Self Help Groups की history क्या है?
Self Help Groups की history को समझें तो इस तरह के समूह गठन की शुरुआत में हमें कई दिलचस्प किस्से और प्रयास देखने को मिलेंगे. भारतीय व्यवस्था में वक़्त के साथ महिलाओं को सशक्त और financial independency देने के लिए women caring बढ़ी. Self help groups की शुरुआत 1954 में Gujarat की एक फैक्ट्री में किए गए प्रयास को माना जाता है. साथ ही 1972 को हम self help groups के गठन या initiation का साल मान सकते हैं. साथ ही Gujarat को इसका जनक भी कह सकते हैं.
अहमदाबाद के textile labour association ने मिल मजदूर परिवारों की महिलाओं को सिलाई, बुनाई आदि जैसे काम में ट्रेन करने के लिए अलग से 'women wing' बनाई गयी थी. उस दौर में Ela Bhatt- Former chancellor of the Gujarat Vidyapith, ने Self Employed Women's Association (SEWA) का गठन किया.
महिलाओं की कमाई बढ़ाने के मकसद से बुनकरों, कुम्हारों, फेरीवालों और भी दूसरी गरीब और स्व-रोज़गार महिला मजदूरों को एक किया. 1972 में इस प्रयास को हम SHG की शुरुआत मान सकते हैं. वक़्त के साथ यह बिल्कुल नई व्यवस्था और ढांचे में काम कर रहे हैं.
Self help groups क्या है?
Self help groups यानि लाखों महिलाओं का ऐसा समूह जो खुद महिलाओं के द्वारा संचालित किया जाता हो और अक्सर यह समूह महिलाएं अपने पैरों पर खड़े होने और स्वावलंबी बनाने के लिए तैयार करती है. यह government की नज़र में रहकर संचालित किया जाने वाला एक organisation है जिसे नियमानुसार केंद्र सरकार, राज्य सरकार और कई banks द्वारा सहयोग मिलता है.
भारत में कितने self help groups है?
इस समय पूरे देश में 9 करोड़ से अधिक समूह (2023 तक) अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रहे. यह सभी गठित समूह महिलाएं ही चला रहीं हैं.
Self help group की कोई पहचान बनी?
गांव में बनाए गए समूह की सदस्य महिलाओं की बढ़ती आर्थिक ताकत के साथ आत्मविश्वास ही वजह है कि गांव सरपंच से लगाकर मुख्यमंत्री, राज्यपाल और यहां तक कि राष्ट्रपति भी कई मौकों पर समूह की महिलाओं से मिल चुकी हैं.
Self help group क्यों जरुरी है?
SHG का गठन धीरे-धीरे जरुरी लगने लगा. सरकारों का ध्यान महिलाओं की योग्यता और उनके रोजगार के अवसर की ओर जाने लगा. सरकार के पास खुद की अलग फंडिंग अधिक नहीं होने के साथ सरकारी नौकरियों में लगातार बढ़ती स्पर्धा के बीच Self help group में सबसे अधिक उम्मीद नज़र आई. धीरे-धीरे self help group की जरूरत और उपयोगिता बढ़ने लगी. इस व्यवस्था से मजदूर या बेरोजागर महिलाओं में उत्साह नज़र आने लगा. कमाई के साधन बढ़ते दिखाई देने लगे.
सरकार की थोड़ी सी मदद और गाइडेंस में सेल्फ फंडिंग का यह सबसे बड़ा फ्रेम बनता दिखाई दिया. इस कारण सरकार के साथ जरूरतमंद महिलाओं को भी महिला Self help group जरुरी लगने लगा.
Self help group समूह में कितने सदस्य होते हैं?
किसी भी समूह में कम से कम 12 महिलाएं सदस्य होना जरुरी है. अधिकतम 20 हो सकती हैं. यदि एक ही समूह में बीस से अधिक महिलाओं को सदस्य बनाया जाता है तो ऐसे समूह का सहकारी संस्था में रजिस्ट्रेशन कराना होता है.
Ajeevika mission से self help groups का क्या संबंध है?
Self help group के महत्व को देखते हुए सरकार ने रोजगार आजीविका मिशन का गठन किया. इसमें ग्रामीण और शहरी आजीविका मिशन को बनाया. जिससे अधिक से अधिक महिलाएं अपने-अपने इलाकों में शामिल हो सकें. इसका पूरा नाम दीनदयाल अंत्योदय योजना आजीविका मिशन है. इसे डे एनआरएलएम भी कहते हैं.
क्या मैं Self help group में सदस्य बन सकती हूं?
बिल्कुल. Self help group में गांव की कोई भी इच्छुक महिला सदस्य बन सकती है. महिला को कोई काम करने और रोजगार करने में रूचि होना चाहिए. सदस्य महिला इस समूह के साथ जुड़ कर अपने काम यानि जो भी वह सामान बनाना जानती है या उसके पास हुनर, खेती किसानी जानती है, उसको मार्केटिंग का रास्ता मिल जाता है. मजदूरी करने वाली महिलाओं को भी इस समूह के जरिए नया काम मिलता है. इससे उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी होती है.
Self help group का गठन कैसे होता है?
Self help group के गठन की प्रकिया को शासन ने बहुत सरल बनाया. जनपद पंचायत में आजीविका मिशन से जुड़े अधिकारी संबंधित पंचायत और गांव में इच्छुक महिलाओं को एकजुट कर लिस्टिंग करते हैं. कम से कम 12 महिलाओं को एकजुट कर Self help group का गठन करते हैं. इस समूह में महिलाएं आपस में चर्चा कर सहमति से पदाधिकारी भी बनाती हैं. कोई भी सक्रीय महिला जो सभी को सरकारी योजनाओं और कामकाज को समझा सके, उसे अध्यक्ष बनाया जाता है. इसी तरह सचिव भी बनती हैं. महिलाएं मिलकर समूह का नाम रखती हैं.
Self help group कैसे काम करते हैं?
किसी भी पंचायत या गांव में समूह के गठन के बाद समूह की महिलाएं साथ मिल कर काम शुरू करती हैं. जनपद के अधिकारी समूह को काम करने का तरीका समझाते हैं. समूह गठन के बाद शासन द्वारा निर्धारित सूत्र के आधार पर समूह अपना काम शुरू करता है. केंद्र सरकार ने किसी भी समूह को काम करने के लिए 4 सूत्र दिए. इनका समूह पालन करते हैं.
Self help group में होने वाली बैठक में कौन से सूत्र होते हैं?
