रामनवमी प्रसंगवश: रामराज्य में स्वयं सहायता समूह की परिकल्पना !

त्रेता युग यानि रामराज्य में उल्लेख है कि हर व्यक्ति अपने काम में जुटा रहता. वर्तमान में सरकारें और ग्लोबल जी 20 मीट में भी आध्यात्मिक-समृद्धि के साथ पर्यावरण को प्रमुख मिशन माना. रामराज्य में आर्थिक मजबूती,सम्मान और महिलाओं को हमेशा स्वतंत्रता मिली.

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Image Credits: Ravivar vichar

भगवान श्री राम ने हमारे जीवन में सदाचार और धर्म का प्रचार किया. उनके सदगुणों की महिमा से ही आध्यात्मिक और समृद्धि का स्वरुप हमारे सामने आता है. यदि उस काल में सहायता समूह के रूप में परिकल्पना करें तो वह अत्यंत करुणामय, प्रेमपूर्ण, निष्ठावान और सदगुणों से भरपूर होता. वे समूह के हर सदस्य को संदेश देते और उन्हें उनकी जरूरतों के अनुसार मार्गदर्शन देते. भगवान राम को सहायता समूह बनाने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि वे स्वयं सर्वशक्तिमान हैं और सभी चीजें संभव हैं. बावजूद अगर वे एक समूह बनाना चाहते तो वे अपने समूह में निम्नलिखित गुणों का संचार करते:

सहयोग: भगवान राम अपने समूह के सदस्यों के साथ एक टीम बनाएंगे जो एक दूसरे का सहयोग करेगी. वे समूह के सदस्यों के समस्याओं का समाधान करने में मदद करेंगे और सभी को एक साथ काम करने में मदद करेंगे.

संवेदना: भगवान राम संवेदनाओं के प्रतीक माने जाते हैं. वे भावुक हैं. दयालु हैं. वे अपने समूह के सदस्यों के प्रति संवेदनाओं के लिए सदैव प्रेरित करेंगे.

समर्पण: भगवान राम को त्याग और समर्पण का ही आधार माना. पूरी रामायण इन्हीं भावनाओं और पर केंद्रित है. वे पूरे राज्य में इस भाव को प्रचारित करते कि सदैव दूसरों को मान और उनके लिए सेवा-समर्पण का भाव ही सब को प्रसन्न रखता है. इस तरह समूह वे बनाते.

प्रकृति और पर्यावरण: भगवान राम ने प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण का हमेशा संदेश दिया. घने पेड़ों और जड़ी बूटियों का उपयोग किया गया. ये समूह होते. जहां इनकी सुरक्षा का हमेशा ध्यान रखा जाता. औषधीय पौधे और उपचार इन जंगलों के माध्यम से ही होते थे. 

यूं भगवान राम के राज्य की कल्पना हमारे सनातन में सबसे आदर्श मानी गई. संत तुलसीदास ने रामायण की एक चौपाई का बड़ा खूबसूरत वर्णन किया. आइए देखते है इस चौपाई को -

"दैहिक दैविक भौतिक ताप।   
राम राज नहिं काहुहिं व्यापा।।"

इस चौपाई में रामराज्य और उस दौर के जीवन को पूरी तरह समझ सकते हैं. आखिर क्यों अयोध्यावासी खुश थे. तुलसीदास व्याख्या करते हैं -" दैहिक यानि देह-शरीर और तापा का अर्थ ताप या कष्ट से है. इसी तरह दैविक का मतलब देवता - ईश्वर,और भौतिक के मायने यहां सांसारिक जीवन से हुआ. इस चौपाई की अगली लाइन का मतलब राम के राज्य में किसी को भी न शारीरिक न देवीय प्रकोप और न ही सांसारिक कष्ट था. सांसारिक कष्ट का मतलब आपसी मन-मुटाव और सुख-सुविधाओं का आभाव से रहा.यानि समूह गठन की जरूरत नहीं थी.लेकिन सामाजिक जीवन और एकजुटता के कई उदाहरण हम प्रसंग में पढ़तें हैं.  

त्रेता युग यानि रामराज्य में उल्लेख है कि हर व्यक्ति अपने-अपने काम में जुटा रहता. वर्तमान में सरकारें और ग्लोबल जी 20 मीट में भी अध्यात्म-समृद्धि के साथ पर्यावरण को प्रमुख मिशन माना. रामराज्य में आर्थिक मजबूती, सम्मान और महिलाओं को हमेशा स्वतंत्रता मिली. यदि उस दौर में स्वयं सहायता समूह के नज़र से सोचें तो किस तरह होते.आइए उन्हें देखते हैं. 

फूलों का उत्पादन: हम प्रसंगों में सुनते हैं कि राजा के महलों के साथ शिव मंदिरों को रोज फूलों से सजाया जाता था. इससे जाहिर है कि क्विंटलों फूलों का उपयोग होता था. फूलों के उत्पादन के लिए समूह होते. यह भी रोजगार का बड़ा आधार होता.   

शृंगार: राजघरानों में रानियों और ऐसी ही बड़े घरों की महिलाओं को रोज श्रृंगार किया जाता था. इस काम के लिए कई दासियां और महिलाएं जुटी रहती थीं. इस काम के लिए प्राकृतिक रंग और लेप के उपयोग किए जाते थे. वर्तमान दौर में इसका प्रचलन बढ़ा. ये ब्यूटी पार्लर की शक्ल में दिखाई देते हैं. महिलाओं के सौंदर्य और श्रृंगार का ज़िक्र कई जगह मिलता है. उस दौर में भी समूह होते तो नई पीढ़ी को इस कला में तैयार किया जाता. 

बुनकर: रामराज्य के दृश्यों में पहनावे को बड़े सादगी और आकर्षक तरीके से दिखाया जाता है. सिलाई मशीनों की जगह महिलाएं उस समय के संसाधन का उपयोग कर वस्त्र तैयार करती होंगीं. ये भी समूह होते जिन्हें हम आज बुटीक और बड़े बड़े सिलाई सेंटर के साथ शो रूम के रूप में देख रहे. यहां महिलाएं संचालित कर रहीं हैं. 

ऐसे कई उदाहरण हैं जो आज भी रामराज्य के कामकाजों का आधुनिक सकारात्मक रूपांतरण है. बदलती सोच में एक बार फिर महिलाओं के आत्मनिर्भरता, आर्थिक आज़ादी और स्वाभिमान के लिए पूरे देश में महिलाओं के समूह का गठन हो रहा. रविवार विचार का उद्देश्य भी ऐसे SHG के कार्यों को समाज के सामने लाना है. 

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