हेलेन केलर (Helen Keller) वो नाम है जिसने असंभव को संभव बनाने की मिसाल क़ायम की, जिसे 14 दशकों बाद भी याद किया जा रहा है. मुश्किलों के बीच उन्होंने होंसला न हार कर, आत्मसम्मान के साथ अपने सपने पूरे किये. अपने जीवन में हेलेन ने करीब 86 साल बिना देखे, बिना सुने बिताये. पर, उन्हें अपनी पहचान दृष्टिहीन या बधिर के रूप में नहीं बनानी थी. हेलेन ने अपनी उपलब्धियों से दिव्यांगों (disabled), खासकर दृष्टिहीन (blind), मूक (mute) और बधिरों (deaf) के प्रति दुनिया का नज़रिया बदल दिया.
27 जून 1880 को अलबामा (Alabama) में जन्मी हेलेन नॉर्मल बच्चों की तरह ही थीं. लेकिन, 19 महीने की उम्र में हुए ब्रेन फ़ीवर (brain fever) ने उनकी ज़िन्दगी बदलदी. डेढ़ साल की हेलन को दिखाई और सुनाई देना बंद हो चुका था. शुरुआत में तो हेलेन किसी तरह अपनी बात मां को समझा देती, लेकिन ज़रूरतें बढ़ने के साथ बात न समझा पाने की वजह से हेलेन चिड़चिड़ाने, चिल्लाने, और सामान फेंकने लगी. 19 महीने की उम्र में ही बधिर हो जाने के वजह से वो कोई भी भाषा नहीं सीख पाई थी, इसलिए बोलकर अपनी बात समझाने का रास्ता भी उसके पास नहीं था.
इस परिस्थिति में हार मानना आसान था, लेकिन हेलेन के मां-बाप ने उन्हें अच्छी शिक्षा देने का फैसला किया. अलेक्सेंडर ग्राहम बेल (Alexender Graham Bell) ने उस समय टेलीफ़ोन का आविष्कार किया था और वो बधिर बच्चों के साथ काम कर रहे थे. ग्राहम ने हेलेन को बोस्टन (Boston) के पर्किन्स स्कूल फॉर ब्लाइंड्स (Perkins School For Blinds) ले जाने की सलाह दी. वह हेलेन के लिए मिस ऐनी सुल्लिवन (Ms. Anne Sullivan ) को नियुक्त किया गया. उन्होंने हेलेन को 'द हेलेन केलर' बनने में मदद की. पेड़, पत्तियां, गुड़िया, हवा, पानी, धूप, हेलन ने हर चीज़ को छू कर महसूस किया और इस तरह ऐनी सुल्लिवन ने हर चीज़ के नाम सिखाये.
Image Credits: Biography
आगे चलकर, हेलेन ने धीरे-धीरे ब्रेल, टच लिप रीडिंग, टाइपिंग और फिंगर स्पेलिंग सीखी. पढ़ाई के दौरान वे प्रसिद्ध लेखक मार्क ट्वेन से मिली. ट्वेन के दोस्त हेनरी रॉजर ने हेलेन का रैडक्लिफ कॉलेज (Radcliffe College) में पढ़ाई का खर्च उठाया. वहां हर लेक्चर को सुल्लिवन उनके लिए इन्टरप्रेट करतीं. इस तरह हेलेन ग्रेजुएशन पूरा करने वाली पहली डेफ और ब्लाइंड लड़की बनी. इसी दौरान उन्होंने मिस सुल्लिवन और उनके होने वाले पति जॉन मेसी (John Macy) की मदद से अपनी आत्मकथा ‘The Story of My Life’ लिखी. 1953 में उन्हें नोबेल प्राइज (Nobel Prize) के लिए नॉमिनेट किया गया. सोशलिस्ट पार्टी की मेंबर होने के साथ उन्होंने, अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन की शुरुआत की. अपने जीवन काल में वो 39 देशों में गई और हर जगह उन्होंने विकलांगों की शिक्षा का संदेश दिया.
Image Credits: Wikipedia
अपनी आत्मकथा में हेलेन ने लिखा है, "यदि हम डटे रहें तो हम वो कर सकते हैं, जो हम करना चाहते हैं " हेलेन केलर अज्ञानता और डर के अंधेरे को दूर कर, ज्ञान और साहस की रौशनी फैलाना सिखाती है. उनका जीवन इस बात का सबूत है कि शिक्षा क्षमताओं को बढ़ाती है, सपनें पूरा करने का साहस देती है.