किसी भी Self help group को काम करने और बैठक करने के लिए चार सूत्र दिए गए. जिस आधार पर महिला सदस्य बैठक करतीं हैं. ये हैं- पहला सूत्र -नियमित साप्ताहिक बैठक, दूसरा सूत्र- साप्ताहिक बचत, तीसरा सूत्र- साप्ताहिक इंटर लोनिंग और चौथा सूत्र- रीपेमेंट मेथड.
नियमित साप्ताहिक बैठक - इस बैठक में क्या होता है ? क्यों जरुरी है ?
Self help groups की महिलाओं को साप्ताहिक बैठक के लिए कहा जाता है. यह बैठक सबसे जरुरी मानी जाती है. इसकी वजह से महिलाओं में आपस में एक-दूसरे के प्रति पहचान बढ़ती है. इसी बैठक में महिला सदस्य एक-दूसरे के काम को समझती हैं.
Self help group की बैठक किस जगह होती है?
Self help group की बैठक महिलाएं किसी के भी घर या तय कर कोई भी जगह पर रख सकती है. महिलाओं की सुविधा से वे खुद जगह तय कर सकती हैं.
Self help group में साप्ताहिक बचत या वीकली सेविंग क्या होती है?
साप्ताहिक बैठक में जब महिलाएं आपस में एक-दूसरे को समझने लगती हैं. पहचान बढ़ जाती है. सब महिलाएं मिलकर एक फिक्स/ निश्चित राशि तय करती है. वह पैसा हर सप्ताह इक्कठा करती हैं. इसका हिसाब सचिव महिला सदस्य रखती है. कम से कम 10 रुपए हर महिला मिलाकर जमा करती हैं. इसे साप्ताहिक बचत कहते हैं.
Self help group में साप्ताहिक इंटर लोनिंग क्या है ? SHG की सदस्य इसे कैसे करती हैं?
Self help group की महिलाएं साप्ताहिक बचत करना सीख जाती है. वह यह पैसा संभालती है. इस बीच यदि किसी सदस्य को जरूरत पड़ती है तो उस पैसे में से ही महिला सदस्य को मदद करते हैं. सदस्य महिला को लिया हुआ यह पैसा 1% ब्याज दर से लौटना होता है. समूह की महिला सदस्यों के बीच पैसों का यह लेन-देन ही इंटर लोनिंग कहलाता है.
रीपेमेंट मेथड (निर्धारित ब्याज 1 % सहित)
इंटर लोनिंग से लिया हुआ पैसा समूह की महिलाओं को वापस करना होता है. यह किश्तों में और 1 % ब्याज जोड़ कर महिला सदस्य को लौटना होता है. इसे रीपेमेंट प्रक्रिया कहते हैं.
Self help group में पदाधिकारियों का गठन कैसे होता है?
किसी भी ग्राम संगठन (विलेज ऑर्गेनाइज़ेशन) की गतिविधि को व्यवस्थित चलाने के लिए पदाधिकारी चुने जाते हैं. संगठन में शामिल समूह में से ही अध्यक्ष और सचिव में से गवर्निंग बॉडी के रूप में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, सहसचिव और कोषाध्यक्ष पद पर नाम सभी की सहमति से तय कर लिए जाते हैं.इसे ओबी यानि ऑफिस बेरर कहा जाता है.
इस संगठन में समूह से ही 10 महिला सदस्य एक्सिक्यूटिव कमेटी में शामिल की जाती हैं. इसे शार्ट फॉर्म में "इसी" कहा जाता है.
Self help group में ग्राम संगठन की भूमिका क्या होती है?
ग्राम संगठन की भूमिका किसी भी गांव में बहुत महत्वपूर्ण होती है. इस संगठन के पदाधिकारी गांव की पंचायत में होने वाली सभाओं में सक्रीय सहभागिता करती हैं. इस बैठक में होने वाले निर्णय और महिलाओं के फायदे से जुड़ी योजनाओं को समझ कर Self help group की सदस्यों तक पहुंचाना होता है. जिससे समूह की महिलाएं इन योजनाओं का लाभ समय पर ले सके.
Self help group में संकुल स्तरीय संगठन/सीएलएफ क्या होता है ?
यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण संगठन है. केंद्र सरकार इसी संगठन को सबसे ज्यादा मॉनिटरिंग करता है. रिपोर्ट लेता है.अपडेट करता है.
जैसा कि संगठन के नाम से ही स्पष्ट है संकुल का मतलब एक बड़ा समूह. जिला स्तर के आजीविका मिशन, समूह गठन में मदद करने के बाद इन्हें ग्राम संगठन के साथ जोड़ लेता है.
अब संकुल लेवल संगठन में लगभग 40 से 45 गांव के स्व सहायता समूह को शामिल किया जाता है. इस हिसाब से एक संकुल संगठन यानि सीएलएफ में 3 से 4 हजार महिला सदस्य शामिल होती हैं.
सीएलएफ/संकुल स्तरीय संगठन में पदाधिकारियों का गठन कैसे होता है?
इस संकुल स्तरीय संगठन में भी 5 पदाधिकारी होते हैं. इन पदों पर नियुक्ति बिल्कुल ग्राम संगठन (विओ) की तरह होती है. पांचों पद क्रमशः अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, सह सचिव और कोषाध्यक्ष के लिए पहले से गठित और ग्राम संगठन में शामिल समूह के अध्यक्ष और सचिव महिला सदस्य ही चुनी जाती हैं. इसमें हर ग्राम संगठन से दो-दो महिला सदस्य को बॉडी में शामिल किया जाता है. इस तरह संकुल संगठन में पदाधिकारी चुने जाते हैं.
संकुल स्तरीय संगठन की भूमिका SHG के लिए क्या होती है?
जैसा कि संकुल स्तरीय गठन से ही यहां भी स्पष्ट है कि Self help group के लिए संकुल सबसे बड़ा प्लेटफॉर्म है. सेंट्रल गवर्मेंट का ग्रामीण विकास मंत्रालय सीधे सीएलएफ के काम से अपडेट लेता है. केंद्र सरकार हो, राज्य सरकार या कोई भी बैंक अपनी रिपोर्ट और वित्तीय लेनदेन /फाइनेंशियल ट्रांसेक्शन सीएलएफ बिना नहीं करती. इससे समझ सकते हैं कि संकुल स्तरीय संगठन की भूमिका सबसे ज्यादा अहम है. केंद्र सरकार नियमानुसार किसी भी समूह को फाइनेंशियल सपोर्ट सीएलएफ के जरिए ही करती है.
