देती. बॉटल चढ़ जाती. गोली खा लेती. ठीक होकर फिर मजदूरी करने जाती. एक बार तबियत ज्यादा बिगड़ी. खरगोन सरकारी अस्पताल गई.खून की कमी हो गई. खून की बॉटल चढ़ाई. फिर मेरे गांव में डॉक्टर आए. उन्होंने  बताया कि लंबा इलाज चलेगा." ऐसी कई भुरली बाई गावों में बीमारी से जूझ रही. खरगोन, बड़वानी, झाबुआ और आलीराजपुर जिलों के कई गांव में लोग बीमारी की चपेट में हैं.

तकलीफ देख लगाए मुफ्त कैंप

sickle cell

डॉ. हितेश मुजाल्दे बच्चे का चेकअप करते हुए

मुजाल्दे दंपति इन सालों में निजी तौर पर लगभग दस हजार मरीजों का डाटा लेकर मुफ्त इलाज कर चुके हैं. भोपाल के गवर्मेंट महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर पद से नौकरी छोड़ आदिवासी जिलों में अपनी सेवाएं दे रहीं हैं. अभी तक 42 कैंप अलग-अलग जिलों में लगा कर मरीजों की जांच कर चुके हैं.  

खरगोन जिले के चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ. हितेश मुजाल्दे कहते हैं -" लगातार बच्चों में कमजोरी और बार-बार बुखार की शिकायत लेकर कई परिवार आते. मै समझ गया कि सामान्य बुखार नहीं है. खुद ने कैंप लगाना शुरू किए. लगभग छह साल से मैं आदिवासी इलाकों में जाकर जांच करता हूं. दवाइयों के साथ काउंसलिंग की. इस कैंप में हमारी टीम ने देखा कि पुरुष और महिलाएं भी सिकलसेल बीमारी की चपेट में हैं. इस मुहिम में मेरी पत्नी गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. रक्षा मुजाल्दे भी जुड़ गईं."

डॉ. रक्षा मुजाल्दे कहती हैं -" जब देखा कि सबसे भोलाभाला आदिवासी समाज और उसके लोग बड़ी संख्या में चपेट में हैं. इनके बीच जीवन बिता कर इलाज करने की ठान ली. इलाज के दौरान गर्भवती महिलाओं को सिकलसेल जांच और बीमारी पॉसिटिव आने पर काउंसलिंग करती हूं. यदि गर्भ में पल रहा बच्चा भी सिकलसेल पॉसिटिव हैं तो शुरुआत में ही प्रिग्नेंसी रोकने की सलाह देते हैं. कई बार महिलाएं ज्यादा आयरन की गोलियां खा लेती हैं, जिससे दूसरे ऑर्गन्स ख़राब हो जाते हैं."

जांच को लेकर सरकार हुई अलर्ट

sickle cell

डॉ. रक्षा मुजाल्दे महिलाओं की नियमित काउंसलिंग करती हुईं

पिछले कुछ सालों से लगातार सरकार को मिल रहे फीडबैक और बढ़ते मरीजों की संख्या देख अलर्ट हो गई. यहां तक कि राज्यपाल मंगू भाई पटेल ने खुद आदिवासी इलाकों में दौरा कर सीधे परेशानी समझी. संगठन के प्रयास और सरकार को मिली जानकारी का असर यह हुआ कि स्कूलों में सिकलसेल की जांच को जरुरी कर दिया. आदिवासी जिलों में जांच की मशीनों की संख्या को बढ़ाया गया. अस्पतालों में मुफ्त दवाइयों की सुविधा बढ़ने के निर्देश दिए गए. साथ ही सिकलसेल मरीज को जरूरत पड़ने पर प्राथमिकता के आधार पर निःशुल्क ब्लड सुविधा देने के ऑर्डर दिए गए.

क्या है सिकलसेल एनीमिया ?

यह सामान्य एनीमिया से अलग और जानलेवा है. सामान्य एनीमिया यानि खून की कमी वाला मरीज कुछ दवाई और परहेज करने से ठीक हो जाता है. सिकलसेल एनीमिया में मरीज को बार-बार ब्लड चढ़ाना होता है. किसी के शरीर के ब्लड में रेड ब्लड सेल्स (लाल रक्त कणिकाएं) होती है. एक व्हाइट ब्लड सेल्स (श्वेत रक्त कणिकाएं) और प्लाज़्माहोता है. आरबीसी ही शरीर में ऊर्जा को ब्लड के साथ सब जगह ले जाती है. ये गोल आकर की होती है. शरीर में 100 से 120 दिन तक ये आरबीसी जीवित रहती है. फिर शरीर में ही नई बनती है.लेकिन सिकलसेल के मरीज में ये आरबीसी गोल की जगह दरातें या हंसिया जैसी होती है. ये केवल 10 से 12 दिन में मर जाती है. और इसीलिए शरीर में खून की कमी के साथ शरीर में असहनीय दर्द होता है. बुखार आ जाता है. बार-बार ब्लड चढ़ाना पड़ता है.कई बार मरीज की मौत भी हो जाती है. यदि सिकलसेल मरीज की आपस में शादी हो जाए तो गर्भ में पल रहे बच्चे को भी इस बीमारी का पूरा खतरा रहता है.


गरीब मरीजों के लिए और चाहिए सुविधा

सरकार ने अपने स्तर पर कई सुविधा और इलाज की व्यवस्था की. आदिवासी गरीब इलाकों में अधिक लोग चपेट में होने से इलाज की सुविधा बढ़ाने की मांग की जा रही. सिकलसेल एनीमिया के खिलाफ लड़ रहे सामाजिक संगठन और स्पेशलिस्ट डॉक्टर से बात करने के बात 'रविवार विचार' ने गरीब और आदिवासी लोगों को सिकलसेल से मुक्त करने के सुझाव सरकार को भेजे- 

  • जैनेटिक टेस्टिंग की सुविधा शुरू हो. ( महंगी जांच होने से अभी सक्षम लोग ही सैंपल मुंबई लेब भेज रहे) इससे काफी हद तक गर्भ में नए बच्चे इस बीमारी से बच सकेंगे.
  • जैनेटिक काउंसलिंग की व्यवस्था हो. इससे 9 से 10 सप्ताह के गर्भ के दौरान ही पता चल जाएगा कि बच्चे में यह बीमारी ट्रेड में है या चपेट में है.
  • अभी भी जरुरी दवाइयां कम पड़ जाती हैं. फोलिक एसिड, हाइड्रोक्सी यूरिया, ओरल पेनिसिलिन, पैरासिटेमॉल टेबलेट्स पर्याप्त हों.
  • वैक्सीनेशन मुहिम चलाई जाए. और स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं मिशन से जुड़ कर जागरूकता अभियान चलाए.
Madhya Pradesh sickle cell anemia Governor Mangubhai Patel doctors pregnant women Adivasi regions