"मेरा बेटा क्रिमिनल नहीं है!" ये शब्द थे एक माँ के जो अपने बेटे की सेक्शुएलिटी को खुल कर अपना चुकी थी. लीला सेठ, जो कि भारत की राजधानी, दिल्ली की पहली महिला जज बनी और हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट की पहली महिला चीफ जस्टिस. देश में कानून जिनके आगे झुकता हो, वो हारा हुआ महसूस कर रही थी, जब होमोसेक्शुअल होना देश में फिर से क्रिमिनल ऑफेन्स माना जाने लगा.
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विक्रम सेठ एक बेहतरीन राइटर और अपनी माँ के लाड़ले, घर के सबसे बड़े बेटे थे. जब उन्होंने अपनी माँ लीला सेठ को बताया होगा अपनी सेक्शुएलिटी के बारे में, ज़ाहिर सी बात है, उन्होंने इस बात को समझने और एक्सेप्ट करने में टाइम लगाया होगा. लेकिन लीला एक प्रोग्रेसिव सोच वाली महिला थी. उन्होंने अपने बेटे की फीलिंग्स को समझा और उसे पूरा साथ दिया. वे नहीं चाहती थी कि उनका बेटा किसी भी तरह से अलग महसूस करे.
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जब सुप्रीम कोर्ट के दो जजेज़ ने दिल्ली हाई कोर्ट के स्टेटमेंट पर फिर से सवाल उठाए, जिन्होंने होमोसेक्शुऐलिटी को क्रिमिनल ऑफेंस से ख़ारिज किया था. जब इस नतीजे पर फिर से सवाल उठे, तो एक मां और साथ ही एक न्यायाधीश दोनों परेशान हो गए.
मां थी वो एक लड़के की जिस पर गर्व था, और न्यायाधीश एक देश की, जिससे प्यार था. जब एक मां को यह पता पड़े कि उसका बेटा एक क्रिमिनल है, तो वह रातों को सो नहीं पाती. अपने बेटे और उसके जैसे करोड़ों हिन्दुस्तानियों के लिए कानून से लड़ने को तैयार थी लीला सेठ. उनका मानना था कि 'हर व्यक्ति की चॉइस का सम्मान ज़रूरी है, चाहे वह किसी भी सेक्शुएलिटी का हो.'
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सिर्फ ये ही नहीं, अपने पूरे कार्यकाल में उन्होंने महिलाओं के राइट्स के लिए हर समय आवाज उठाई. इन्हेरिटेंस के लॉज़ हो या दहेज़ लॉ सिस्टम, सब पर हमेशा आवाज उठाई है उन्होंने. टेड टॉक्स जैसे प्लेटफॉर्म्स पर आकर महिलाओं के अधिकारों पर बात कर चुकी है लीला सेठ.
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चाहे अपने बेटे की सेक्शुअलिटी को अपना कर उसे हर बात में सपोर्ट करना हो, पुरुष प्रधान क्षेत्र में अपना नाम सबसे बड़ा करना हो या महिलाओं के राइट्स के लिए आवाज उठाना, लीला सेठ ने हर वो काम कर दिखाया था, जो उनकी प्रोग्रेसिव सोच और ओपन माइंडेड पर्सनैलिटी को दर्शाता है. वे असल ज़िन्दगी की हीरो थी- आज की हर लड़की और महिला के लिए ज़िन्दगी भर एक रोल मॉडल रहेंगी.