मर्सिडीज़ बेंज़ ने किया कारों को चेंज

दुनिया की सबसे पहली महिला जिसने मर्सिडीज़ बेंज़ को चलाया वो थीं 'बेर्था बेंज़'. उन्‍होंने मैनहेम से फोर्जियम तक का सफर किया, जो उस दौर में गैर-कानूनी था. साल 2008 में इस 106 किमी लंबे रास्‍ते को ‘बेर्था बेंज मेमोरियल रूट’ नाम दिया गया.

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रिसिका जोशी
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Bertha benz

Image Credits: Mercedes Benz USA

मर्सिडीज़ बेंज़ सुनते ही दिमाग में सबसे पहला नाम कार्ल बेंज़ का आता है जो कि एक इंजन और ऑटोमोटिव इंजीनियर थे। इन्होंने दुनिया की सबसे पहली मोटर कार अपने नाम पर पेटेंट करवाई जो गैस इंजिन से चला करती थी. इस कार के नाम को एक डिसाइनए कि बेटी के नाम पर रख गया। लेकिन क्या आप जानते है की दुनिया की सबसे पहली महिला जिसने इस कार को चलाया वो कौन थी? वो थीं 'बेर्था बेंज़'. कार्ल बेंज़ की कार लॉन्च के 3 साल बाद तक बिक्री ना होने पर उनकी पत्नी ने कहा- "जब तक कार को सड़क पर चला कर उसका फायदा लोगों को नहीं समझाएंगे तब तक कोई भी क्यों खरीदेगा?" कार्ल को यह बात सही नहीं लगी ओर उन्होंने बेर्था को कार चलने कि अनुमति नहीं दी. बेर्था बेंज़ जानती थीं वो क्या कर रही है. उन्होंने अगस्‍त 1888 में बिना किसी से पूछे इस कार को सड़क पर उतारा और दुनिया की पहली महिला ड्राइवर बन गयी. बेर्था बेंज ने 106 किमी की दूरी इस तीन पहिया कार को चलाया.

उन्‍होंने मैनहेम से फोर्जियम तक का सफर किया, जो उस दौर में गैर-कानूनी था. बेर्था ने इस यात्रा के दौरान केमिस्‍ट शॉप पर रुककर ईंधन भी भरवाया, इसीलिए वह केमिस्‍ट शॉप दुनिया का पहला पेट्रोल पंप कहलाई. यात्रा के बाद उन्‍होंने कार्ल बेंज को एक टेलीग्राफ भेजा. बेर्था की यात्रा के बाद बिक्री में तेजी से इज़ाफा हुआ. बाद में कार्ल बेंज ने डेमलर गॉटलीब के साथ मर्सिडीज बेंज की स्‍थापना की. साल 2008 में इस 106 किमी लंबे रास्‍ते को ‘बेर्था बेंज मेमोरियल रूट’ नाम दिया गया. कार निर्माता कंपनी मर्सिडीज बेंज आज भी कहती है- "बेर्था बेंज ने सभी को रास्‍ता दिखाने के लिए खुद आगे का रास्‍ता बनाया." वहीं आज़ाद भारत की सबसे पहली महिला ड्राइवर भी एक कार कंपनी के परिवार से थीं. उनका नाम था, सुजैन टाटा फ्रांसीसी. ये रतनजी दादाभाई टाटा की पत्‍नी थीं. भारत की सबसे पहली रानी जो अपनी प्रजा के बीच कार चलने के लिए प्रचलित थीं, वे थीं रानी चंद्रावती होलकर.

सऊदी अरेबिआ में 2017 में महिलाओं को गाड़ी चालने की आज़ादी दी गयी. उससे पहले वे सड़क पर गाडी लेकर नहीं निकल सकती थी. सोचकर हैरानी होती है कि एक जगह महिलाओं को आगे बढ़ाने की, उन्हें सशक्त करने की बात होती है, वही दूसरी और ऐसे भी देश था जहां वो गाडी चलाने जैसा छोटा काम भी नहीं कर सकती थी. बेर्था बेंज, रानी चंद्रावती, और सूजन टाटा फ़्रांसिसी हो या आज की महिला, ना तब किसी से कम थी, ना अब किसी से कम है. महिला चाहे तो, कुछ भी कर सकती है, यह सदियों से साबित करती आई है, और आगे भी करती रहेगी. और जिस दिन यह बात हर व्यक्ति समझ जाएगा उस दिन इस दुनिया को बदलना आसान हो जाएगा.

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