Self help group को सरकार से मार्गदर्शन कैसे मिलता है?
घरेलु, मजदूर और बेरोजगार ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए केंद्र सरकार ने Self help group का गठन किया. एक फॉर्मेट बनाया. इस तरह के समूह में अधिकांश महिलाएं कमज़ोर तबके की हैं. इनको सही मार्गदर्शन और वित्तीय सहायता /फाइनेंशियल सपोर्ट की प्रक्रिया समझाने के लिए आजीविका मिशन का ऑफिशियल स्ट्रक्चर भी सेट किया. समूह के कामकाज की मॉनिटरिंग, गाइडेंस के साथ सहयोग की सूचना आजीविका मिशन के अधिकारियों के माध्यम से केंद्र के संबंधित विभाग के अधिकारियों और मंत्रालय तक पहुंचती है. केंद्र, राज्य सरकार और जिला स्तर पर इसे मॉनिटर किया जाता है.
आजीविका मिशन के लिए शासन और सरकार के ऑफिस कहां-कहां है?
केंद्र सरकार ने दीनदयाल अंत्योदय योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन होता है. इसी मिशन में सभी अधिकारी और समूह सम्मलित हैं. हर राज्य में इसका क्रियान्वयन है. केंद्र का ऑफिस नई दिल्ली में होता है. मिशन का ऑफिस ग्रामीण विकास मंत्रालय के अधीन काम करता है. इसी तरह हर राज्य की राजधानी में स्टेट हेड ऑफिस है. यहीं से सब कंट्रोल किया जाता है. राज्य स्तर पर इसे राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन / एसआरएलएम कहते हैं.
आजीविका मिशन में स्तर पर कौन-कौन अधिकारी होते हैं?
किसी भी Self help group के गठन से लगाकर मॉनिटरिंग, सहयोग देने के लिए सबसे छोटी इकाई जनपद पंचायत से संचालित होती है. यहां ब्लॉक मैनेजर/ बीएम बैठते हैं. 1 + 4 की तरह यहां ब्लॉक मैनेजर के अंडर में सामान्य रूप से 4 असिस्टेंट ब्लॉक मैनेजर/ एबीएम होते हैं.
जनपद पंचायत के बाद जिला पंचायत में आजीविका मिशन के पदाधिकारी बैठते हैं.ये सभी SHG की महिलाओं को योजनाओं से अवगत करवाने के साथ गाइड करते हैं. सभी आजीविका मिशन द्वारा बनाए गए सूत्रों को लागू करवाते हैं.
जिला पंचायत परिसर में आजीविका मिशन का कार्यालय होता है. यहां जिला लेवल पर सबसे प्रमुख जिला परियोजना प्रबंधक/डीपीएम होते हैं.
जिला परियोजना प्रबंधक के साथ और किस स्तर के अधिकारी जिला ऑफिस में पदस्थ होते हैं?
जिला परियोजना प्रबंधक के अधीन जिला प्रबंधक/ डीएम लेवल के अधिकारी काम करते हैं. ये अलग-अलग फील्ड को कवर करते हैं.
जैसे- जिला प्रबंधक -(कृषि), जिला प्रबंधक- (मॉनिटरिंग), जिला प्रबंधक- (आईबीसीबी), जिला प्रबंधक- (इमिडी), जिला प्रबंधक-(माइक्रो फाइनेंस), जिला प्रबंधक-(फाइनेंस)
जिला प्रबंधक को विभाग दिया जाता है, उस सेक्शन को जिला प्रबंधक समन्वयक करते हैं. सभी जिला प्रबंधक अपनी रिपोर्ट जिला परियोजना प्रबंधक को देते हैं.
जिला परियोजना प्रबंधक की क्या भूमिका होती है?
जिले में जिला परियोजना प्रबंधक अपनी रिपोर्ट राज्य स्तर के साथ अपने नेक्स्ट लेवल मुख्य कार्य पालन अधिकारी/ सीईओ जिला पंचायत को रिपोर्ट करते हैं.
जिला स्तर पर कलेक्टर ही आजीविका मिशन के डायरेक्टर होते हैं. जिला परियोजना प्रबंधक पूरे जिले में Self help group द्वारा हो रही गतिविधियों को गाइड करते हैं. समन्वय बनाए रखते हैं.
आजीविका मिशन के राज्य स्तरीय अधिकारी कौन होते हैं? इनकी नियुक्ति कैसे होती है ?
हर जिले में आजीविका मिशन के पदाधिकारी चैनल वाइस राज्य स्तर पर रिपोर्ट करते हैं.
इस सेटअप को राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (State Rural Livelihood Mission) कहते हैं.
पूरे प्रदेश की आजीविका मिशन की व्यवस्था को स्टेट कार्य पालन अधिकारी/सीईओ मॉनिटर करते हैं. इनके साथ एक एडिशनल कार्यपालन अधिकारी भी पदस्थ होते हैं. सीईओ के पद पर बेहद सीनियर प्रशासनिक सेवानिवृत ऑफिसर की नियुक्ति सरकार करती है.
आजीविका मिशन के मुख्य कार्यपालन अधिकारी की भूमिका क्या होती है?
पूरे प्रदेश में चल रही आजीविका मिशन और Self help group की गतिविधियों को गाइड करने के अलावा मुख्य कार्यपालन अधिकारी सीधे प्रदेश के शासन में ग्रामीण विकास मंत्रालय और केंद्र में रिपोर्ट के साथ संबंधित विभागीय मंत्री और मुख्यमंत्री को आजीविका मिशन की जानकारियां अपडेट करते हैं.
राज्य और केंद्र Self help group की रिपोर्ट और परियोजना प्रस्ताव को स्वीकृति के लिए कहां भेजते हैं?
हर राज्य की रिपोर्ट केंद्र तक जाती है. आजीविका मिशन के अलावा राज्य स्तर पर ग्रामीण विकास विभाग और मंत्रालय के अधीन सभी योजनाओं के क्रियान्वयन की रिपोर्ट की जाती है. इसी तरह केंद्र में भी ग्रामीण विकास मंत्रालय को योजनाओं से हो रहे लाभ के साथ समूह में बदलाव की रिपोर्ट चैनल वाइस भेजी जाती है.
राज्य आजीविका मिशन कार्यालय में कौन-कौन अधिकारी बैठते हैं?
स्टेट लेवल पर राज्य परियोजना मैनेजर/ एसपीएम के पद पर आजीविका मिशन की ओर से अधिकारी काम करते हैं.
