मैनेजमेंट और मार्केटिंग से होगी SHG की मुश्किलें आसान

मार्केटिंग पर निर्भर है किसी भी व्यवसाय की सफ़लता. महिलाओं को आर्थिक आज़ादी की तरफ़ ले जा रहे हैं स्वसहायता समूह. सरकारी व ग़ैर सरकारी प्रयासों से स्वसहायता समूह को मार्केटिंग और मैनेजमेंट सिखाया जाना चाहिए.

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SHG marketing training

Image Credits: Liba

मार्केटिंग के आस पास ही घूमती है किसी भी व्यवसाय की सफ़लता. महिलाओं को आर्थिक आज़ादी की तरफ़ ले जा रहे हैं तेज़ी से बढ़ते स्वसहायता समूह. इनकी तरक्की टिकी है प्रोडक्ट को आस पास के लोगों से मिली सहमति पर. समूहों को उचित सहायता मिलने पर ये हमारे देश के आर्थिक और सामाजिक विकास दोनों में और ज़्यादा योगदान दे सकेंगे. भारत ने पिछले कुछ दशकों में संचार क्रांति का अनुभव किया. भारत थर्ड वर्ल्ड के देश से 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना. इस दौरान देश में बड़े पैमाने पर लोग गांव और छोटे कस्बों से शहरों की ओर आये.

बढ़ती बेरोज़गारी से निपटने के लिए पिछले कुछ दशकों में सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) और राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (एसआरएलएम) को लागू किया. जिसके तहत स्वसहायता समूह योजना रोज़गार की तलाश करती महिलाओं के लिए कारगर साबित हुई. आज इन महिलाओं की आर्थिक विकास और बदलाव की कहानियां हर जगह मिल जाएगी.  

पूरे भारत में सपने साकार करते 81 लाख  स्वसहायता समूह कई प्रकार की खाने की चीज़ों, कपड़ों, कला वस्तुओं आदि बना रहे हैं.  इन उत्पादों को बेच ये महिलाएं तभी मुनाफा कमा सकेंगी जब उनके बनाये सामान को मार्केट में जगह मिलेगी. बढ़ते ग्लोबल कॉम्पीटिशन के इस दौर में तकनीकी समझ की कमी और कई सारी व्यक्तिगत, सामाजिक और आर्थिक वजहों ने SHG को दौड़ में पीछे किया है.   

मार्केट में पकड़ न बना पाने की बड़ी वजह SHG के बनाये सामान की सही पैकेजिंग का न होना है . इससे निपटने के लिए समूहों को अपने प्रोडक्ट का सही नाम व लोगो चुन ने की ट्रेनिंग और सब्सिडाइज़्ड रेट पर मशीन दी जानी चाहिए. साथ ही उन्हें कम दाम में उत्तम कच्चा माल तक पहुंच बढ़ाना चाहिए. फाइनेंशियल लिटरेसी की कमी, बचत की समझ न होने और सही समय पर लोन न मिलने की वजह से रुकावटें आती है .  RBI  (भारतीय रिजर्व बैंक) और महिलाओं की आर्थिक आज़ादी पर काम करने वाली संस्थाओं को साथ मिलकर फाइनेंशियल लिटरेसी को बढ़ाने का काम करना होगा. महिलाओं को कम इंटरेस्ट रेट पर मिलने वाले माइक्रो फाइनेंस के बारे में बताना होगा. 

महिलाओं को आर्थिक आज़ादी देने वाली योजनाओं में सदस्यों की ट्रैनिंग का प्रावधान भी होना चाहिए ताकि वे टीम मैनेजमेंट, मार्केटिंग, और बचत को समझ सकें. जो स्वसहायता समूह बड़े पैमाने पर उत्पाद तैयार कर रहे है उन्हें तकनीकी जानकारी और मशीन चलाने की शिक्षा देनी होगी और साथ ही डिस्ट्रीब्यूशन चैनलों तक पहुंचाना होगा . गुणवत्ता नियंत्रण कर प्रचार प्रसार के आधुनिक तरीके समझाना होंगे. मार्केटिंग या विजिबिलिटी बढ़ाने की बात करें तो सोशल मीडिया को जानना ज़रूरी हो जाता है. 

कोरोना महामारी के बाद प्रधानमंत्री द्वारा चलाये गए 'वोकल फॉर लोकल ' अभियान ने देशवासियों का ध्यान छोटे वेंडर्स की तरफ़ खींचा.  इस पहल ने SHG द्वारा बनाये गए उत्पादों की बिक्री को बढ़ाया है. SHGs के बने उत्पादों के लिए लोगों में सहानुभूति और समर्थन की भावना जगी. SHG उत्पादों की खरीद और बिक्री के लिए Amazon, Flipkart, Tata Cliq जैसे ऑनलाइन और मॉल के बड़े विक्रेताओं ने सोचना शुरू किया. इन बड़े विक्रेताओं की मदद से समूह उनके प्रांत की हदें पार कर अपना प्रोडक्ट बेच पाएंगे. मध्य प्रदेश सरकार के आजीविका मार्ट ने भी महिलाओं के प्रोडक्ट को अच्छी पहुंच देने में सहायता की.  इसे और भी प्रदेशों में लागू किया जाना चाहिए. स्वसहायता समूहों को मौसमी बदलावों और मार्केट में उतार-चढ़ाव से भी खतरा होता है. बड़े कॉर्पोरेट अपने सीएसआर एजेंडे के तहत इन SHG को समर्थन देने के लिए आगे आएं .

सरकारी व ग़ैर सरकारी प्रयासों से स्वसहायता समूह लगातार उन्नति कर देश की आर्थिक तरक्की को और आगे बढ़ा सकेंगे. सभी को साथ मिलकर एक दिशा में सोच कायम करनी होगी.  

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