अपनी भाषा की सुगंध साथ लिए फिरती हैं स्त्रियां

आज विश्व Hindi Diwas है. विगत कुछ वर्षों को देखें तो महिला दिवस और हिंदी दिवस कुछ अलग ही रंग-ढंग में नजर आते हैं, ये दिवस अपनी सफलता के उत्सव मनाते नजर आते हैं. इसमें निश्चित रूप से हिंदी की महिला रचनाकारों का अहम योगदान भी नजर आता है.

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निष्ठा गर्ग
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hindi diwas 2024

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आज विश्व हिंदी दिवस है, अक्सर किसी भी दिवस को इस संदर्भ में देखा जाता है कि इस बहाने संबंधित विषय के प्रति जागरूकता फैलानी होती है, क्योंकि वक्त की धार में वह लगातार पीछे छूट रहा होता है या पहले से ही पीछे छूटा हुआ होता है और उसे संबंल देकर बराबरी के धरातल पर लाकर खड़ा करना होता है.

Hindi Diwas 2024 पर याद करते है कुछ हिंदी रचनाकारों को

विगत कुछ वर्षों को देखें तो महिला दिवस और हिंदी दिवस कुछ अलग ही रंग-ढंग में नजर आते हैं, ये दिवस अपनी सफलता के उत्सव मनाते नजर आते हैं. उत्सव मनाया ही जाना चाहिए कि आज हमारी हिंदी तकनीक के समंदर में यूनिकोड फोंट पर सवार होकर सात समंदर को पार करती हुई लगातार लोकप्रिय हो रही है और ऐसा है, तो इसमें निश्चित रूप से हिंदी की महिला रचनाकारों का अहम योगदान भी नजर आता है.

उषा प्रियंवदा, सुधा ओम ढींगरानूर जहीरगगन गिलतिथि दानीशिखा वार्ष्णेयदिव्‍या माथुर, दिव्‍या विजय जैसे कई नाम हैं, जो लगातार विदेशी जमीन पर हिंदी का परचम लहरा रहे हैं. सुधा ओम ढींगरा तो लंबे समय से यूएसए में रहते हुए हिंदी के प्रचार प्रसार की दिशा में काम कर रही हैं.

भाषाएं सरहदें तोड़ती हैं, लेखक भी. वरिष्‍ठ साहित्‍यकार रति सक्‍सेना और मनीषा कुलश्रेष्‍ठ का कहना है कि वे जब भी विदेशों में अपना रचना पाठ करती हैं, हिंदी में ही करती हैं. 

हाल ही दोनों रचनाकारों ने एक मुलाकात में कहा कि जैसी हिंदी हम बोलते हैं, बस वैसे ही बोलें और देखें कि हिंदी जानने वाले तुरंत अंग्रेजी का दामन छोड़कर हिंदी में ही बात करने लगेंगे. बात सही भी है, सहज बोलेंगे तो भाषा को विस्‍तार मिलता ही जाएगा.

अपनी बात को विराम देती हूं, रति सक्‍सेना की एक कविता की दो पंक्तियों से- "बतरस की बलिहारी में/ भाषा बच जाती है सूखने से."

Hindi Diwas 2024