ये भी अलग-अलग चल रहे प्रोजेक्ट के प्रभार को संभालते हैं. जिसमें खासतौर पर राज्य परियोजना मैनेजर (कृषि),राज्य परियोजना मैनेजर (विकास), राज्य परियोजना मैनेजर (मॉनिटरिंग) जैसे पद होते हैं. इसके अलावा आजीविका मिशन के लिए जन संपर्क अधिकारी का पद भी होता है, जो आजीविका मिशन और Self help group की उपलब्धियों को केंद्र, राज्य सरकार और समाज तक पहुंचाने में मदद करते हैं.ये मुख्य कार्यपालन अधिकारी को रिपोर्ट करते हैं.
Self help group के वित्तीय परियोजना/फाइनेंशियल प्रोजेक्ट्स कैसे लागू किए जाते हैं? क्या होता है माइक्रोफाइनेंस?
इस पूरे मिशन का मकसद ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना है. यह महिलाएं उन परिवारों से हैं जो या तो बेरोजगार है या आर्थिक हालत अच्छी नहीं हैं. यहां तक कि परिवार के मुखिया को घर चलाना भी मुश्किल होता है.
मिशन केंद्र सरकार की मदद से इन महिलाओं कई तरह से वित्तीय मदद (फाइनेंशियल सपोर्ट) करता है.
वित्तीय प्रक्रिया (फाइनेंशियल प्रोसेस) को कई स्टेजेस में बनाया. इसे बड़ी खूबसूरती से डिज़ाइन किया गया. इससे Self help group की महिलाएं सरकार से आर्थिक मदद के बल पर आत्मनिर्भर बनने के साथ स्वाभिमान की ज़िंदगी जी सके.
वित्तीय क्रम कैसा होता है/ कैसे लागू होता है ?
वित्तीय क्रम/ फनेंशियल स्टेज को आसानी से समझा जा सकता है-
केंद्र सरकार ने अलग-अलग परिस्थिति के अनुसार फंडिंग व्यवस्था बनाई. ये चार स्टेज में प्रमुख रूप से है.
* साप्ताहिक बचत योजना -
* रिवॉल्विंग फंड -
* आपदा राहत फंड -
* सामुदायिक निवेश फंड -
वित्तीय प्रक्रिया में साप्ताहिक बचत योजना क्या होती है?
साप्ताहिक बचत योजना - यह समूह गठन के साथ सबसे पहली शुरुआत होती है. इस प्रक्रिया में समूह की महिलाओं को पैसे की बचत करने का तरीका सिखाया जाता है. महिलाएं प्रति सप्ताह अपनी हैसियत के हिसाब से बचत शुरू करती है. कम से कम 10 रुपए सप्ताह जमा करती हैं. तीन महीने बाद समूह में जिस महिला को रुपए की जरूरत होती है वह इस बचत से ले सकती है. महिला 1 % ब्याज के हिसाब से अपना काम पूरा होते ही पैसा लौटाती है. इससे बचत और इंटर लोनिंग मेथड भी सीखने लगती है.
समूह के बीच छोटी पेटी क्या हैं ?
यह बड़ी इंट्रेस्टिंग पेटी होती हैं. या यूं कह सकते हैं कि समूह की "गुल्ल्क" होती हैं. समूह गठन के शुरुआत में आजीविका मिशन के जनपद और जिला स्तर के अधिकारी पैसे की बचत और इंटर लोनिंग समझाते हैं. जब कुछ महीने में समूह की महिलाओं को यह प्रक्रिया समझ आ जाती हैं तब रिटर्न लोन से मिला निर्धारित ब्याज और बचत का पैसा हर सप्ताह एक छोटी पेटी में रखना भी सिखाया जाता हैं. जिससे समूह को पैसे का महत्व और बचत समझ आए. जरूरत पड़ने पर इसमें से भी पैसा ले सकते हैं. यदि बचत की राशि अधिक हो जाए तो इस राशि को बैंक में जमा कर हैं.
वित्तीय प्रक्रिया में रिवॉल्विंग फंड क्या होता है? समूह को कैसे फायदा मिलता है?
रिवॉल्विंग फंड- जब कोई समूह अपने गठन के बाद साप्ताहिक बचत की प्रक्रिया सीख जाती हैं. समूह को काम से काम तीन महीने काम करते हुए हो जाते हैं तो समूह को आजीविका मिशन 20 हजार रुपए का फंड देती है.इस रुपए से महिलाओं को कच्चा माल, सामान खरीदने या उत्पाद बनाने में मदद करती है. इस राशि की वापस वसूली नहीं की जाती.
आपदा राहत फंड क्या होता है? इसका लाभ समूह को कैसे कब मिलता है?
-आपदा राहत फंड- जैसा कि नाम से ही क्लियर है. जब कभी कोई समूह के कारोबार पर आपदा आती है. उनके द्वारा संचालित कोई यूनिट हो या दुकान को किसी आपदा का सामना करना पड़े. बाढ़ में बह जाए, टूट जाए जैसा नुकसान हो जाए तो इस नुकसान की भरपाई के लिए शासन ने यह फंड या बजट अलग से रखा. इसमें 15 हजार रुपए की मदद समूह को दी जाती है. समूह की आर्थिक हालत सुधरने पर इस राशि को बिना ब्याज वापस सुविधा से लौटना होती है.
सामुदायिक निवेश फंड क्या होता है? समूह को इससे से कैसे फायदा मिलता है?
सामुदायिक निवेश फंड- यही सबसे खास फंड है, जो समूह को आगे बढ़ाने के लिए आधार होता है. इसका पैसा केंद्र सरकार जारी करती है.
केंद्र सरकार संकुल संगठन/ सीएलएफ के तहत आने वाले कुल Self help group की संख्या में से 50 % समूह के लिए एक लाख रुपए स्वीकृत करती हैं. राज्य और जिले के अधिकारी के गाइडेंस में इस राशि का समूह अपने कारोबार बढ़ाने के लिए उपयोग करता हैं. इस राशि से समूह को बहुत अधिक मदद मिल हैं. लगभग छह या आठ महीने बाद जब समूह का कारोबार सेट हो जाता हैं तो निर्धारित 1 % ब्याज के साथ यह राशि समूह वापस लौटता हैं.
सामुदायिक निवेश की राशि सीएफएल से जुड़े आधे समूह को दी जाती है तो बाकि समूह को मदद कैसे मिलती है?
जब Self help group अपने उपयोग के बाद राशि को ब्याज सहित लौटा देता है तब इस लौटाई गई राशि को संकुल संगठन, दूसरे उन बचे हुए समूह को यह पैसा देता हैं. यह वही समूह हैं जिन्हे पहले मदद नहीं मिली थी. समूहों को यह पैसा देने के लिए ग्राम संगठन पदाधिकारी पहले रिकमंड करते हैं, जिसे ज्यादा जरूरत होती हैं, उसे यह पैसे की मदद पहले की जाती है.
केंद्र सरकार Self help group को कितनी बार फंड की मदद करता है?
केंद्र सरकार से यह राशि किसी भी संकुल यानि सीएलएफ को गठन के बाद एक बार ही स्वीकृत होती हैं. यह व्यवस्था किसी भी समूह के कारोबार को सेट करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण मानी गई है.
Self help group में ब्याज का क्या उपयोग होता हैं?
सामुदायिक निवेश फंड/ सीआईएफ से जो पैसा समूह को मिलता हैं, उसे लौटते समय 1 % ब्याज सहित पैसा दूसरे समूह को दिया जाता हैं.मूल राशि तो दूसरे समूह को उपयोग के लिए दी जाती हैं. ब्याज के कुल पैसे में से 25 % हिस्सा Self help group को, 25 % ग्राम संगठन (विलेज ऑर्गेनाइज़ेशन) और 50 % हिस्सा संकुल स्तरीय संगठन रखता हैं. सीएलएफ इस ब्याज के पैसे से ऑफिस मेंटेनेंस, कंप्यूटर ऑपरेटर की सेलेरी सहित दूसरे खर्च करता हैं.
बैंक लोन सुविधा का लाभ Self help group को कैसे मिलता है?
Self help group के सदस्य कुछ माह में ही अपना कारोबार जब जमा लेती हैं तो केंद्र सरकार से मिलने वाले आर्थिक सहयोग के अलावा ग्रामीण और राष्ट्रीयकृत बैंक भी Self help group को लोन सुविधा देती हैं . समूह की मांग पर ग्राम संगठन के पदाधिकारी रिकमंड लेटर गांव के ही बैंक की ब्रांच को देते हैं. बैंक, लोन स्वीकृत करने से पहले समूह की नियमित कमाई और कारोबार की स्थिति को देखता हैं. बैंक सामुदायिक निवेश फंड के पैसे का यूज़ के साथ साप्ताहिक बचत और समूह सदस्यों के रिटर्न रिकॉर्ड को देखता हैं.
यदि समूह यह सब काम नियम से करते हैं और रिकॉर्ड व्यवस्थित रहता है तो बैंक समूह को शुरू में 2 लाख रुपए तक का लोन दे देता है.
क्या कोई भी बैंक Self help group को 2 लाख रुपए से ज्यादा लोन देता है?
Self help group द्वारा लिया गया पहले लोन के पैसे को छह महीने बाद से किश्तों में लौटना होती है. यदि समूह लोन समय पर चुकाता हैं तो बैंक इस लोन राशि को और अधिक बढ़ा कर वापस नया लोन भी मांगने पर देता हैं. यह राशि समूह 20 लाख तक ले सकते हैं.
Self help group द्वारा लिया गए लोन पर ब्याज कितना लगता है?
रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (आरबीआई) के आदेश हैं कि कोई भी बैंक समूह से लिए गए लोन राशि का 7 से 12 % ब्याज दर से अधिक का पैसा वसूल नहीं सकता. यह व्यवस्था ही केश क्रेडिट लिमिट / सीसीएल कहलाती है.
Self help group द्वारा लिए गए लोन पर लगने वाले ब्याज में सरकार कोई मदद करती है?
Self help group द्वारा लिए लोन की वसूली और समूह को और अधिक आत्मनिर्भर बनाने के लिए केंद्र सरकार 3 % ब्याज राशि अपनी ओर से बैंक को जमा करने की सुविधा देता हैं. जबकि राज्य सरकार इस लोन के ब्याज की 4 % राशि बैंक को जमा कर देती हैं. इससे हम समझ सकते हैं. यदि किसी समूह ने 7 % ब्याज दर वाला लोन लिया तो सरकारें ब्याज का पैसा तो भर देती हैं. समूह को मूलधन ही भरना होता हैं.
Self help group के लोन और लगने वाले ब्याज में छूट सरकार सबको मदद करती है?
नहीं. कोई भी समूह लोन के इस ब्याज का फायदा सरकारें उन समूह को ही देती हैं जो समूह लोन की किश्तें टाइम पर जमा करते हैं. नियमित लोन किश्त जमा नहीं करने पर सरकार अपनी ओर से कोई छूट नहीं देती.
क्या किसी प्रदेश में निजी बैंक भी Self help group को सपोर्ट करती है?
पिछले कुछ सालों में Self help group की उपलब्धियों और प्रयासों को देख मध्यप्रदेश में एचडीएफसी /HDFC निजी बैंक भी समूह से जुड़ा. बैंक ने राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से अनुबंध किया. HDFC बैंक ने समूह की सदस्य महिलाओं का पूरा ध्यान रखा. बैंक प्रबंधन ने मोबाइल टीम बनाई जो गांव-गांव समूह को काउंसलिंग कर रही. यह समूह को विशेषतौर पर केवल 7 % ब्याज दर पर लोन दे रही. बैंक की इस महिला सशक्तिकरण पहल को देख राज्य आजीविका मिशन ने अनुबंध किया.
Self help group में बैंक सखी क्या हैं और इनकी भूमिका क्या हैं?
Self help group सदस्यों की सुविधा के लिए आजीविका मिशन ने बैंक सखी जैसा पद बनाया. इसमें समूह की वह सदस्य जो क्लास 12 वीं पास हो. कुछ कंप्यूटर का नॉलेज हो. ऐसी योग्य महिला सदस्य को बैंक सखी बनाया जाता हैं. संकुल संगठन में बैठ कर यह सखी समूह सदस्यों के खाते खुलवाने, फॉर्म भरवाने में और बचत राशि जमा करवाने में मदद करती हैं.
Self help group में बिज़नेस कोरसपोंडेंस/ बीसी क्या करतीं हैं?
बिज़नेस कोरसपोंडेंस भी समूह की योग्य महिला सदस्य को बनाया जाता हैं. यह BC सदस्य टेक्निकली लेपटॉप /कम्यूटर पर काम करती हैं. बैंक बीसी को कियोस्क सेंटर / एमपी ऑनलाइन के काम के संचालन का अधिकार देती हैं. समूह की महिलाओं के खाते खोलना, पैसा जमा करने का काम यही सदस्य करती हैं. यह सीधे बैंक के प्रबंधन से समन्वय में रहती हैं.
भारत में नाबार्ड संस्था क्या हैं? Self help group के साथ क्या भूमिका हैं?
नाबार्ड का मतलब राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक है. इसे नेशनल बैंक ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट भी कहा जाता है. इसका मुख्य या प्रधान कार्यालय मुंबई में स्थित है.
नाबार्ड ने 1992 में SHG बैंक लिंकेज प्रोजेक्ट का गठन किया, जो आज दुनिया की सबसे बड़ी माइक्रोफाइनेंस योजना है.इसके बाद 1993 के बाद से नाबार्ड ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के साथ मिलकर Self help group को बैंकों में बचत बैंक खाते खोलने की अनुमति दी.
Self help group के साथ नाबार्ड की क्या भूमिका हैं?
नाबार्ड की स्थापना का मकसद गांव के इलाकों को खासतौर पर कृषि और ग्रामीण जरूरतों को पूरा करने में मदद करना. बैंक लिंकेज कर समूह को मजबूत करने में बड़ा बदलाव कर दिया.
राष्ट्रीय आजीविका मिशन के साथ हर स्टेट में Self help group का नाबार्ड से समन्वय हुआ. समूह से जुड़ी महिलाओं द्वारा तैयार प्रोडक्ट्स और उनकी मार्केटिंग में नाबार्ड लगातार मदद कर रहा है. मप्र राज्य में ही 45 से अधिक जिलों में रूरल मार्ट खोले. स्टेट लेवल पर भोपाल में मार्ट खोला.
इस मार्ट में प्रदेश के टॉप प्रोडक्ट्स रखे गए. यहां से Self help group
1के सदस्यों और उनके बनाए प्रोडक्ट्स को नेशनल पहचान मिल रही.
नाबार्ड Self help group को प्रोमोट करने में बड़ी भूमिका निभा रहा रहा.
Self help group में किसान उत्पादक संगठन फॉर्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइज़ेशन
केंद्र हो या राज्य सरकारें महिलाओं को समग्र रूप से सशक्त करने के लिए अलग- अलग तरह से योजनाएं बना रहीं और महिलाओं को अवसर भी दे रहीं. Self help group को एग्रीकल्चर फील्ड में सशक्त बनाने के लिए भी सरकार की परिकल्पना और प्रयास सफल हुए. इनमें से एक है फॉर्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइज़ेशन (FPO). सरकार की यह व्यवस्था बहुत ही किसान परिवारों के लिए बहुत कारगर है. इसमें किसान दीदियों को आत्मविश्वास के साथ कारोबार प्रबंधन के गुण सीखे जाती हैं. इस व्यवस्था को हम आसानी से समझ सकते हैं. SHG/Self help group को समझने के बाद हम समझ सकते हैं, आखिर FPO क्या होते है, कैसे काम करता है और किस तरह से किसान परिवारों को फायदा मिलता है.
किसान उत्पादक संगठन (फॉर्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइज़ेशन) क्या होता है?
- 'किसान उत्पादक संगठन'/ एफपीओ एक ऐसी संस्था है जिसे केंद्र सरकार की मदद मिलती है. राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (एसआरएलएम) समन्वय करता है. इसका उद्देश्य किसान दीदियों और उनके परिवारों को खेती से मिलने वाली आय को दुगुना करना है. यह एक किसानों का संगठन है या कंपनी होती है.
किसान उत्पादक संगठन कौन बनता है?
- यह कंपनी या संगठन राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के अधिकारी बनवाते हैं. उनके गाइडेंस में किसान परिवार की दीदियां ही इसका गठन करती हैं. यह दीदियां Self help group की सदस्य ही होती हैं.
किसान उत्पादक संगठन कैसे बनता है?
-आजीविका मिशन के अधिकारी संबंधित ब्लॉक में Self help group के सदस्यों की बैठक लेकर एफपीओ के बारे में समझाते हैं. समूह की दीदियों को कंपनी के बारे में समझ आने के बाद वे अपने ब्लॉक में गठन करती हैं.
क्या मैं किसान उत्पादक संगठन में शामिल हो सकती हूं? क्या नियम हैं?
जी हां. इस कंपनी में वह हर दीदी शामिल हो सकती है, जो SHG / Self help group की सदस्य है. साथ ही सदस्य के पास खेती के लिए ज़मीन होना जरुरी है. इसमें एक सुविधा भी है. किसी परिवार के पास खुद की ज़मीन न हो और लीज़ पर ले रखी है, तो वह भी कंपनी की सदस्य बन सकती हैं.
इस कंपनी में ही पशु पालक, मुर्गी पालन के कारोबार में कोई सदस्य हो तो उसे भी शामिल किया जा सकता है.
किसान उत्पादक संगठन/ कंपनी में सदस्य बनने के लिए कैसे और किससे संपर्क कर सकते हैं?
किसान उत्पादक संगठन में सदस्य बनने के लिए किसान दीदी अपने ही जनपद में आजीविका मिशन के ब्लॉक मैनेजर से संपर्क कर सकती है. यदि संगठन पहले से बना हुआ है तो कंपनी के पदाधिकारियों से बात करके भी सीधे सदस्य बन सकती है.
किसान उत्पादक संगठन/कंपनी में कितनी महिला सदस्य होती हैं?
- किसान उत्पादक संगठन बनाने के लिए 10 पदाधिकारी होते हैं. इस संगठन में 5 सदस्य बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर और 5 को प्रमोटर का पद दिया जाता है. बाकि इस एक कंपनी के गठन में कम से कम 300 किसान सदस्यों को शामिल किया जाता है.यह सभी Self help group की महिलाएं ही होती हैं.
किसान उत्पादक संगठन में बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर क्या होता है! इसमें सदस्य कैसे बनते हैं?
किसी भी कंपनी के गठन में दस सदस्य सबसे महत्वपूर्ण होते हैं. 5 सदस्य बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर होते हैं. यह भी सभी सदस्य मिलकर ही राणिनीति तय करते हैं. आजीविका मिशन के अधिकारी इसे बनवाने में मदद करते हैं. मिशन अधिकारियों का प्रयास रहता है कि ये सदस्य थोड़ा पढ़ लिख सकें. कंपनी के काम को समझ कर दूसरे सदस्यों को समझाने के काबिल होना चाहिए. कंपनी में दूसरे सदस्यों को भी जोड़ते हैं. शेयरधारक तैयार करते हैं. संगठन का बनाया ऑफिस कंट्रोल करते हैं.
किसान उत्पादक संगठन में प्रमोटर कौन होते हैं? इनकी क्या भूमिका होती है?
- किसी भी गठित कंपनी में बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर सबसे ख़ास पद होते हैं. इसी के साथ 5 सदस्यों को प्रमोटर का पद दिया जाता है. यह सदस्य भी सभी की सहमति से बनते हैं. इनका काम कंपनी में सदस्यों की संख्या बढ़ा कर उन्हें सदस्य बनाना है. ये सदस्य बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर के साथ समन्वय /कोर्डिनेट कर कंपनी के हिसाब-किताब रखने में सहयोग करते हैं.
किसान उत्पादक संगठन में क्या और भी कर्मचारी की नियुक्ति होती है?
जी हां. कंपनी का लेखा-जोखा रखने के लिए कर्मचारी रखे जाते हैं. इसमें कंप्यूटर ऑपरेटर, एकाउंटेंट के साथ चार्टर्ड अकाउंटेंट भी रखते हैं. यह सभी ऑफिस वर्क संभालते हैं. इनकी नियुक्ति बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर मीटिंग में करते हैं.
किसान उत्पादक संगठन में सदस्य किसान दीदी की कितनी खेती होनी चाहिए?
किसी Self help group से जुड़ी सदस्य के पास बस खेती के लिए ज़मीन होना चाहिए. जैसा कि पहले भी उल्लेख किया, किसी परिवार के पास लीज़ की ज़मीन है और उसका उपयोग वह खेती के लिए कर रहे तो भी कंपनी का सदस्य बन सकते हैं.
किसान बहनों को यह किसान उत्पादक संगठन कैसे मदद करता है?
- किसान उत्पादक संगठन/ एफपीओ एक अधिकृत कंपनी होने के कारण कोई भी सदस्य को धोखाधड़ी का डर नहीं रहता. बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर और प्रमोटर समय-समय पर मिशन के अधिकारियों को बुला कर खेती में उपज उत्पादन बढ़ाने के उपाय पूछते हैं. मिशन के अधिकारी खेती से जुड़े विशेषज्ञ /एक्सपर्ट्स को बुलाकर ट्रेनिंग दिलवाते हैं. जिससे खेती में नई तकनीक का उपयोग कर सकें.
क्या किसान उत्पादक संगठन को सरकारी ग्रांट मिलती है?
- किसान उत्पादक संगठन/ कंपनी को दो तरह की सरकारी ग्रांट मिलती है. पहली 'मैनेजमेंट कॉस्ट' और दूसरी 'इक्विटी फंड' के रूप में यह पैसा सेंट्रल गवर्मेंट देती है.
यह तीन साल की मदद होती है. यह किश्तों में कंपनी की रिपोर्ट के आधार पर मिलती है. इसका फायदा किसान परिवार को मिलता है.
किसान उत्पादक संगठन में मैनेजमेंट कॉस्ट का क्या मतलब होता है? इसका क्या उपयोग है?
- किसान उत्पादक संगठन को केंद्र सरकार से मिलने वाली यह एक मदद है. इसमें किसी भी कंपनी को 18 लाख रुपए दिए जाते हैं. यह किश्तों में तीन साल में पूरे किए जाते हैं. जैसे इस मिलने वाले फंड के नाम से ही स्पष्ट है कि 'मैनेजमेंट कॉस्ट' मतलब कंपनी अपनी व्यवस्थाओं के लिए इस राशि का उपयोग करती है. हर साल 6 लाख रुपए स्वीकृत किए जाते है. यह राशि अकाउंट में जमा हो जाती है. बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर इस राशि से कंपनी का शुरुआती रजिस्ट्रेशन, ऑफिस किराया, कर्मचारियों की सैलेरी मैनेज करते हैं. इसमें अकाउंटेंट, कंप्यूटर ऑपरेटर, सीए जैसे लोगों को रोजगार दिया जाता है.
किसान उत्पादक संगठन में इक्विटी ग्रांट क्या होती है?
- किसान उत्पादक संगठन में इस ग्रांट में कंपनी को 15 लाख रुपए स्वीकृत होते हैं. यह फंड भी तीन सालों में किश्तवार मिलता है. इस राशि को स्वीकृत करवाने के लिए सरकार समूह की सदस्य को शेयर धारक बनाने के लिए प्रोमोट करता है. और यह काम बोर्ड डायरेक्टर और प्रमोटर ही करते हैं.
किसान उत्पादक संगठन में शेयर धारक क्या होता है? शेयर धारक बनने के लिए क्या करना होता है?
Self help group की सदस्य जब एफपीओ /कंपनी की सदस्य बन जाती है उसे शेयर धारक बनाया जाता है. प्रमोटर और आजीविका मिशन के अधिकारी काउंसलिंग करते हैं. सदस्य को कम से कम 500 रुपए और अधिक से अधिक 1000 रुपए का शेयर खरीदना होता है. जब कुल सदस्यों की शेयर राशि 15 लाख रुपए हो जाती है, तब पहली किश्त सेंट्रल गवर्मनेंट देती है.
किसान उत्पादक संगठन में ग्रांट की मदद किसान दीदी को कैसे मिलती है?
- एफपीओ /कंपनी बन जाने और सदस्य बन जाने के बाद किसान परिवार को खेती में पूरा गाइडेंस मिलता है. कंपनी, किसानों के लिए हायर लेवल "डिटेल प्लानिंग रिपोर्ट" /डीपीआर और "बिज़नेस प्लान" तैयार करती है. इस प्रक्रिया का फायदा लंबे समय तक किसान दीदी को मिलता है. समूह सदस्य को सामूहिक सहयोग मिलता है. बॉन्ड लेने के बाद उस किसान दीदी की हिस्सेदारी कंपनी में तय हो जाती है.
किसान उत्पादक संगठन/कंपनी कैसे काम करती है?
किसान उत्पादक संगठन तय जगह पर ऑफिस सेटअप जमा लेते है. सभी सदस्यों की संख्या पूरी हो जाने के बाद कंपनी डीपीआर (डिटेल प्लानिंग रिपोर्ट) और कारोबार योजना/ "बिज़नेस प्लान" तैयार करती है. इसी बेस पर कंपनी किसानों के फायदे के लिए काम करती है. कंपनी कई एंगल पर काम करती है. इसका मकसद केवल किसानों का खेती से फायदा हो सके.
किसान उत्पादक संगठन में डिटेल प्लानिंग रिपोर्ट (डीपीआर) का मतलब क्या होता है? इसे कैसे बनाते हैं?
डीपीआर का मतलब डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करना. कंपनी के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर के सदस्य जिस भी जिले या ब्लॉक में काम कर रहे उसी क्षेत्र की डीपीआर बनाते हैं. इसमें जिले में कौन सी फसल का उत्पादन अधिक होता है. इलाके का वातावरण यानि मानसून की स्थिति, बारिश, इरिगेशन पोज़िशन के साथ फसल के उत्पादन का अनुमान के आंकड़े के आधार पर रिपोर्ट तैयार करते हैं. इसे डीपीआर कहा जाता है. इसे सेंट्रल गवर्मेंट और राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन को भेजा जाता है. इस रिपोर्ट के आधार पर एक्सपर्ट्स किसानों के लिए प्लान बनाते हैं.
किसान उत्पादक संगठन में कारोबार योजना "बिज़नेस प्लान" क्या होता है? इसे क्यों और कैसे बनाते हैं?
बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स का दूसरा बड़ा काम कारोबार योजना /"बिज़नेस प्लान" तैयार करना होता है. इसमें जिले या ब्लॉक में बोर्ड, उपज प्रजाति या कमोडिटी की जानकारी तैयार करता है. साथ ही सदस्यों की ज़मीन की लिस्टिंग करता है. यदि किसान सदस्य के पास खेती की जमीन और रकबा कम है तो आउट सोर्स से किसानों से भी फसल खरीद कर सटोर करता है. कंपनी बाहर से बड़ी कंपनी को बुलाकर उपज बेचती है. इससे छोटे किसानों को अपने उत्पाद को लेकर मंडी और दूसरे मार्केट में जाना नहीं पड़ता.
बोर्ड पूरा यह प्लान आने वाले तीन साल के हिसाब से तैयार करता है. यह भी तय करता है कि यदि बीज,फसल जैसे गेंहूं, कपास या कोई और प्रोडक्शन करेगा तो उस हिसाब से रजिस्ट्रेशन करवाते हैं.
क्या किसान उत्पादक संगठन या कंपनी का रजिस्ट्रेशन करवाना जरुरी है?
बोर्ड पूरा यह प्लान आने वाले तीन साल के हिसाब से तैयार करता है. यह भी तय करता है कि यदि बीज,फसल जैसे गेंहूं, कपास या कोई और प्रोडक्शन करेगा तो उस हिसाब से रजिस्ट्रेशन करवाते हैं. इसमें फर्टिलाइज़र, मंडी और बीज तैयार कर बेचने के हिसाब से रजिस्ट्रेशन करवाते हैं. साथ ही कारोबार करने के लिए GST का रजिस्ट्रेशन भी करवाते हैं.
किसान उत्पादक संगठन ग्रांट मिलने की अवधि ख़त्म होने के बाद कैसे काम करते हैं?
- जैसा कि एफपीओ के लिए सेंट्रल गवर्मेंट तीन साल में अलग-अलग ढंग से 33 लाख रुपए की ग्रांट देता है. इस बीच किसी भी कंपनी को आत्मनिर्भर/ सेल्फ डिपेंड बनाए के लिए आजीविका मिशन पूरा साथ देता है. किसान परिवारों को बाज़ार, मंडी और कई तरह से बिज़नेस/ व्यापर के गुण सीखा दिए जाते हैं.जिससे कंपनी प्रोजेक्ट का प्लान बनाती है. इसमें आजीविका मिशन भी गाइड करता है कि किस योजना में सब्सिडी का लाभ किसान दीदियों को मिलेगा.
किसान उत्पादक संगठन में किसान दीदियों के सदस्य बनने पर क्या बदलाव आता है?
Self help group के साथ किसान उत्पादक संगठन को समझें तो सपष्ट है कि किसान दीदियों और उनके परिवारों के लिए यह योजना आर्थिक उन्नति और मजबूती के लिए कारगर है. इसमें महिला सदस्यों में आत्मविश्वास बढ़ने के साथ कारोबार की समझ भी बढ़ती है.
Self help group में माइक्रोफाइनेंस के जनक कौन हैं?
आज जिस माइक्रोफाइनेंस व्यवस्था दुनिया के सिर चढ़ कर बोल रही उसके जनक के बारे में शायद बहुत कम लोग जानते हैं. बंगलादेश के मोहम्मद युसूफ... इनको माइक्रोफाइनेंस के जनक मान सकते हैं. इन्होने देखा कि महिलाएं दान से या मोटे दर पर ब्याज से लोन लेकर अपना काम चलाती हैं. कई बार तो महिलाएं इस कर्ज तले अपना जीवन खत्म कर देती थीं. मोहम्मद युसूफ ने 1976 अपनी जेब से 42 महिलाओं को पैसा लोन दिया. महिलाओं ने बांस की टोकरी बना कर बेचकर पैसा कमाया. साथ ही कर्ज लिया पैसा भी उतार दिया. यह माइक्रोफाइनेंस की वह नींव थी जिसने सम्मान से इंटर-लोनिंग सिस्टम तैयार किया. पूरी दुनिया में इसे सराहा गया. लाखों समूह बने और बन रहे. ग्रामीण बैंक के संस्थापक को 2006 में इस काम के लिए मोहम्मद युसूफ को नोबल शांति पुरस्कार मिला.
Self help group से क्या महिलाओं का नया जीवन मिला है?
- जी हैं. SHG, सेल्फ हेल्प ग्रुप या Self help group का गठन महिलाओं के लिए नया जीवन कह सकते हैं. 2011 में विधिवत रूप से हुआ. ग्रामीण इलाकों में सिर्फ घर में कैद रह कर मजबूर हालातों में जिंदगी जीने वाली महिलाओं के लिए यह वरदान साबित हुआ. Self help group का मतलब खुद के द्वारा महिलाओं या यूं कहें गांव की परिचित सहेलियों का किया गया ऐसा गठन जिसे खुद महिलाएं मिलकर चलाती हैं.
शासन ने इन महिलाओं की काबिलियत को अवसर देकर नई पहचान देने में मदद की. कृषि और गैर कृषि क्षेत्रों में महिलाएं अपना हुनर दिखा कर आर्थिक मजूबत हो रहीं.
कुछ सालों में ही कमज़ोर सी दिखने वाली इन महिलाओं का आत्मविश्वास का आधार Self help group बन गया. जो अब कई राष्ट्रीय और इंटरनेशनल मंचों पर दिख रहा है.